वैश्विक : गाजा और शिया-सुन्नी विभाजन

Last Updated 07 Jan 2024 01:24:30 PM IST

गाजा त्रासदी को कई पहलुओं से देखा जा सकता है। एक पहलू उपनिवेशवाद और रंगभेद पर आधारित राजनीतिक सत्ता द्वारा कमजोर पक्ष पर अत्याचार करने का है। दूसरा पहलू मजहब पर आधारित सत्ता-संघर्ष से जुड़ा है।


वैश्विक : गाजा और शिया-सुन्नी विभाजन

 दोनों का नतीजा फिलिस्तीनी अवाम को भुगतना पड़ रहा है। इजराइल के नेता और सैन्य अधिकारी भी हमास के प्रतिरोध से चकित हैं। उम्मीद नहीं थी कि हमास लड़ाकू विपरीत परिस्थितियों में ऐसा जुझारूपन दिखाएंगे। इजराइल और अमेरिका जैसे शक्तिशाली देशों के सामने हमास का प्रतिरोध इतने दिन टिक सकेगा यह निश्चित नहीं था। गाजा में सक्रिय हमास संगठन मोटे रूप से सुन्नी धर्मावलंबियों का है। लेकिन संघर्ष के दौरान हमास को शिया गुटों से समर्थन नहीं मिल रहा है। लेबनान में हिजबुल्लाह, यमन में हूती और ईराक में शिया सशस्त्र गुट ही इजराइल के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं। यह उम्मीद जगी थी कि गाजा की विभीषिका को देखते हुए इस्लामी दुनिया में शिया-सुन्नी विभाजन को भूलकर एकजुटता प्रदर्शित की जाएगी। साथ ही अरब राष्ट्रवाद के पुनर्जीवित होने की भी आशा बंधी थी, लेकिन यह आशा फलीभूत होते नजर नहीं आ रही। दुनिया में सुन्नी बहुल देशों की संख्या शिया बहुल देशों की तुलना में बहुत अधिक है, लेकिन सुन्नी देशों की ओर से हमास के समर्थन में ठोस कदम नहीं उठाए गए। ये देश हमास को सैन्य और आर्थिक सहायता देना तो दूर फिलिस्तीनी अवाम को पर्याप्त मानवीय सहायता मुहैया कराने में भी नाकाम साबित हुए।

हमास के समर्थन में सबसे अधिक बड़बोलापन तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैय्यब एर्दोगनने दिखाया। उन्होंने इजराइल को आतंकवादी देश और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को युद्ध अपराधी करार दिया। इसके बावजूद तुर्की ने इजराइल को तेल आपूर्ति जारी रखी। इस तेल से इजराइल के टैंक चलते हैं जो गाजा को रौंद रहे हैं। इसी तरह मिस्र, जार्डन, सऊदी अरब, कतर और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश इजराइल के खिलाफ बयानबाजी तो कर रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर गाजा के समर्थन में कोई कदम नहीं उठा रहे हैं। कुछ समीक्षकों का तो यह भी कहना है कि इन देशों के हुक्मरान हमास की हार देखना चाहते हैं। कुछ अन्य समीक्षकों का कहना है कि इजराइल और अमेरिका सहित पश्चिमी देश पुराने शिया-सुन्नी विभाजन को फिर हवा दे रहे हैं। कुछ दिन पूर्व ईरान के करमान शहर इस्लामिक स्टेट के आतंकवादी हमले से भी यह तथ्य उजागर होता है। इस्लामिक स्टेट ने संकट की इस घड़ी में ईरान को निशाना क्यों बनाया, यह समझ से परे है। ईरान शिया बहुल देश है जो इजराइल के खिलाफ प्रतिरोध करने वाली शक्तियों को राजनीतिक और नैतिक समर्थन दे रहा है।

हिज्बुल्लाह प्रमुख हसन नसरूल्लाह ने गाजा संघर्ष के दौरान कई बार इस्लामी जगत को संबोधित किया है। अपने नवीनतम संबोधन में उन्होंने पश्चिमी एशिया के देशों को आगाह किया है कि यदि गाजा में इजराइल सफल होता है तो अगला निशाना लेबनान होगा। नसरूल्लाह का संबोधन किसी उग्रवादी संगठन के प्रमुख का नहीं बल्कि किसी अरब राष्ट्रवादी नेता के संबोधन जैसा लगता है। उन्होंने पहली बार हाथ-पर-हाथ धरे बैठे आठ अरब देशों के नेताओं की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनी जनता को सहायता देने के बजाय ये देश इजराइल के सैन्य अभियान में मददगार हो रहे हैं। उनका संकेत सऊदी अरब, मिस्र और जार्डन जैसे देशों की ओर था जो हुती विद्राहियों द्वारा इजराइल को निशाना बनाने वाले मिसाइलों को रोक रहे हैं। इतना ही नहीं हुती विद्रोहियों का मुकाबला करने के लिए लाल सागर में अमेरिका के नेतृत्व में बनाए गए नौसैनिक गठबंधन में कई अरब देश शामिल हैं।

गौर करने वाली बात है कि अब तक केवल एक लैटिन अमेरिकी देश बोल्विया ने इजराइल से अपने रणनीतिक संबंध तोड़े हैं। दक्षिण अफ्रीका ने युद्ध अपराधों को लेकर इजराइल को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाल में घसीटा है। हालांकि इससे इजराइल का कुछ नहीं होगा। जो काम बोल्विया और द. अफ्रीका ने किया है वह इस्लामी और अरब देश क्यों नहीं कर पाए, यह यक्ष प्रश्न है। नसरूल्लाह आगे क्या करेंगे इससे संघर्ष की दिशा तय होगी। हिज्बुल्लाह की सैनिक ताकत हमास से दसियों गुना अधिक है। वह इजराइल को हरा तो नहीं सकता लेकिन उसे सबक सीखा सकता है।

डॉ. दिलीप चौबे


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