सामयिक : इंसेफेलाइटिस का ’कलंक‘ हटा
यमुना और सरयू जैसी सदानीरा नदियों की माटी और राम एवं कान्हा जैसे प्रेरक व्यक्तित्वों की धरती उत्तर प्रदेश की वैिक पहचान भले ही हो लेकिन कुछ साल पहले तक यह प्रदेश उलटबांसियों का सूबा माना जाता रहा।
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कभी इसे बीमारू प्रदेश कहा गया तो कभी उल्टा प्रदेश की संज्ञा से नवाजा गया। लेकिन पिछले कुछ सालों में यह राज्य अपनी कई उलटबांसियों से उबर गया है। बदलाव साफ दिख रहा है। ऐसे ही बदलावों में से एक है उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाके से जानलेवा इनसेफेलाइटिस रोग की विदाई।
करीब छह साल पहले तक सितम्बर का महीना आता नहीं था कि पूर्वाचल के अखबार इंसेफेलाइटिस यानी मस्तिष्क ज्वर की दुखद कहानियों से भर जाते थे। अखबार और टेलीविजन की सुर्खियां पूर्वाचल में इंसेफेलाइटिस द्वारा लीले जा रहे बच्चों के जानलेवा छटपटाहट भरे दृश्यों से अटी रहती थीं। खास तरह का डर और उदासी माहौल में भरी रहती थी। लेकिन अब ये कुदृश्य बीते दिनों की बात हैं। निश्चित तौर पर इसका श्रेय उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार को जाता है। पिछली सदी के सत्तर के दशक में शुरू हुई महामारी थमने का नाम नहीं लेती थी। इसका केंद्र पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया, महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बलिया जैसे जिले रहते थे। इसका एक तरह से केंद्र गोरखपुर रहता था। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद चुने जाते रहे। सांसद रहते इस समस्या का सवाल वे संसद में उठाते रहे लेकिन इस महामारी के समूल नाश की कौन कहे, उस दौर की ताकतें संजीदगी से थामने की कोशिश तक करती नजर नहीं आती थीं। वैसे वीरबहादुर सिंह के मुख्यमंत्री रहने के बाद उत्तर प्रदेश में पूर्वी उत्तर प्रदेश की बदहाली और उसकी समस्याओं की ओर ध्यान देने की किसी राजनीतिक ताकत या सत्ता ने जहमत नहीं उठाई लेकिन योगी आदित्यनाथ की सरकार आते ही स्थितियां बदलने लगीं। इंसेफेलाइटिस की महामारी को थामने की कोशिश तेज हुई। फलस्वरूप इंसेफेलाइटिस का डर खत्म हुआ। अब पूर्वाचल की माताओं को बीते कुछ साल पहले की तरह डर नहीं है कि कोई यम आएगा और उनके आंचल को छूएगा और निगल जाएगा। इंसेफेलाइटिस का पहला मामला सामने आने के बाद इसके प्रकोप को रोकने में 45 साल का लंबा समय लग गया। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब बहुत जल्द इंसेफेलाइटिस के उन्मूलन की घोषणा करने की बात कही तो यह केवल बयान भर नहीं था। पूर्वाचल के लाखों अभिभावकों के लिए आस्ति थी।
एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) और जापानी इंसेफेलाइटिस (जेई) के मामले पहली बार 1978 में सामने आए थे। बाद के वर्षो में इस मुद्दे पर सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक रोटियां सेंकने का ही कार्य हुआ। बदलाव लाने के ठोस उपाय नहीं दिखे। 1986 में इस बीमारी के पैटर्न में बदलाव दिखने लगा। इसका असर बच्चों पर सबसे ज्यादा होने लगा जबकि पहले यह बुजुगरे को ही प्रभावित करती थी। देखते ही देखते यह बीमारी पूरे पूर्वाचल में दशहत का पर्याय बन गई। विशेष तौर पर गोरखपुर और आसपास के जिलों में तो अभिभावक अपने बच्चों के भविष्य को लेकर बेहत चिंतित थे। यह वही दौर था जब पूर्वाचल के युवा बेहतर भविष्य की आस में दिल्ली, मुंबई, सूरत आदि शहरों की तरफ रु ख करने लगे।
इंसेफेलाइटिस बीमारी ने पूर्वाचल पर नकारात्मक असर डाला जिसकी छाप बाद के वर्षो में भी रही। हालांकि अब इंसेफेलाइटिस पर काबू पाया जा चुका है। हाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि इस बीमारी का समूल नाश करके ही दम लेंगे। लोक सभा के रिकॉर्डस के मुताबिक, आदित्यनाथ ने 2003-2014 के बीच गोरखपुर में बच्चों की मौत का मुद्दा कम से कम 20 बार उठाया। ये मुद्दे बीआरडी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के बुनियादी ढांचे की सीमाओं से लेकर एम्स की आवश्यकता तक के थे। योगी ने संसद में 13 जुलाई, 2009 को कहा था-‘1978 में पहली बार जापानी इंसेफेलाइटिस पूर्वी यूपी में आया था। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 2005 में 937 मौत, 2006 में 431, 2007 में 516, 2008 में 410 मौत हुई।’ योगी ने तत्कालीन राज्य सरकार की कार्यशैली को कठघरे में खड़ा किया था। योगी ने दिसम्बर, 2011 में फिर कहा था कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 2009 में 784 लोगों की मौत हुई जबकि 2010 में 514 और नवम्बर, 2011 तक 618 लोग जान गंवा चुके थे। विभिन्न संगठनों के दावों के मुताबिक, 1978 से अब तक इंसेफेलाइटिस से करीब 40 हजार से अधिक मौत हो चुकी हैं। 2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में इंसेफेलाइटिस को लेकर कटाक्ष भी किया था। उन्होंने तब कहा था कि पहली बार 1977 में इंसेफेलाइटिस के रोगी का पता चला, लेकिन किसी भी सरकार ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के 38 जिलों, जिनमें वीआईपी जिला रायबरेली भी शामिल था, में इसकी रोकथाम के लिए कोई प्रयास नहीं किया।
आज अगर यूपी सरकार इंसेफेलाइटिस के उन्मूलन की स्थिति तक पहुंची है, तो यह यूं ही नहीं हुआ। मुख्यमंत्री बनने के पहले दिन से योगी आदित्यनाथ इंसेफेलाइटिस की रोकथाम के लिए तत्पर थे। पूर्वाचल में पक्के घर बनवाए गए। गांव-गांव में बिजली पहुंचाने का बीड़ा उठाया गया। प्रत्येक गांव-कस्बे में जागरूकता अभियान चलाया गया। स्वच्छ भारत अभियान को अमलीजामा पहनाया गया। टीकाकरण का विस्तृत अभियान चलाया गया। स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ाई गई। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बीमारी के इलाज में सहायक संसाधन बढ़ाए गए, और इस बीच रिसर्च की संख्या भी बढ़ी। इन सब जतन से धीरे-धीरे इंसेफेलाइटिस काबू में आने लगा। यह इस बात का उदाहरण है कि सरकार ठान ले और लोग साथ दें तो असाध्य बीमारियों को भी ठीक होने में समय नहीं लगता। यूपी सरकार द्वारा इंसेफेलाइटिस पर नियंत्रण पूरी दुनिया के सामने सफलतम मॉडल है। पहले जहां गोरखपुर के अस्पताल में एक बेड पर तीन-तीन बच्चों के इलाज की दुखद तस्वीरें आती थीं, वहां अब वार्ड खाली हैं। इंसेफेलाइटिस पर नियंत्रण को दुनिया सराह रही है। कुछ समय पहले भारत दौरे पर आई बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की सह-संस्थापक मेलिंडा गेट्स भी यूपी सरकार की तारीफ कर चुकी हैं।
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