अग्निपथ : सामान्य नहीं है यह हिंसा

Last Updated 22 Jun 2022 04:01:42 AM IST

अग्निपथ के विरोध में हिंसा और आगजनी ने पूरे देश को चौंकाया है। जरा सोचिए, इसमें ऐसा क्या है जिसके सामने आते ही विरोध के नाम पर भीषण आगजनी, तोड़फोड़ और हिंसा होने लगे?


अग्निपथ : सामान्य नहीं है यह हिंसा

अग्निवीर योजना में किसी का कुछ जाना नहीं है। योजना अनिवार्य नहीं है। विरोधियों ने देश-दुनिया में इसे ऐसे प्रस्तुत कर दिया है मानो हजारों-लाखों लोग सेना में भर्ती होने वाले थे जिनको इस योजना से वंचित कर दिया गया है।  भविष्य के लिए उनके रास्ते अवरु द्ध कर दिए गए हैं तथा केवल 4 वर्ष तक निश्चित वेतनमान पर सेवा लेकर उन्हें जीवन भर के लिए निराश्रित और बेरोजगार छोड़ दिया जाएगा यानी कुल मिलाकर नरेन्द्र मोदी सरकार की छवि ऐसी बनाई गई है कि यह रोजगार की तलाश कर रहे युवाओं और छात्रों की दुश्मन है।
ध्यान रखने की बात है कि जिस दिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस योजना की घोषणा की उसके कुछ ही देर बाद से इसका विरोध आरंभ हो गया जो धीरे-धीरे भारी हिंसा, आगजनी, तोड़फोड़ से बढ़ता चला गया। क्यों? अग्निवीर योजना की पूरी जानकारी इतनी जल्दी विरोध करने वालों के पास कैसे पहुंच गई? सर्वाधिक हिंसा बिहार में हुई। प्रश्न है कि आखिर बिहार में सबसे ज्यादा हिंसा क्यों? बिहार से सेना में जाने वाले युवाओं की संख्या औसत ढाई हजार है। उत्तर प्रदेश की भी औसत संख्या 6500 है। इतनी कम संख्या में जहां लोग सेना में जाते हों वहां इतनी हिंसा अग्निवीर के कारण तो नहीं हो सकती। बिहार से ज्यादा हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड से लोग सेना में जाते हैं।

जाहिर है, ऐसी हिंसा का मूल कारण कुछ और है। यह नहीं कह सकते कि इस आंदोलन में छात्र और नौजवान नहीं हैं, लेकिन आंदोलन केवल उनका नहीं है। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता। हिंसा के आ रहे विजुअल की गहराई से समीक्षा करेंगे तो साफ दिख जाएगा कि अनेक जगह आग लगाने वाले बिल्कुल पारंगत है। जिस तरह रेलवे की बोगी में पेट्रोल डालकर आग लगाई जा रही है, उससे पता चलता है कि इसका ज्ञान उनको है। सामान्य आंदोलनों की आगजनी में थोड़ा जला, थोड़ा रह गया, कहीं आग लगा फिर बुझ गया। इस आंदोलन में ज्यादातर जगहों की आगजनी में संपत्तियां पूरी तरह खाक हो गई।

एक विजुअल में साफ दिखा कि बिहार के तारेगाना रेलवे स्टेशन में स्टेशन मास्टर का केबिन व्यवस्थित तरीके से जल रहा है। तारेगना रेलवे स्टेशन में पुलिस के साथ मोर्चाबंदी में प्रदशर्नकारियों की ओर से गोलियां चलीं। गोलियां चलाने वाले क्या सामान्य छात्र और नौजवान थे? आप देखेंगे कि चेहरे पर कपड़ा बांधे, हाथों में लाठी, डंडे, पेट्रोल के कनस्तर लिए ऐसे लोगों की बड़ी संख्या इस हिंसा में चारों तरफ नजर आ रही है। बिहार में 8 बजे रात से सुबह 4 बजे तक ट्रेनों का चालन निश्चित किया गया क्योंकि पुलिस ने बताया 5 बजे सुबह से पत्थरबाजी शुरू हो जाती है। इतने पत्थरबाज कहां से आ गए? ऐसे अनेक डरावने तथ्य हैं, जिनके आधार पर  मोटा-मोटी अनुमान लगा सकते हैं कि विरोध और आंदोलन के नाम पर कैसी शक्तियां इसके पीछे हैं।

बिहार में राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टयिों ने आंदोलन और दूसरे दिन आयोजित बंद का समर्थन किया था। बंद के समर्थन में राजद, कांग्रेस जनाधिकार पार्टी तथा कम्युनिस्ट पार्टयिों के कार्यकर्ता जबरन बंद कराते देखे गए। 18 जून के दिन टेलीविजन में ज्यादातर बायट राजद नेताओं के आ रहे थे। लग रहा था जैसे यह आंदोलन उस पार्टी का है। राजद बिहार की बड़ी राजनीतिक शक्ति है। उसके सहयोग और साथ के बिना सरकार के विरु द्ध इतना बड़ा आंदोलन संभव नहीं था। बिहार में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री सहित कई नेताओं के घरों पर हमले हुए और तीन जिलों में कार्यालय जला दिए गए। यह सब किसी सामान्य आंदोलन का उदाहरण तो नहीं हो सकता।

वास्तव में देखा जाए तो 2018 के बाद से भारत में केंद्र की मोदी सरकार के विरोध में होने वाले अभियान ऐसे ही हिंसक होते गए हैं। नागरिकता कानून संशोधन के दौरान जामिया मिलिया से आरंभ हिंसा कई जगह गया। कृषि कानून विरोधी आंदोलन में लाल किले की हिंसा सबको याद है। पिछले दिनों एक परीक्षा को लेकर व्यापक पैमाने पर इसी तरह हिंसा हुई। ज्ञानवापी और भाजपा के एक प्रवक्ता के टेलीविजन डिबेट में दिए गए जवाब विरोध के नाम पर प्रदशर्न और हिंसा सबसे ताजा है।

देश में और बाहर ऐसी बड़ी शक्तियां किसी भी मुद्दे को लेकर विरोध के नाम पर हिंसा, आगजनी तथा उसके दुष्प्रचार के लिए पूरी तैयारी से काम करती हैं। इन शक्तियों की पूरी कोशिश भारत में केवल अशांति, अराजकता और हिंसा ही पैदा करना नहीं, दुनिया को संदेश देना है कि केंद्र की मोदी सरकार और प्रदेश की भाजपा सरकार से शासन संभल नहीं रहा, देश में उनके विरुद्ध आक्रोश है, इसलिए लोग सड़कों पर उतर कर आगजनी कर रहे हैं, कानून व्यवस्था विफल है।

दूसरी ओर सरकार के स्तर पर कभी इनसे कड़ाई से निपटने और इनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई का कदम नहीं उठाया गया। पहली बार उत्तर प्रदेश विरोध प्रदशर्न में हिंसा करने वालों के विरु द्ध कठोर कार्रवाई हो रही है। विरोधियों की समस्या यह भी है कि वे नहीं चाहते कि 2024 तक मोदी सरकार की लोकप्रियता बनी रहे। इसलिए ऐसी योजनाओं को हर हाल में विफल करना चाहते हैं, जिनसे मोदी सरकार की लोकप्रियता में वृद्धि हो। अग्निवीर योजना में प्रति वर्ष 60 हजार के आसपास दसवीं से बारहवीं पास नौजवान, जिनके लिए रोजगार नहीं होता, सेना में जाते  हैं तो वे जो कुछ सीखेंगे, नौकरी से निकलने के बाद उन्हें जो अवसर और लाभ मिलेंगे। वे मोदी सरकार के समर्थक बन सकते हैं। तो यह भाव भी विरोधियों के अंदर काम कर रहा है।  

सच कहा जाए तो लगता है कि जैसे धीरे-धीरे देश उस दशा में जा रहा है, जहां सरकार के विरोध के नाम पर ऐसी हिंसा और तोड़फोड़ सामान्य घटना बन जाएगी। इसमें पहली आवश्यकता तो लोगों के सामने सच लाने की है ताकि भ्रमित होने की गुंजाइश न रहे। हिंसा जब जहां हो वहां कुछ कार्रवाई करने की रणनीति के परे मोदी सरकार पिछले तीन वर्ष के ऐसे आंदोलनों की समीक्षा कर एक समग्र रणनीति बनाए ताकि उन तत्वों की पहचान कर उन से निपटा जाए और भविष्य में इस तरह के साजिश करने वालों से देश सुरक्षित रहे।

अवधेश कुमार


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