पराली जलावन : ठंड की शुरुआत और सांसों का संकट

Last Updated 26 Oct 2023 01:41:53 PM IST

अभी तो महज सुबह-शाम कुछ देर हल्की-सी ठंड लगती है, लेकिन दिल्ली और आसपास हवा का जहर होना शुरू हो गया है।


पराली जलावन : ठंड की शुरुआत और सांसों का संकट

जान लें, शरद पूर्णिमा का उजला चांद शायद ही इस बार आकाश में दिख पाए क्योंकि लाख दावों के बाद भी हरियाणा-पंजाब में धान के खेतों को अगली फसल के लिए जल्दी से तैयार करने के लिए अवशेष को जला देना शुरू हो चुका है।  

विदित हो केंद्र सरकार हर साल पराली जलाने से रोकने के लिए किसानों को मशीन खरीदने आदि के लिए राज्यों को पैसा देती रही है। 2018 से 2020-21 के दौरान पंजाब, हरियाणा, उप्र और दिल्ली को पराली समस्या से निबटने के लिए 1726.67 करेाड़ रुपये दिए गए थे। इस साल भी इस मद में 600 करोड़ रुपये का प्रावधान है, और इसमें से 105 करोड़ पंजाब और 90 करोड़ हरियाणा को जारी किए जा चुके हैं। विडंबना है कि इन्हीं राज्यों से सबसे अधिक पराली का धुआं उठ रहा है। जाहिर है कि आर्थिक मदद, रासायनिक घोल, मशीनों से पराली के निबटान जैसे प्रयोग जितने सरल और लुभावने लग रहे हैं, किसान को  उतना आकर्षित नहीं कर पा रहे या उनके लिए लाभकारी नहीं हैं।

इस बार शुरू के दिनों में बारिश कमजोर रही और अगस्त में बाढ़ जैसे हालात भी बन गए। इसके चलते कई जगह धान की रोपाई देर से हुई और पंजाब व हरियाणा के कुछ हिस्सों में धान की कटाई में एक-दो सप्ताह की देरी हो रही है। यह संकेत है कि अगली फसल के लिए खेत तैयार करने के लिए किसान समय के विपरीत तेजी से भाग रहा है। मशीन से अवशेष के निबटान के तरीके में लगने वाले समय के लिए राजी नहीं और अवशेष को आग लगाने को सरल तरीका मान रहा है। किसान का पक्ष है कि पराली को मशीन से निबटाने पर प्रति एकड़ कम से कम पांच हजार रुपये का खर्च आता है। अगली फसल के लिए इतना समय भी होता नहीं कि गीली पराली को खेत में पड़े रहने दें।

विदित हो हरियाणा-पंजाब में कानून है कि धान की बुवाई 10 जून से पहले नहीं की जा सकती। इसके पीछे धारणा है कि भूजल का अपव्यय रोकने के लिए मानसून आने से पहले धान न बोया जाए क्योंकि धान की बुवाई के लिए खेत में पानी भरना होता है। चूंकि इसे तैयार होने में लगने वाले 140 दिन, फिर उसे काटने के बाद गेहूं की फसल लगाने के लिए किसान के पास इतना समय नहीं होता कि फसल अवशेष का निबटान सरकार के कानून के मुताबिक करे। जब तक हरियाणा-पंजाब में धान का रकबा कम नहीं होता या खेतों में बरसात का पानी सहेजने के कुंड नहीं बनते और उस जल से धान की बुवाई 15 मई से करने की अनुमति नहीं मिलती; पराली के संकट से निजात नहीं मिलेगी। इंडियन इंस्टीटय़ूट आफ ट्रॉपिकल मेट्रोलोजी, उत्कल यूनिर्वसटिी, नेशनल एटमोस्फियर रिसर्च लैब और सफर के वैज्ञानिकों के संयुक्त समूह द्वारा जारी रिपोर्ट बताती है कि खरीफ की बुवाई एक महीने पहले कर ली जाए तो राजधानी को पराली के धुएं से बचाया जा सकता है। अध्ययन कहता है कि यदि एक महीने पहले किसान पराली जलाते भी हैं तो हवाएं तेज चलने के कारण हवा-घुटन के हालात नहीं होते और हवा के वेग में धुआं बह जाता है।  

किसानों के एक बड़े वर्ग का कहना है कि पराली नष्ट करने की मशीन बाजार में 75 हजार से एक लाख रुपये में उपलब्ध है। सरकार से सब्सिडी लो तो मशीन डेढ़ से दो लाख की मिलती है। उसके बाद भी मजदूरों की जरूरत होती है। पंजाब और हरियाणा, दोनों सरकारों ने पराली जलाने से रोकने के लिए सीएचसी यानी कस्टम हाइरिंग केंद्र खोले हैं। आसान भाषा में सीएचसी मशीन बैंक हैं, जो किसानों को उचित दाम पर मशीन किराए पर देते हैं। किसान यहां से मशीन नहीं लेता क्योंकि उसका खर्चा इन मशीनों के किराए के कारण प्रति एकड़ 5,800-6,000 रुपये तक बढ़ जाता है। जब सरकार पराली जलाने पर 2,500 रु पये का जुर्माना लगाती है तो किसान 6000 रुपये क्यों खर्च करेगा? इन मशीनों को चलाने के लिए 70-75 हॉर्सपावर के ट्रैक्टर की भी जरूरत होती है, जिसकी कीमत 10 लाख रुपये है, उस पर भी डीजल का खर्च अलग से है। जाहिर है कि किसान को पराली जला कर जुर्माना देना सस्ता और सरल लगता है। कुछ किसानों का कहना है कि सरकार ने पिछले साल पराली न जलाने पर मुआवजा देने का वादा किया था लेकिन हम अब तक पैसों का इंतजार कर रहे हैं।

पराली जलाने से रोकने की जो भी योजनाएं बनी हैं, वे कागजों-विज्ञापनों में तो लुभावनी हैं, लेकिन व्यावहारिक नहीं हैं। जरूरत है कि माइक्रो लेवल पर व्यावहारिक दिक्कतों को समझते हुए इनके निराकरण के स्थानीय उपाय तलाशे जाएं जिनमें दस दिन कम समय में तैयार होने वाली धान की किस्म को प्रोत्साहित करना, धान के रकबे को कम करना, केवल डार्क जोन से बाहर के इलाकों में धान बुवाई की अनुमति देना आदि शामिल हैं। मशीनें कभी भी पर्यावरण का विकल्प नहीं होतीं, इसके लिए स्वनियंतण्रही एकमात्र निदान होता है।

पंकज चतुर्वेदी


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