मालदीव : बढ़ सकती है चुनौती

Last Updated 23 Nov 2023 01:32:21 PM IST

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइजू (Maldives President Mohamed Muizzu) ने अपने देश के मतदाताओं से किए वादे को पूरा करने की दिशा में कदम उठाने शुरू कर दिए हैं।


मालदीव : बढ़ सकती है चुनौती

पिछले दिनों राष्ट्रपति चुनाव में चीन समर्थक डॉ. मुइजू ने अपने चुनावी कैंपेन में अपने नागरिकों से देश की संप्रभुता के लिए भारतीय सैनिकों को वापस भेजने का वादा किया था। चुनाव परिणामों के तत्काल बाद प्रतिक्रिया देते हुए मुइजू ने कहा था कि वे अपने कार्यकाल के पहले ही दिन से भारतीय सैनिकों को वापिस भारत भेजने की प्रक्रिया शुरू कर देंगे। 17 नवम्बर को पद ग्रहण करने के बाद उन्होंने भारतीय सैनिकों की वापसी के प्रयास शुरू कर दिए हैं।

मुइजू के शपथ ग्रहण समारोह भाग लेने के लिए मालदीव गए भारत के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू से औपचारिक मुलाकत के दौरान भी भारतीय सैनिकों की वापसी का मुद्दा उठा। चीन समर्थक मुइजू ने पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के शासनकाल में भारत और मालदीव के बीच हुए एक सौ से अधिक समझौतों की समीक्षा करने की बात भी कही है। हालांकि, भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी ने उन्हें जीत की बधाई देते हुए कहा था कि भारत मालदीव के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक मजबूत बनाएगा।

‘इंडिया-आउट’ अभियान के सहारे चुनावी कैंपेन चलाने वाले डॉ. मुइजू ने अपनी रैलियों में राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को भारत समर्थक बताते हुए उन पर हमले करते थे। मुइजू का कहना था कि उनकी सरकार मालदीव की संप्रभुता से समझौता कर किसी देश से करीबी नहीं बढ़ाएगी।

दूसरी ओर सोलिह मुइजू पर चीन समर्थक होने का आरोप लगा रहे थे। कुल मिलाकर कहा जाए तो इस बार मालदीव का राष्ट्रपति चुनाव भारत और चीन के इर्द-गिर्द घूम रहा था। परिणाम चीन समर्थक मुइजू के पक्ष में रहा। मुइजू की जीत के बाद भारत के भीतर सवाल लगातार उठ रहा था कि मुइजू राष्ट्रीय हितों को प्रथामिकता देते हुए भारत और चीन के बीच संतुलन बनाकर आगे बढ़ेंगे या मतदाताओं के फैसले का सम्मान करते हुए चीन के पाले में खड़े होंगे। सैनिकों की वापसी के निर्णय से लगता है कि मुइजू दूसरे विकल्प पर आगे बढ़ेंगे।

दरअसल, पिछले एक डेढ़-दशक से मालदीव हिन्द महासागर की प्रमुख शक्तियों भारत और चीन के बीच भू-राजनीतिक खींचतान का केंद्र रहा है। साल 2013 में चीन समर्थक अब्दुल्ला यामीन के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत-मालदीव संबंधों में लगातार गिरावट आई। भारत के पारंपरिक शत्रु पाकिस्तान के साथ ऊर्जा के क्षेत्र में किया गया समझौता हो या सैन्य हेलिकॉप्टर को वापिस लौटाने का फरमान हो यामीन का हर एक फैसला भारत को असहज करने वाला था। भारत ने मालदीव को यह हेलिकॉप्टर राहत और बचाव कार्य के लिए दिए थे। यामीन ने न सिर्फ चीनी की कंपनियों को पूरी छूट दे दी थी बल्कि मालदीव में कार्यरत भारतीय कंपनियों को वर्क परमिट जारी करना बंद दिया था जिसकी वजह से वहां उन परियोजनाओं का काम बाधित हुआ जिनमें भारत की भागीदारी थी।

यामीन के बारे में तो यहां तक कहा जाता था कि वे अपने देश में भारत की किसी तरह की भागीदारी पंसद नहीं करते हैं। चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) भी उनके कार्यकाल में किया गया था। हालांकि, 2018 में सत्ता पविर्तन के बाद राष्ट्रपति मोहम्मद सोलिह ने इसे लागू नहीं किया। हो सकता है, अब मुइजू इसे लागू करवाने की दिशा में बढ़ें। चुनावी कैंपेन में वे इसे लागू करने की बात कह भी चुके हैं। लेकिन 2018 के राष्ट्रपति चुनाव में भारत समर्थक इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के सत्ता में आने के बाद भारत-मालदीव संबंध फिर परवान चढ़ने लगे। सोलिह ने अपने कालखंड के दौरान ‘इंडिया फस्र्ट’ नीति को लागू करते हुए भारत के लिए निवेश और कनेक्टिविटी के द्वार खोल दिए।

नवम्बर, 2018 में अपने शपथ ग्रहण समारोह में हिस्सा लेने के लिए मोहम्मद सोलिह ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आमंत्रित कर भारत की ‘नेबर फस्र्ट’ नीति का समर्थन किया था। सोलिह दिसम्बर, 2018 में अपने पहले विदेशी दौरे पर भारत आए। अगस्त, 2022 में मोदी और सोलिह ने 50 करोड़ डॉलर की लागत से तैयार होने वाली मालदीव की सबसे बड़ी कनेक्टिविटी परियोजना की नींव रखी थी।

इसके अलावा, आज भी मालदीव में पेयजल, अस्पताल, क्रिकेट स्टेडियम और सामुदायिक भवनों के निर्माण जैसी दर्जनों परियोजनाएं भारत की मदद से चल रही हैं। लेकिन अब सोलिह के सत्ता से रुखसत होने के बाद सवाल उठ रहा है कि सोलिह के कार्यकाल के दौरान बनी ‘इंडिया फस्र्ट’ नीति क्या समाप्त हो जाएगी जिसके संकेत मुइजू ने चुनाव परिणाम के तत्काल बाद अपने बयान में दिए हैं। अगर ऐसा होता है, तो निस्संदेह हिन्द महासागर में भारत की पकड़ कमजोर हो सकती है।

मालदीव भले ही छोटा देश हो लेकिन रणनीतिक दृष्टि से भारत के लिए अहम है। 1988 में राजीव गांधी की सरकार ने सेना भेजकर तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम की सरकार को बचाया था। दिसम्बर, 2014 में माले के सबसे बड़े ट्रीटमेंट प्लांट के जनरेटर में आग लग जाने से पीने के पानी का संकट उत्पन्न हो गया तो मालदीव ने भारत सरकार से गुहार लगाई। भारत ने ‘ऑपरेशन नीर’ चलाकर हजारों लीटर पानी के साथ आईएनएस सुकन्या और आईएनएस दीपक माले भेजा। भारतीय वायुसेना ने भी एयरक्रॉफ्ट के जरिए सैकड़ों टन पानी पहुंचाया।

सामरिक दृष्टि से मालदीव चीन के लिए भी काफी अहम है। चीन ने उसे अपनी ऋण कूटनीति में उलझा रखा है। वह अपने कुल ऋण का 60 फीसद से अधिक चीन से लेता है, जो उसके बजट का 10 प्रतिशत है। एक अनुमान के अनुसार चीन का मालदीव पर 14 अरब डॉलर का कर्ज है। 2016 में मालदीव ने चीन की एक कंपनी को अपना एक द्वीप 50 वर्षो के लिए लीज पर दे दिया था। चीन की योजना यहां सैन्य अड्डा निर्माण की भी है।

इस नौ सैनिक अड्डे का उपयोग परमाणु पनडुब्बियों के संचालन के साथ-साथ भारत की जासूसी के लिए भी कर सकता है। संक्षेप में कहें तो चीन की समुद्री क्षेत्रों के प्रति जिस तरह से भूख बढ़ी है, उस स्थिति में चीन को काउंटर करने के लिए मालदीव में भारत की पैठ जरूरी है। यामिन के कार्यकाल के दौरान चीन ने यहां नौ सैनिक अड्डा बनाने की बात कही थी। यही वजह है कि अगर मालदीव में भारत के हित बाधित होते हैं, तो यह उसके लिए बुरा होगा तब चीन इस क्षेत्र का इकलौता खिलाड़ी बनकर उभर सकता है।

डॉ. एन.के. सोमानी


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