संसद धुआं कांड : बेहतर बने माहौल

Last Updated 20 Dec 2023 01:27:44 PM IST

संसद के अंदर और बाहर की घटना ने पूरे देश को विस्मित किया है। लोक सभा के अंदर दो व्यक्तियों का कूदना, परिसर के बाहर नारा लगाना, पीला धुआं छोड़ना चिंता का विषय है।


संसद धुआं कांड : बेहतर बने माहौल

लोक सभा में दर्शक दीर्घा से कूदने वाले सागर शर्मा और मनोरंजन डी तथा बाहर परिवहन भवन के सामने नारा लगाने वाले अमोल शिंदे और नीलम आजाद सबके पास एक ही प्रकार का रंगीन स्मोक था। छह आरोपी बनाए गए हैं, जिनमें से पांच पकड़े जा चुके हैं। लोक सभा सचिवालय के आग्रह पर गृह मंत्रालय ने घटना की जांच का आदेश दे दिया है। सीआरपीएफ के महानिदेशक अनीश दयाल सिंह की अध्यक्षता वाली जांच समिति में सुरक्षा एजेंसिंयों के सदस्य और विशेषज्ञ शामिल होंगे।   

दुर्भाग्य से गंभीर मामलों को भी जब राजनीति का शिकार बनाने की कोशिश होती है तो उसकी आवश्यक गंभीर विवेचना कम से कम आम लोगों के बीच उस तरह से नहीं हो पाता जैसा होना चाहिए। संसद में आने-जाने वाले जानते हैं कि वहां किस तरह की तीनस्तरीय और बाहर को मिला दें तो चारस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था है। इन पर चर्चा आगे करेंगे। पहले घटना से जुड़े मुख्य पहलुओं को देखें। अमोल महाराष्ट्र के लातूर का और नीलम हरियाणा के जींद की, सागर उन्नाव का और मनोरंजन मैसूर का रहने वाला है। इन चारों में इतने संबंध कैसे हुए कि उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से समन्वित और सावधानीपूर्वक अपने कारनामों को अंजाम दिया।

घटना के सुनियोजित होने का पता इससे भी चलता है कि नीलम द्वारा नारा लगाते और अमोल के धुआं छोड़ते एक ललित झा वीडियो बना रहा था और उसने उसे सोशल मीडिया पर अपलोड भी किया। वह एक एनजीओ से जुड़ा है। घटना पूरी तरह योजनाबद्ध थी इसीलिए जब दर्शक दीर्घा से सागर और मनोरंजन सत्ता पक्ष की ओर कूदता है, उसी समय बाहर नीलम और अमोल नारा लगाते हुए आगे बढ़े और धुआं भी छोड़ा। ये छह पास चाहते थे लेकिन इन्हें दो ही मिल सके। अभी तक की जानकारी के अनुसार संसद आने से पहले यह सब गुरु ग्राम में विक्रम शर्मा के घर पर रु के थे। आजकल इंटरनेट और सोशल मीडिया के जमाने में एक दूसरे से संपर्क होना कठिन नहीं है, लेकिन ये सब एक दूसरे से इतने जुड़ गए और इन्होंने इस तरह की योजना बना ली और उसे पूरा किया तो स्वाभाविक ही इसकी गहराई से जांच करनी होगी कि क्या सब कुछ इन्होंने ही किया या उनके पीछे और भी हैं, जिनने भी किया उनका उद्देश्य क्या था?

बेरोजगारी या तानाशाही आदि का नारा लगाने के लिए संसद से कूद कर भय पैदा करने की आवश्यकता नहीं थी। वैसे भी संसद हमले की वार्षिकी पर ऐसा करने वाला सकारात्मक सोच का आंदोलनकारी नहीं हो सकता। तेरह दिसम्बर, 2001 को भीषण जिहादी आतंकवादी हमले ने पूरे देश को हिला दिया था। उच्चतम न्यायालय के फैसलों से साफ है कि उसका षडय़ंत्र पाकिस्तान में रचा गया था जिसके पीछे मसूद अजहर का जोश ए मोहम्मद तथा लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन थे। भारत में भी जेहादी आतंकवाद की सोच से प्रभावित अफजल गुरु  और उसके साथी इसमें संलिपप्त थे। हालांकि दिल्ली विविद्यालय के एक प्रोफेसर एसआर गिलानी पर भी आरोप लगा किंतु वह सबूतों के अभाव में रिहा हो गए। वह हमला संपूर्ण विश्व में जारी अंतरराष्ट्रीय इस्लामी आतंकवाद का अंग था।

उसके पहले 11 सितम्बर, 2001 को अमेरिका के न्यूयॉर्क एवं वाशिंगटन में र्वल्ड ट्रेड टावर से लेकर पेंटागन पर हमले हो चुके थे और संपूर्ण दुनिया हिली हुई थी। अगर किसी को देश में बेरोजगारों के लिए, महिलाओं के लिए आवाज उठानी है, या वह बेहतर लोकतांत्रिक व्यवस्था चाहता है, तो कम से कम आतंकवादी हमले के दिन से स्वयं को नहीं जोड़ेगा। देखना होगा कि उनके मस्तिष्क में ऐसी बात आई क्यों? जय भीम जय भारत के नारे का यहां अर्थ क्या है? ये भगत सिंह के नाम से बने संगठन से जुड़े बताए गए हैं। भगत सिंह को आदर्श मानने वाले इस तरह आतंकवादी हमले के दिवस से स्वयं को किसी सूरत में संबंधित नहीं कर सकते।

जैसा कि हम जानते हैं सदन के भीतर कोई दर्शक तभी जा सकता है जब किसी सांसद की सिफारिश हो। इसके लिए विजिटर फार्म होता है जिसमें पूरी जानकारी भरनी होती है, और उसमें सांसद को हस्ताक्षर करने होते हैं। संसद भवन की सुरक्षा व्यवस्था पहले से ही मजबूत है। प्रत्येक सत्र के पहले सुरक्षा एजेंसियां सुरक्षा समीक्षा करती हैं। तीनस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था है। सोचने की बात है कि कई महीनों से मनोरंजन भाजपा के सांसद प्रताप सिम्हा के यहां ही पास के लिए क्यों दौड़ लगा रहा था? क्या यह साबित करना था कि भाजपा के सांसद के पास से ही संसद के अंदर ऐसी घटना हुई? मनोरंजन के पिता दक्षिण मैसूर के सांसद प्रताप सिम्हा के परिचित हैं।

जरा सोचिए, वातावरण कितना विकृत है कि वैश्विक जेहादी आतंकवाद के हमले के दिन ये सब अपना तथाकथित विरोध प्रकट करने का दिन चुनते हैं, और कोई इसकी आलोचना नहीं करता। विपक्ष ने पहले दिन से ही नई संसद भवन को असुरक्षित और अनुपयुक्त साबित करने का अभियान चलाया। धुआं कांड के बाद समूचे विपक्ष का स्वर एक ही है कि सारे सांसदों और यहां के कर्मचारियों की जिंदगी को असुरक्षित कर दिया गया है। विपक्ष के लोग भी हमले की उसी आक्रामकता से निंदा करते जिस तरह सरकार की कर रहे हैं, तो लगता कि वाकई इनके अंदर संसद भवन से लेकर अन्य तरह की सुरक्षा की चिंता है। अधीर रंजन चौधरी कह रहे हैं कि इन लोगों ने देश की असलियत को सामने ला दिया है। ऐसे बयानों से इन लोगों का ही हौसला बढ़ेगा। कोई उनकी इस बात के लिए भी निंदा नहीं कर रहा है कि संसद पर आतंकवादी हमले जैसे भयानक दिवस को चुनना ही आतंकवाद को समर्थन देना और इस नाते देश विरोधी कार्य है।

पूरे घटनाक्रम को देखने के बाद निस्संदेह आने वाले समय में इसके पीछे का षडय़ंत्र सामने आएगा। ऐसा माहौल न बना दिया जाए कि आम लोगों को दर्शक के रूप में भी संसद भवन को देखने के रास्ते बंद हो जाए। किसी एक घटना का तात्पर्य नहीं कि सारे दर्शक संदिग्ध ही होंगे। सुरक्षा मजबूत करिए और उसके साथ-साथ देश का वातावरण ऐसा बनाइए कि पक्ष-विपक्ष की लड़ाई लोकतांत्रिक सहमति-असहमति की हो नफरत-दुश्मनी की नहीं। नफरत-दुश्मनी की राजनीति से ही इस तरह की भयानक घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है।

अवधेश कुमार


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