केमिकल प्रदूषण : भारी न पड़ जाए उपेक्षा!

Last Updated 22 Sep 2022 01:24:55 PM IST

हाल के अध्ययनों से ऐसे चिंतित करने वाले परिणाम सामने आ रहे हैं कि दैनिक जीवन में ऐसे बहुत से उत्पादों का प्रसार तेजी से बढ़ा है, जिनसे अधिक संपर्क में आने से कैंसर की संभावना बढ़ सकती है।


केमिकल प्रदूषण : भारी न पड़ जाए उपेक्षा!

लेकिन सावधानी इसी में है कि जिन उत्पादों के बारे में गंभीर खतरों की काफी जानकारी मिल रही हैं, उनसे परहेज रखा जाए। उनका प्रसार तो न ही किया जाए।

एक समय सीएफसी या उससे मिलते-जुलते रसायनों को रेफ्रीजेशन उद्योग और कुछ अन्य उद्योगों के लिए बड़ी देन माना गया था। इस कारण इनका प्रसार बहुत तेजी से किया गया। यह तो बाद में पता चला कि इससे ओजोन परत को कितना नुकसान हो रहा था। मानव जीवन (या अन्य तरह का जीवन) कितना संकटग्रस्त हो रहा था। ओजोन परत के लुप्त होने या उसमें छेद होने से सूर्य की जीवनदायिनी किरणों में इतना बदलाव आ जाता है कि मनुष्यों में त्वचा कैंसर और मोतियाबिंद की संभावना काफी बढ़ सकती है। अनेक अन्य जीवों पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। अधिकांश महत्त्वपूर्ण फसलों (जिन पर प्रयोग किए गए) के बारे में यही पता चला है कि ओजोन परत के लुप्त होने का उन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। यहां तक कि समुद्रों की वनस्पति भी बुरी तरह प्रभावित होगी जिससे इन विशाल जल भंडारों का खाद्य चक्र और जीवन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।

प्राय: यह भ्रांति फैली हुई है कि मॉन्ट्रियल समझौते और इसी कार्य को आगे बढ़ाने वाले अन्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के फलस्वरूप यह समस्या सुलझ चुकी है। किन्तु हकीकत यह है कि सीएफसी व ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले अन्य रसायनों का उत्पादन और अवैध तस्करी बड़ी मात्रा में समझौते के बाद भी होता था। अंटार्कटिक क्षेत्र के ऊपर 12000 वर्ग मील तक बड़ा छेद ओजोन परत में देखा गया। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार ओजोन परत के कम होने के कारण प्रति वर्ष 3 लाख त्वचा कैंसर और 15 लाख मोतियाबिंद के अतिरिक्त केस आने की संभावना है। सत्तर वर्ष पहले सीएफसी के बारे में कोई नहीं जानता था।

केवल सात दशकों में एक नये रसायन का इतनी तेजी से प्रसार हुआ और उसने इतनी तबाही मचाई कि सूर्य की किरणों को ही खतरनाक बनाने का विश्वव्यापी खतरा उत्पन्न कर दिया। इस अनुभव के बाद हमें कम से कम यह सवाल जरूर पूछना चाहिए कि जिन अन्य नये रसायनों को हम दुनिया में तेजी से फैलाते जा रहे हैं, क्या उनके स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी असर के बारे में हम अपने को संतुष्ट कर चुके हैं? अनेक विशेषज्ञों ने कहा है कि इनमें से अधिकांश रसायनों के बारे में हमारी जानकारी अधूरी है, और विशेषकर अपने मिश्रित रूप में दो या दो से अधिक रसायन कितना नुकसान कर सकते हैं, यह जानकारी अपर्याप्त है।

लिवरपूल विश्वविद्यालय से जुड़े विशेषज्ञ डॉ. वाईवन हॉर्वड ने एक बहुचर्चित लेख में बताया है कि आज हमारे शरीर में 300 से 500 ऐसे रसायन मौजूद हैं, जिनका 50 वर्ष पहले अस्तित्व था ही नहीं या नहीं के बराबर था। खतरनाक रसायनों को जब मिश्रित किया जाता है, तो उनका खतरनाक असर 10 गुणा तक बढ़ सकता है जबकि वर्तमान जांच विभिन्न रसायनों की अलग-अलग ही की जाती है। अत: यदि सीएफसी वाली गलती नहीं दुहरानी है तो संकीर्ण आर्थिक स्वाथरे से ऊपर उठकर हमें विभिन्न रसायनों, उनके मिश्रणों के स्वास्थ्य और पर्यावरण असर का पता लगाना ही होगा और विश्व को खतरनाक रसायनों से बचाने के विशेष प्रयास करने होंगे।

संभवत: सबसे अधिक खतरा खाद्य चक्र को प्रभावित करने वाले खतरनाक रसायनों और नई तकनीकों से है। लंदन फूड कमीशन ने बताया था कि ब्रिटेन में 92 ऐसे कीटनाशकों/जंतुनाशकों को स्वीकृत मिली हुई है जिनके बारे में पशुओं पर होने वाले अध्ययनों से पता चला था कि इनसे कैंसर और जन्म के समय की विकृतियां होने की संभावना है। अमेरिका की नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज ने एक रिपोर्ट में कहा कि पेस्टीसाइड्स के कारण एक पीढ़ी में लगभग 10 लाख कैंसर के अतिरिक्त केस आने की संभावना है। विश्व स्तर पर औद्योगिक उपयोग में आने वाले रसायनों की संख्या तेजी से बढ़ती हुई एक लाख से ऊपर पहुंच चुकी है, पर इनसे जुड़े संभावित खतरों के बारे में अभी तक उपलब्ध जानकारी अधूरी है। इनवायम्रेट प्रोटेक्शन एजेंसी (यूएसए) के पूर्व अध्यक्ष रसल ट्रेन ने चेतावनी भरे शब्दों में कहा है कि व्यावसायिक उत्पादन में जो इतने नये रसायन आ रहे हैं, उनके बारे में हमें बहुत कम पता है, और  हम भूल जाते हैं कि इस जानकारी का अभाव जानलेवा हो सकता है। ऐसी बुनियादी जानकारी के अभाव में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से बचाव संभव नहीं है। अध्ययनों के अनुसार खतरनाक केमिकल्स के कारण प्रतिकूल परिणाम झेलने वाले बच्चों की संख्या विश्व स्तर पर कई मिलियन में हो सकती है (1 मिलियन  10 लाख)। नैशनल इंस्टीच्यूट ऑफ ऑक्यूपेशनल हेल्थ (यूएसए) ने कुछ समय पहले बताया है कि कैंसर उत्पन्न करने वाले रसायनों से संपर्क में आने वाले मजदूरों की संख्या कई मिलियन में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया है कि कीटनाशकों और जन्तुनाशकों के छिड़काव से विश्व में प्रति वर्ष 25 मिलियन मजदूरों और किसानों का स्वास्थ्य क्षतिग्रस्त होता है।
हाल ही में 28 देशों के 174 वैज्ञानिकों ने आपसी सहयोग से एक अध्ययन ऐसे सामान्य उपयोग वाले रसायनों के बारे में किया गया जिनसे कैंसर की संभावना हो सकती है। 85 में से 50 केमिकल ऐसे पाए गए जिनकी कम डोज से कैंसर जैसे लक्षण जुड़े हुए थे। लंदन फूड कमीशन ने पता लगाया कि यूके में उपयोग होने वाले कीटनाशकों और जंतुनाशकों में जिन 426 मुख्य रसायनों का उपयोग हो रहा था, उनमें से 164 कैंसर, जन्म के समय की विकृतियों और स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़े थे। अनेक खतरनाक रसायनों से होने वाली स्वास्थ्य की क्षति का आर्थिक आकलन भी कुछ अध्ययनों ने किया है। केवल एक देश (अमेरिका) में बच्चों पर सीसे के प्रतिकूल असर के बारे में अनुमान लगाया गया है कि यह क्षति एक साल में अरबों डॉलर की होती है। अनुमान इस आधार पर लगाया गया कि आगे चलकर बच्चों की उत्पादक क्षमता में कितनी कमी आएगी। इन तथ्यों से स्पष्ट है कि बड़े स्तर पर उपयोग होने वाले केमिकल्स के स्वास्थ्य पर असर की ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त करना और इस जानकारी के आधार पर समुचित कदम उठाना बहुत जरूरी है।

भारत डोगरा


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