भारतीय राजनीति के बागी नायक

Last Updated 08 Oct 2022 01:43:49 PM IST

जयप्रकाश नारायण (जेपी) का नाम लेते ही हर भारतीय जो देश या समाज के प्रति जागृत रहता है उसके मन-मस्तिष्क में सुभाष चंद्र बोस जैसा कोई गांधी उभर कर आता है जो गांधी की तरह अनुशासित हो मगर प्रखरता, ओजस्विता और नेतृत्व कौशल में सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व के करीब हो, जो बागी तो हो मगर अराजक नहीं।


भारतीय राजनीति के बागी नायक

आजादी के बाद भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा आंदोलन ‘जेपी आंदोलन’ था जो भारत में गैर कांग्रेसवाद की स्थापना का कारण बना और आगे चलकर कांग्रेस की गलत नीतियों के खिलाफ एक बड़ा अभियान बन गया।

भारतीय राजनीति के ये एक ऐसे नायक थे जो संभवत: सुभाष चंद्र बोस के बाद सबसे ज्यादा युवाओं में लोकप्रिय थे। बागी नायक के रूप में जेपी की लोकप्रियता ऐसी थी कि उस वक्त के साहित्यकारों, कलाकारों ने भी जयप्रकाश नारायण के ऊपर अनेकों रचनाएं की। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने भी एक अद्भुत रचना की थी 1946 में जिसका पाठ पटना के गांधी मैदान में खुद दिनकर जी ने किया था। जिनकी कुछ पंक्तियां यूं है-कहते हैं उसको ‘जयप्रकाश’, जो नहीं मरण से डरता है, ज्वाला को बुझते देख, कुंड में, स्वयं कूद जो पड़ता है। है ‘जयप्रकाश ‘वह जो न कभी, सीमित रह सकता घेरे में, अपनी मशाल जो जला, बांटता फिरता ज्योति अंधेरे में। आते ही जिसका ध्यान, दीप्त हो प्रतिभा पंख लगाती है, कल्पना ज्वार से उद्वेलित, मानस-तट पर थर्राती है। वह सुनो, भविष्य पुकार रहा, ‘वह दलित देश का त्राता है, स्वप्नों का दृष्टा ‘जयप्रकाश’, भारत का भाग्य-विधाता है।’ वहीं महान गीतकार गोपाल प्रसाद नीरज जी ने लिखा कि -‘संसद जाने वाले राही कहना इंदिरा गांधी से, बच न सकेगी दिल्ली भी अब जयप्रकाश की आंधी से।’

मेरा गांव हरिहरपुर (बलिया) लोकनायक जय प्रकाश नारायण के जन्मस्थल सिताब दियारा के करीब है। नतीजतन अपने बचपन के दिनों में जयप्रकाश नारायण के व्यक्तित्व से मैं भी परिचित था। घर-परिवार के बड़े-बुजुर्ग जेपी की चर्चा करते और हम भी उन चर्चाओं में श्रोता बनकर बैठ जाते। मुझे आज भी याद है वह दिन जब दिल्ली के रामलीला मैदान में जेपी की ऐतिहासिक सभा हुई थी। इस सभा में शामिल होने के लिए मैं और मेरे पिता जी मोटरसाइकिल पर रामलीला मैदान पहुंचे। जेपी लंबे अर्से बाद दिल्ली आए थे। मेरे लिए उस सभा में मौजूद रहना एक बेहद खास अनुभव था। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि जेपी की इस सभा में लोग न पहुंचे; इसके लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उसी दिन ‘बॉबी’ फिल्म का प्रसारण दूरदर्शन पर किया था। जेपी से जुड़ी दूसरी घटना का जिक्र भी यहां दिलचस्प है। दिल्ली एयरपोर्ट पर मैं एक कनिष्ठ अधिकारी के रूप में पदस्थापित था।

मुबंई के जसलोक अस्पताल से जेपी को दिल्ली ले कर आया गया था। देश में हुए आम चुनाव का परिणाम आ गया था। जनता पार्टी को भारी बहुमत मिला था। जेपी की अगवानी में सैकड़ों नवनिर्वाचित सांसद एयरपोर्ट के सेरिमोनियल लाउंज में एकत्र हुए थे। वहीं चंद्रशेखर जी ने जेपी से मेरा परिचय कराया और भोजपुरी में ही कहा-‘इ अजित दूबे बाड़े आ अपने जिला के हवन।’ जेपी के नायकत्व को सारी दुनिया ने देखा जब पहली बार पांच जून, 1974 की विशाल सभा में जेपी ने ‘संपूर्ण क्रांति’ के दो शब्दों का उच्चारण किया था। गांधी परम्परा में ‘समग्र क्रांति’ का प्रयोग होता था। पांच जून को सायंकाल पटना के गांधी मैदान पर लगभग पांच लाख लोगों की अति उत्साहित जनसभा में देश की गिरती हालत, प्रशासनिक भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी, अनुपयोगी शिक्षा पद्धति और प्रधानमंत्री द्वारा अपने ऊपर लगाये गए आरोपों का सविस्तार उत्तर देते हुए जयप्रकाश नारायण ने बेहद भावातिरेक में जनसाधारण का पहली बार ‘संपूर्ण क्रांति’ के लिए आह्वान किया। जे.पी. ने कहा- ‘यह क्रांति है मित्रों! और संपूर्ण क्रांति है। विधानसभा का विघटन मात्र इसका उद्देश्य नहीं है। यह तो महज मील का पत्थर है। हमारी मंजिल तो बहुत दूर है और हमें अभी बहुत दूर तक जाना है।’

पांच जून को जेपी ने घोषणा की:-भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रांति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं, जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं, क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब संपूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और संपूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रांति- ‘संपूर्ण क्रांित आवश्यक है। इस व्यवस्था ने जो संकट पैदा किया है वह संपूर्ण और बहुमुखी है। इसलिए इसका समाधान संपूर्ण और बहुमुखी ही होगा। व्यक्ति का अपना जीवन बदले, समाज की रचना बदले, राज्य की व्यवस्था बदले, तब कहीं बदलाव पूरा होगा और मनुष्य सुख और शांति का मुक्त जीवन जी सकेगा। जेपी का ‘संपूर्ण गांधी का ‘समग्र’ है। ऐसे महानायक के जीवन से नई पीढ़ी को प्रेरणा लेकर राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका निभाने के लिए आगे आना चाहिए।

अजीत दुबे


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