कोरोना का डर : दो गज की दूरी, मास्क फिर जरूरी
क्या एक बार फिर भारत में कोरोना दस्तक दे चुका है? वैसे, हालात और आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि कोरोना कभी गया ही नहीं था?
कोरोना का डर : दो गज की दूरी, मास्क फिर जरूरी |
पाबंदियां जरूर हटती गई और दबा संक्रमण धीरे-धीरे फिर पसरता रहा और हम सब बेफिक्र रहे। देश हो या प्रदेश जिले हों या नगर या गांव हों या पंचायतें; लोग इतनी जल्दी उस दर्दनाक मंजर को भूल भी गए जो हफ्ते, महीने दिन नहीं साल दो साल तक लगातार तबाही मचाता रहा! वो वाकये भी याद नहीं रहे जो जिंदगी भर का दर्द दे गए? शायद इसी गलती, चूक या लापरवाही का नतीजा है, जो कोरोना की डरावनी रफ्तार फिर उसी अंदाज में बढ़ती जा रही है। कोविड-19 द्वारा लोगों की जान लीलने की रफ्तार हालांकि कभी थमी नहीं थी। हां, कम या बीच में कुछ वक्त ब्रेक लगने का भ्रम जरूर था। अब दिसम्बर के दूसरे पखवाड़े की पहली शुरुआत भारत में 5 मौतों से हुई, जिसने जनवरी 2020 की याद दिला दी।
इस सच्चाई को स्वीकारना होगा कि हफ्ते भर में एकाएक हुई मौतें चिंताजनक हैं। गुजरे रविवार को एक दिन में हुई 5 मौतों चिंताजनक हैं। इसमें भी 4 अकेले केरल में और 1 उत्तर प्रदेश में हुई। इसी सोमवार को जारी सरकारी आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 के भारत में मरीजों की संख्या 1828 हो गई है। उसमें भी केरल में मामलों की संख्या सबसे अधिक 1,634 है। अकेले सोमवार को 260 नए मामले सामने आए। जाहिर है यह गंभीर या लगातार खांसी, फ्लू या फेफड़ों से संबंधित ज्यादा पीड़ितों के आंकड़े हैं।
वास्तविक आंकड़े इससे कई गुना अधिक होंगे। ताजे मामला केरल में कोरोना का सबवैरिएंट जेएन-1का है जो बेहद खतरनाक व डराने वाला है। सिंगापुर, अमेरिका, चीन के बाद यह एसएआरएस-कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्टयिम (सार्स कोव-2) यानी आईएनएसएसीओजी की निगरानी से भारत में पकड़ आया जो केरल की एक 79 वर्षीय महिला में मिला। इसे कोविड-19 का नया वैरिएंट जेएन-1 भी कहते हैं। इससे लोगों में लगातार या रु क-रु क कर हल्की खांसी, सांस लेने में तकलीफ या सांस नली में दिक्कत, थकान, मांसपेशियों और शरीर में दर्द के साथ ही सिरदर्द, गले में खराश, नाक बहना या बंद रहने जैसी समस्या देखी जा रही है। इनमें से कई इतनी आम होती हैं कि लोग समझ ही नहीं पाते हैं।
जानकार कहते हैं कि पिछले तीन साल के आंकड़े बताते हैं कि सर्दियों में कोरोना बहुत तेज फैलता है। ठंड बढ़ी नहीं कि फिर कोरोना की शह दिखने लगी। अभी भारत में जिसमें सबवैरिएंट मिला वो सिंगापुर से आयातिर चिरापल्ली निवासी था। 25 अक्टूबर को सिंगापुर से लौटा। उसके संपर्क में कितने लोग आए होंगे और सिंगापुर से लौटकर कितने कहां-कहां आए-गए होंगे किसे पता? निश्चित रूप से सब जानते हैं कि कोविड टेस्ट तो दूर महीनों एयरपोर्ट पर साधारण जांच तक नहीं हुई। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों से आने वाले लोग बेखौफ भारत आते-जाते रहे। अब यही बड़ा खतरा है।
यहां पहली कोरोना मरीज वुहान से आई एक मेडिकल छात्रा थी। वहां पैर कोरोना फैलते ही घबरा कर लौटी थी। 21 जनवरी 2020 को वुहान से कोलकता होते हुए कोच्चि पहुंची। दोनों एयरपोर्ट पर थर्मल स्क्रीनिंग में वायरस के लक्षण नहीं दिखा, लेकिन27 जनवरी 2020 को तबीयत बिगड़ते ही समझते देर लगी कि माजरा क्या है? टेस्ट पॉजिटिव निकला। उधर, 28 जनवरी तक देश में करीब 450 लोग चपेट में आए, जिसमें ज्यादातर केरल से ही थे। फिर तो कोरोना ने कैसे पैर पसारा, हालात किस तरह बेकाबू हुए एक बुरे सपने जैसा था। क्या स्वास्थ्य एजेंसियों की खानापूर्ति या सुस्ती, प्रशासन की खामोशी या सरकार की अन्य मामलों में व्यस्तता के कारण कहीं हालात पहले की तरह बेकाबू न हो जाएं; इसे लेकर सतर्क रहने की जरूरत है।
बहरहाल, केंद्र सरकार ने देर से ही सही मामले की गंभीरता को समझा है और गाइडलाइन जारी कर दी है। इस बाबत कल यानी 20 दिसबर को सभी राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों की दिल्ली में बैठक भी हुई। हालांकि कागज, ई-मेल और सोशल मीडिया पर दौड़ते आदेश वैसे प्रभावी हो पाएंगे जितने होने चाहिए, कहना मुश्किल है। जरूरत है पहले जैसी सतर्कता, जनजागरण और स्थानीय पुलिस व पालिका-पंचायत और स्वास्थ्य महकमे के संयुक्त अभियान की; जो चेतावनी भी जारी करें और सख्ती भी दिखाएं।
सुरक्षा एहतियातों से ही कई जानें बचीं, लेकिन सभी ने किसी अपने या जान-पहचान वाले को खोने का दर्द झेला है। हैरानी की बात है कि हम साल, सवा साल या कहें चंद महीनों में ही सब भूल गए? बेफिक्री के आलम में ऐसे मशगूल हुए कि याद तक नहीं रखा कि इस खतरनाक महामारी ने मानवीय जीवन को कितना संकटग्रस्त कर दिया। एक बार फिर इसकी आहट से भय स्वाभाविक है। नतीजतन हर किसी को सुरक्षित रहने के वास्ते वो एहतियात बरतने ही होंगे।
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