समलैंगिकता : संबंधों पर दुविधा

Last Updated 26 Oct 2023 01:47:43 PM IST

समलैंगिक विवाह संबंध अधिकांश देशों में विवादों के घेरे में रहे हैं, कुछ देशों ने इन्हें कानूनी मान्यता दी है। भारत में हाल में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इसके पक्ष में नहीं आया जिससे इस समुदाय को निराशा हुई।


समलैंगिकता : संबंधों पर दुविधा

समलैंगिकता एक ही लिंग के सदस्यों के बीच रूमानी आकषर्ण या यौन व्यवहार का नाम है। जब एक पुरुष दूसरे पुरुष के प्रति आकर्षित होकर ऐसा व्यवहार करता है, तो उसे गे की संज्ञा दी जाती है, जब एक स्त्री दूसरी स्त्री के प्रति आकर्षित होकर ऐसा व्यवहार करती है, तो उसे लेस्बियन कहा जाता है।

महिला और पुरुष, दोनों के प्रति आकषर्ण और यौन व्यवहार की स्थिति को होमोसेक्सुअल कहा जाता है। बच्चा जिस लिंग के साथ पैदा होता है किंतु बाद में उसका व्यवहार इसके विपरीत हो जाता है तो वह ट्रांसजेंडर या किन्नर कहलाता है। गे, लेस्बियन, ट्रांसजेंडर, होमोसेक्सुअल सब मिलकर जिस समुदाय में आते हैं, उसे एलजीबीटीक्यू की संज्ञा दी जाती है। इस समुदाय का मानना है कि समाज उसके साथ भेदभाव करता रहा है, उसका शोषण करता रहा है, उसके अधिकारों से उसे वंचित करता रहा है। उनके आपस के संबंध विवाह के रूप में न स्वीकार होने से समाज में पति-पत्नी को जो फायदे मिलते हैं, वे उनके अधिकारी नहीं हो पाते जैसे कर में छूट, संपत्ति का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा, बच्चे पैदा करने या गोद लेने के अधिकार आदि।

विश्व के 34 देशों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दी है किंतु कहीं भी भेदभाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। नीदरलैंड, नार्वे, अमेरिका, इंग्लैंड, ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी, न्यूजीलैंड, कनाडा आदि देश उन देशों में शामिल हैं, जहां समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिली है। स्त्री-पुरु ष का पति-पत्नी के रूप में जो व्यवहार होता है समलैंगिक लोगों का उससे कुछ भिन्न होता है जो आम तौर पर छिपाने से भी छुप नहीं पाता, यह विषमता उनके लिए भारी पड़ती है। स्त्री-पुरुष का ब्याह स्वाभाविक प्रक्रिया है, प्रकृति के नियमों के अनुरूप है किंतु समलैंगिक संबंध  समाज में अप्राकृतिक माना जाता रहा है। इसे मानसिक रोग के रूप में भी देखा जाता है। अधिकांश धर्मो में भी ऐसा संबंध अमान्य है। समलैंगिक समुदाय समाज की इस पुरानी मान्यता के खिलाफ दुनिया भर में अपनी आवाज उठाता रहा है।

भारत में पहली बार 1992 में आईटीओ, नई दिल्ली में भेदभाव विरोधी आंदोलन की नींव रखी गई थी, 1998 में महिलाओं के एक ग्रुप ने सिनेमाघर में एक फिल्म, जिसमें समलैंगिक शादी दिखाई गई थी, को शिवसेना द्वारा हटाए जाने का विरोध किया, 1999 में कोलकाता में बड़ा प्रतिष्ठा परेड निकाली गई, 2001 में धारा 377 की वैधता को चुनौती देने वाली पिटीशन दाखिल की गई, 2022 में सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के अंदर मान्यता देने के लिए दो गे जोड़ों ने याचिका दाखिल की। याचिकाकर्ताओं के वकील का तर्क था कि शादी दो लोगों का मिलन है, न कि सिर्फ  महिला और पुरु ष का, ऐसे में उन्हें शादी करने का अधिकार न देना संविधान के खिलाफ है। शादी न कर पाने के कारण इस समुदाय के लोग न तो बैंक में खाता खोल सकते हैं, न घर के साझे मालिक बन सकते हैं, न बच्चा गोद ले सकते हैं, और शादी से मिलने वाली इज्जत से भी वे महरूम रह जाते हैं।  

हाल में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से मना कर दिया। उसके विचार में विवाह फंडामेंटल राइट नहीं है, स्पेशल मैरिज एक्ट में समलैंगिक शादी को मान्यता नहीं दी गई है, वह वैध है, किंतु उन्होंने माना कि किन्नर जोड़ों को साथ रहने का अधिकार है, उनके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। समानता की मांग है कि समलैंगिकता सहित सभी को अपने जीवन की नैतिक गुणवत्ता के आकलन का अधिकार है। इस विषय पर सार्वजनिक संवाद की आवश्यकता है, जो संसद और उसके बाहर होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार पैनल बनाकर इस मामले की जांच कर सकती है, और आवश्यक कानून बना सकती है। कानून बनाना विधायिका का काम है कोर्ट का नहीं। जो काम संसद को करना है, वह हम करके गलत संदेश नहीं देना चाहते। समलैंगिक विवाह से संबंधित कुछ विषयों पर जजों में एक राय नहीं थी। जैसे किन्नर जोड़ों को बच्चा गोद लेने के अधिकार का न्यायमूर्ति रवींद्र भट्ट ने विरोध किया, न्यायमूर्ति पीएस नरसिंह भी इससे सहमत थे, जबकि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति कौल इसके पक्ष में थे। कानूनी मान्यता न मिलने के बावजूद समलैंगिक विवाह के समाचार अक्सर आते रहते हैं। 1987 में मध्य प्रदेश में दो महिला पुलिसकर्मिंयों लीला रामदेव और उर्मिंला श्रीवास्तव ने गंधर्व विवाह किया, एक दूसरे को माला पहनाई और फोटो खिंचवाई। कुछ दिनों बाद यह फोटो लीक हो गई, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जेल में डाल दिया गया। हालांकि बाद में छोड़ दी गई। 29 मार्च, 2001 को छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में नर्स तनुजा चौहान और जय वर्मा ने वैदिक रीति से रचाया था। समलैंगिक शादी का परिवार और समाज में विरोध होता रहा है, शासन-प्रशासन उन्हें मान्यता नहीं देता, जोड़ों को घर छोड़ना पड़ जाता है, कुछ मामलों में वे आत्महत्या तक कर लेते हैं। 1991 में त्रिशूर में दो पुरु षों ने ऐसे संबंध बनाए जो समाज को मान्य नहीं हुए, 1993 में उन्होंने एक दूसरे को छुरा मार कर जीवन लीला का अंत कर लिया। 2018 में कारखाने में काम करने वाली आशा ठाकुर और भावना ठाकुर ने अहमदाबाद में नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली थी।

समलैंगिकों को पुलिस द्वारा तंग किए जाने और जेल तक में डाल देने के मामले सामने आते रहे हैं। 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में समलैंगिक विवाह को अपराध माना था, सितम्बर, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिक ब्याह को कानूनी मान्यता तो नहीं दी किंतु अपराध की श्रेणी से हटाने का आदेश दिया जो इस समुदाय के लिए आशा की किरण बना किंतु अक्टूबर, 2023 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। मामला अब सरकार के पाले में है, समलैंगिक समुदाय को इंतजार है कि वह क्या कदम उठाती है, विशेष विवाह अधिनियम में आवश्यक परिवर्तन करके उनके विवाह संबंध को मान्यता देती है, या नहीं?

प्रो. लल्लन प्रसाद


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