सामयिक : कतर की कुटिलता

Last Updated 28 Oct 2023 01:14:33 PM IST

दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में वैधानिक सत्ता के खिलाफ हिंसक संघर्ष करने वाले इस्लामिक कट्टरपंथी समूहों को वार्ता की मेज पर बिठा लेने में माहिर कतर की वैश्विक नीतियां विरोधाभासों से घिरी हुई रही है।


सामयिक : कतर की कुटिलता

यही कारण है की 2017 में सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र और बहरीन ने उस पर ईरान के करीब होने और अल जज़ीरा के माध्यम से क्षेत्र में अस्थिरता फैलाने का आरोप लगाते हुए उसके साथ संबंध तोड़ दिए थे।

दुनिया के सम्पन्न राष्ट्रों में शुमार साढ़े तीन लाख आबादी वाले इस देश में तालिबान और हमास जैसे आतंकी संगठनों के कार्यालय भी मिल जाएंगे, वहीं अल जजीरा जैसे चैनल के माध्यम से खाड़ी देशों की जनता को भ्रमित करने की कोशिशें भी दिख जाएगी। यह वही अल जजीरा है, जिसनें दुनिया को धमकाने के लिए पहली बार चरमपंथियों को लोगों का सिर काटते हुए दिखाया था। दरअसल, कतर में आठ भारतीय पूर्व नौसैनिकों को पिछले साल सितम्बर में बंदी बनाने और उन्हें मौत की सजा सुनाने के मामले में कतर सरकार की भारत को लेकर जो नीतियां नजर आई है, वह अविसनीय है। छल, कपट, द्वेष और प्रतिद्वंद्विता की कूटनीति दुश्मन देशों के बीच तो सकती है, लेकिन कतर से इसकी अपेक्षा नहीं की जा सकती थी। कतर और भारत के आर्थिक और राजनीतिक संबंध बेहतर रहे हैं, लेकिन उसका भारत के पूर्व नौसैनिकों को लेकर किया गया व्यवहार बेहद असंगत नजर आता है।

सितम्बर 2022 में कतर सरकार ने आठ पूर्व भारतीय नौसैनिकों को गिरफ्तार करने की सूचना भारत सरकार को नहीं दी थी। यह समूचा मामला एक ट्विट के बाद संज्ञान में आया। जिन भारतीयों को कतर सरकार ने बंदी बनाया वे भारतीय नौ सेना के जिम्मेदार, बेदाग और रिटार्यड अधिकारी थे। इन पूर्व नौसैनिकों पर आरोप है कि उन्होंने कथित तौर पर अति उन्नत इतालवी पनडुब्बी को खरीदने से संबंधित कतर के खुफिया कार्यक्रम के बारे में इस्राइल को जानकारी दी थी। यह भी दिलचस्प है कि अमानवीय कृत्यों के लिए कुख्यात आतंकियों और उनके संगठनों से बातचीत की हिमायत करने वाले कतर ने भारतीय नौसैनिकों को लेकर कैदियों के अंतराष्ट्रीय नियमों का पालन भी नहीं किया।

न्याय को लेकर कोई पारदर्शिता नहीं दिखाई और न ही सूचनाएं साझा की गई। खाड़ी के देशों में न्याय को लेकर विभिन्न सरकारों का नजरियां मध्ययुगीन रहा है और संभवत: इसीलिए सम्पन्न होने के बाद भी यह इलाका हिंसा और रक्तपात से कभी उभर ही नहीं पाता है। मध्यस्थता के रूप में वैिक पहचान बना चूके कतर ने भारत जैसे महान लोकतंत्र के नागरिकों को जिस प्रकार निशाना बनाने की कोशिश की है,उससे एक बार फिर यह साफ हो गया की इस देश की मानवाधिकारों को लेकर वैिक आलोचना क्यों होती है। कतर दुनिया के सबसे धनी देशों में शामिल है और यहां गरीबी पर  सार्वजनिक चर्चा करने को अपराध माना जाता है। मुख्य रूप से तेल और गैस से मिलने वाली आय के कारण कतर का सकल घरेलू उत्पाद 180 अरब डॉलर का है।

यही कारण है कि दसियों लाख अप्रवासी मजदूर यहां के रेगिस्तान में बड़े पैमाने पर हो रहे निर्माण परियोजनाओं में काम करने के लिए आकर्षित होते हैं। इन कामगारों की गरीबी को छुपाने के लिए इन्हें अलग-थलग और बहुत दुर्गम को जगहों पर रखा जाता है। कतर की सरकार  ने फीफा विश्व कप के लिए स्टेडियमों को बनाने के लिए तीस हजार विदेशी कामगारों को काम पर रखा गया था। इनमें से अधिकांश बांग्लादेश, भारत, नेपाल और फिलीपींस से थे। विश्व कप की तैयारी के दौरान मरने वाले कामगारों की संख्या को लेकर काफी विवाद रहा है।

कतर में स्थित तमाम देशों के दूतावासों से मिले आंकड़े बताते हैं कि साल 2010 में जबसे वर्ल्ड कप की मेजबानी कतर को सौंपी गई, तब से भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के साढ़े छह हजार कामगारों की मौत हुई, जबकि कतर ने इसे भ्रामक बताया था।   महिलाओं को लेकर भी इस देश में बेहद क्रूर व्यवहार अपनाया जाता है। यहां पर महिलाओं अपनी जिंदगी के हर जरूरी और अहम फैसले के लिए अपने पुरुष गार्जियन की लिखित अनुमति लेना अनिवार्य होता है। हालांकि भारतीय नौसैनिकों को लेकर कतर के अमानवीय दृष्टिकोण के साथ-साथ उसकी इस्लामिक देशों में बढ़त बनाने की कूटनीति से भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

इस्लामिक दुनिया के नेतृत्व को सऊदी अरब, ईरान और तुर्की के बीच कड़ी प्रतिद्वंद्विता चलती रही है, लेकिन कतर ने गृह युद्ध से जूझते इस्लामिक देशों में अपनी जो पहचान बनाई है, वह उसकी कुटिलता को सामने लाती है। कतर ने 2008 में यमन की सरकार और हूती विद्रोहियों के बीच मध्यस्थता की।  2008 में लेबनान के युद्धरत गुटों के बीच वार्ता में मध्यस्थता की, जिसके बाद वहां 2009 में गठबंधन की सरकार बनी। 2009 में ही सूडान और चाड के बीच विद्रोहियों के मुद्दे पर बातचीत में भाग लिया। जिबूती और इरिट्रिया के बीच सीमा पर सशस्त्र संघर्ष के बाद कतर की मध्यस्थ की भूमिका के साथ 2011 में सूडान की सरकार और विद्रोही समूह के बीच दारफूर समझौता कराया, जिसे दोहा समझौता भी कहा जाता है।

इस समय हमास और इस्राइल में भीषण युद्ध चल रहा है और भारत ने इस्राइल का पक्ष में खड़े होने का साहस दिखाते हुए  खाड़ी  देशों को भी चौंका दिया है। यह भारत की फिलिस्तीन नीति को लेकर पारंपरिक रु ख से अलग बताया जा रहा है। कतर ने भारतीय अधिकारियों पर इस्राइल के लिए जासूसी का आरोप लगाकर खाड़ी देशों में काम करने वाले लाखों भारतीयों के भरोसे को संकट में ला दिया है। कतर की भारत पर दबाव बनाने की यह कोशिश भी हो सकती है कि वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर इस्राइल को गाजा पर हमला करने से रोके।

2008-2009 के इस्राइल-गाजा संघर्ष को लेकर कतर ने अरब राज्यों और ईरान के एक आपातकालीन सम्मेलन की मेजबानी की थी। कतर और इस्राइल के राजनयिक संबंध नहीं हैं। इस्राइल, हमास को लेकर बेहद गुस्से में है। जाहिर है कतर, इस्राइल के मित्र देश भारत पर मनौवैज्ञानिक दबाव डालने की कोशिश कर रहा हो। हां, इस प्रकरण के सामने आने की टाइमिंग भी कई सवाल खड़े करती है। नि:संदेह भारत के लिए अपने नागरिकों को बचाना बड़ी चुनौती होगी। वहीं यह कूटनीतिक बदलावों के लिए सबक भी हो सकता है।

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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