आर-ओ वॉटर के प्रति बढ़ानी होगी समझ

Last Updated 08 Apr 2023 10:52:09 AM IST

कहावत है, ‘हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती’। यह बात हर उस चीज के लिए लागू होती है जिसे हम सोना समझ लेते हैं। फिर वो चाहे आर-ओ (Reverse Osmosis) से निकलने वाला चमचमाता पानी ही क्यों न हो।


आर-ओ वॉटर के प्रति बढ़ानी होगी समझ

क्या आर-ओ का पानी जितना साफ बताया जाता है उतना ही गुणकारी भी होता है? क्या आर-ओ के पानी में वे सभी जरूरी तत्व होते हैं, जो हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता और विकास के लिए जरूरी हैं?

अक्सर देखा गया है कि दूषित पानी से गंभीर बीमारियां हो जाती हैं। दूषित पानी से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए और पानी को पीने योग्य बनाने के लिए आर-ओ व अन्य तरह के कई उपकरण बाजार में लाए गए। इन उपकरणों को बनाने वाली कंपनियों के दावे हैं कि उनके उपकरण सर्वश्रेष्ठ हैं। वे दूषित पानी से सभी कीटाणु निकाल कर उन्हें पीने योग्य व स्वच्छ बना देते हैं, परंतु यहां सवाल उठता है कि क्या कीटाणुओं के साथ-साथ आर-ओ जैसे ये आधुनिक उपकरण पानी में से जरूरी खनिज भी निकाल देते हैं? यदि इसका उत्तर हां है तो क्या हमें बिना जरूरी मिनरल वाला पानी पीना चाहिए? विश्व स्वास्थ्य संगठन और ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंर्डड के तय मानकों के अनुसार आर-ओ व अन्य तकनीकों से शुद्ध किए जाने वाले पानी को उसमें मौजूद टोटल डिजाल्वड सॉलिड्स या टीडीएस की मात्रा से स्वच्छ या पीने योग्य कहा जा सकता है। मानव शरीर अधिकतम 500 पार्ट्स प्रति मिलियन (पीपीएम) टीडीएस सहन कर सकता है। यदि यह स्तर 1000 पीपीएम हो जाता है, तो शरीर के लिए नुकसानदेह हैं।

फिलहाल आरओ से साफ हुए पानी में 18 से 25 पार्ट्स पीपीएम टीडीएस पाए जाते हैं जो काफी कम है। इसे स्वच्छ पानी तो कह सकते हैं, परंतु सेहतमंद नहीं है। 100 से 150 मिलीग्राम/लीटर टीडीएस लेवल के पानी को ही पीने के लिए सही बताया गया है। टीडीएस लेवल 300 मिलीग्राम/लीटर से अधिक वाला पानी स्वाद व सेहत के लिए खराब होता है। जब हमने सोशल मीडिया पर आर-ओ के पानी संबंधित मिलने वाली विभिन्न जानकारियों को देखा तो सोचा कि क्यों न इसकी जांच स्वयं ही कर ली जाए। तब हमने मापक की मदद से अपने घर व कार्यालय में अलग-अलग स्रेतों के पानी की जांच की। आर-ओ से निकलने वाले पानी की टीडीएस मात्रा 20 से 25 के बीच पाई गई। जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किए जाने वाले पानी की टीडीएस मात्रा 100-110 के बीच पाई गई।

वहीं जल बोर्ड के पानी को मिट्टी के घड़े में 8 घंटे से अधिक रखने के बाद उस पानी की टीडीएस मात्रा 125-130 के बीच आई। इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली जैसे शहर में जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किए जाने वाले पानी की गुणवत्ता काफी अच्छी है, परंतु जब अपने ही कार्यालय के एक सह-कर्मी के घर के पानी के सैंपल को जांच गया तो वहां आर-ओ का आंकड़ा तो नहीं बदला पर जल बोर्ड का आंकड़ा काफी अधिक पाया गया, 500 से ऊपर। ऐसे इलाकों में जब तक सही टीडीएस का पानी उपलब्ध न हो तब तक मजबूरी में आर-ओ का ही पानी पीना चाहिए। पानी में टीडीएस 100 मिलीग्राम से कम हो तो उसमें चीजें तेजी से घुल सकती हैं। प्लास्टिक की बोतल में बंद पानी में कम टीडीएस हो तो उसमें प्लास्टिक के कण घुलने का खतरा भी होता है। ऐसा पानी स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक होता है। ऐसा भी देखा गया है कि कई आर-ओ बनाने वाली कंपनियां पानी को मीठा करने के लिए उसका टीडीएस घटा देती हैं। 65 से 95 टीडीएस होने पर पानी मीठा तो जरूर हो जाता है, लेकिन उसमें से कई जरूरी मिनरल्स भी निकल जाते हैं। आर-ओ पानी में से जहां एक ओर बुरे मिनरल जैसे लेड (सीसा), आर्सेनिक, मरकरी आदि को निकाल देता है वहीं अच्छे मिनरल यानी कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि को भी निकाल देता है। इस कारण आर-ओ के पानी के लगातार उपयोग से आवश्यक मिनरल हमारे शरीर को नहीं मिल पाते और इनकी शरीर में कमी हो सकती है।

एक शोध के अनुसार, अगर नियमित रूप से आर-ओ का पानी पीया जाता है तो इसका बुरा प्रभाव हमारे पाचन तंत्र पर भी पड़ता है। इसके साथ ही यदि लम्बे समय तक आर-ओ के पानी को पीया जाए तो उससे हृदय संबंधी समस्याएं, थकावट, सिरदर्द और दिमागी समस्याएं भी हो सकती हैं। यही नहीं, पानी में मौजूद कार्बोनिक एसिड शरीर से कैल्शियम की मात्रा को भी कम करने का काम करते हैं। ऐसे में हड्डियों में कमजोरी और जोड़ों में दर्द भी शुरू हो जाता है। इसलिए आजकल काफी डॉक्टर आर-ओ का पानी न पीने की सलाह देते हैं। कुल मिलाकर हमें बाजार के प्रभाव में आकर नहीं चलना चाहिए। जल बोर्ड द्वारा सप्लाई किए जाने वाले पानी की गुणवत्ता जांच करने के बाद ही निर्णय लेना चाहिए कि वास्तव में आर-ओ की जरूरत है या नहीं। जिन इलाकों में टीडीएस लेवल तय मानकों से अधिक है या खारा पानी आता हो वहीं आर-ओ का इस्तेमाल करें।

रजनीश कपूर


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment