बंदूक संस्कृति : लाल होती अमेरिका की सरजमीं

Last Updated 29 Oct 2023 01:26:59 PM IST

दुनिया में खुद को सभ्य एवं स्वयंभू मानने वाले अमेरिका में बढ़ रही ‘बंदूक संस्कृति’ के साथ-साथ लोगों में बढ़ रही असहिष्णुता, हिंसक मनोवृत्ति और आसानी से हथियारों की सहज उपलब्धता का दुष्परिणाम बार-बार होने वाली दुखद घटनाओं के रूप में सामने आना चिन्ताजनक है।


बंदूक संस्कृति : लाल होती अमेरिका की सरजमीं

अमेरिका में एक हत्यारे ने गोलियां बरसाकर करीब 21 लोगों को मौत की नींद सुला दिया और कई को जख्मी कर दिया है। तीन स्थानों पर गोलीबारी करने के बाद हत्यारा घटनास्थल से भागने में सफल रहा। खबर है कि हत्यारे ने खुदकुशी कर ली है और उसका शव उसके घर से मिला है। आश्चर्यकारी है कि दुनिया की सबसे दुरुस्त एवं सक्षम अमेरिकी पुलिस एक हत्यारे को पकड़ने में इतनी लाचार हो गई कि उसे सहयोग के लिए आम लोगों से अपील करनी पड़ी। हिंसा की बोली बोलने वाला, हिंसा की जमीन में खाद एवं पानी देने वाला, दुनिया में हथियारों की आंधी लाने वाला अमेरिका अब खुद हिंसा का शिकार हो रहा है। अमेरिका की आधुनिक सभ्यता की सबसे बड़ी मुश्किल यही रही है कि यहां हिंसा इतनी सहज बन गई है कि हर बात का जवाब सिर्फ हिंसा की भाषा में ही दिया जाने लगा। वहां हिंसा का परिवेश इतना मजबूत हो गया है कि बंदूक-संस्कृति से वहां के लोग अपने ही घर में बहुत असुरक्षित हो गए थे। अमेरिका को अपनी बिगड़ती छवि के प्रति सजग होना चाहिए क्योंकि यह एक बदनुमा दाग है जो उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को आघात पहुंचा रहा है।

नवीनतम घटना 25 अक्तूबर को देर रात ‘एंड्रोस्कोगिन काऊंटी’ के अंतर्गत पड़ने वाले लेविस्टन में हुई, इस हादसे का सबसे खराब पहलू यह है कि अनेक लोग भगदड़ की वजह से घायल हुए तो अनेक हत्यारे की गोलियों से गहरी नींद सो गए। नरसंहार के कथित आरोपी 40 वर्षीय रॉबर्ट कार्ड को पुलिस ने हथियारबंद और खतरनाक व्यक्ति माना है, पर सवाल है कि क्या वह रातों-रात हत्यारा एवं हिंसक हुआ है? हत्यारा रॉबर्ट कार्ड अमेरिकी सेना से जुड़ा रहा है और आग्नेयास्त्र प्रशिक्षक है। मानसिक अस्वस्थता एवं मनोविकार से ग्रस्त हत्यारे के खिलाफ अनेक शिकायतें पहले भी मिल चुकी थी, प्रश्न है कि उन्हें क्यों नहीं गंभीरता से लिया गया। अमेरिका में आए दिन ऐसी खबरें आती रहीं कि किसी सिरफिरे ने कहीं स्कूल में तो कभी बाजार में अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर कई निदरेषों का खून बहाया। अब तो अमेरिकी बच्चों के हाथों में भी बंदूकें हैं। इसके पीछे एक बड़ा कारण वहां आम लोगों के लिए हर तरह के बंदूकों की सहज उपलब्धता है।

अमेरिका की हथियारों की होड़ एवं तकनीकीकरण की दौड़ पूरी मानव जाति को ऐसे कोने में धकेल रही है, जहां से लौटना मुश्किल हो गया है। एफबीआई की वार्षिक अपराध रिपोर्ट बताती है कि बंदूक संस्कृति एवं इससे जुड़ी हिंसा व्यापक हो गई है। पिछले साल अमेरिका में लगभग पांच लाख हिंसक अपराधों में बंदूकों का इस्तेमाल किया गया था। वर्ष 2020 में बंदूक संस्कृति अमेरिकी बच्चों की मौत का मुख्य कारण बनी और 2022 में हालात और बदतर हो गए। जान गंवाने वाले बच्चों की संख्या 12 प्रतिशत बढ़ गई। इन हालात में अमेरिका किस तरह दुनिया का आदर्श बन सकता है, जबकि दुनिया अमेरिकी संस्कृति का अनुसरण करती है, वहीं अमेरिका तमाम देशों की सामाजिक व मानवाधिकार रिपोर्ट जारी करता है।

अमेरिका अगर अपनी कथनी-करनी का भेद मिटाने की ओर बढ़े, तो उसके साथ-साथ दुनिया को ज्यादा फायदा होगा। राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार अमेरिका में ‘बंदूक संस्कृति’ बढ़ाने में वहां की नकारात्मक राजनीति की बड़ी भूमिका है। आम जनता तो हथियारों पर अंकुश लगाने के पक्ष में है परंतु अपने निहित स्वाथरे के कारण अमेरिका में हथियारों को बढ़ावा देने वाली वहां की सशक्त हथियार लॉबी और राजनीति से जुड़े लोग इस पर अंकुश नहीं लगने देते। पिछले साल जून में भारी तादाद में लोगों ने सड़कों पर उतर कर बंदूकों की खरीद-बिक्री से संबंधित कानून को बदलने की मांग की। जरूरत इस बात की है कि इस समस्या के पीड़ितों को राहत देने के साथ-साथ बंदूकों के खरीदार से लेकर इसके निर्माताओं और बेचने वालों पर भी सख्त कानून के दायरे में लाया जाए। किसी भी संवेदनशील समाज को इस स्थिति को एक गंभीर समस्या के रूप में देखना-समझना चाहिए।

ललित गर्ग


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