डॉ. एसपी मुखर्जी : एकता एवं अखंडता के स्वरूप
‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे।’ इसी दृढ़ संकल्प और राष्ट्रीय बोध के साथ डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने विरोध दशर्ते हुए 1953 में जम्मू कश्मीर में प्रवेश किया।
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देश का दुर्भाग्य ही है कि ‘एक भारत संगठित भारत’ का स्वप्न लिए वे कश्मीर के लिए बलिदान हो गए परंतु उनके बलिदान ने देश को एक नई दिशा और ताकत दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति एवं कुशल नेतृत्व का ही परिणाम है कि आज जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
आज डॉ. मुखर्जी की शहादत को याद करने का समय है, और उनके जीवन मूल्यों, आदशरे और दूरदर्शी सोच को अपनाने की आवश्यकता है। डॉ. मुखर्जी के विचारों में राजनीतिक सहिष्णुता थी और राष्ट्रीयता का गहरा भाव भी। कश्मीर नीति पर उन्होंने कहा था-‘उन लोगों के प्रति कुछ सहनशीलता दिखाएं, जो कश्मीर संबंधी आपकी नीति के विरोध में हैं। एक दूसरे पर पत्थर फेंकने का कोई लाभ नहीं है। एक दूसरे को सांप्रदायिक और प्रतिक्रियावादी कहने का कोई लाभ नहीं है। उनको समझ लेना चाहिए कि कुछ ऐसी बातें हैं जिन पर उनके दृष्टिकोण तथा उस दृष्टिकोण के बीच मूलभूत अंतर है, जिसे हम राष्ट्रीय दृष्टिकोण मानते हैं।’ 5 अगस्त, 2019 और 23 जून, 1953 का आपस में गहरा संबंध है। डॉ. मुखर्जी ने जो यात्रा 23 जून, 1953 तक पूरी की, उसे शिखर तक ले जाने का ऐतिहासिक काम प्रधानमंत्री मोदी ने किया। धारा 370 के अंधकार से न केवल जम्मू-कश्मीर को छुटकारा मिला, बल्कि जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को देश की मुख्य धारा से जुड़ने का सुनहरा अवसर भी मिला है। जिन योजनाओं से घाटी के हमारे भाई-बंधु अभी तक वंचित थे, सीधे जुड़ चुके हैं। विकास की हर एक पहल जम्मू-कश्मीर के अंतिम छोर तक जाती है। यही विजन और संकल्प डॉ. मुखर्जी का भी था। इसी परिकल्पना के साथ उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की। आज भारतीय जनता पार्टी उनके दिखाए मार्ग पर मजबूती के साथ आगे बढ़ रही है।
कहा जाता है कि जो व्यक्ति संस्थान या समाज अपने पूर्वजों के जीवन मूल्यों, आदशरे और बलिदान को याद रखता है, सदैव सर्वोच्च शिखर तक पहुंचता है। भाजपा ने इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए डॉ. मुखर्जी को सदैव जिंदा रखा है, और प्रेरणास्वरूप मानकर आगे बढ़ी है। ‘व्यक्तिसे बड़ा दल, दल से बड़ा देश’ के आदर्श को जनसंघ के दौर से लेकर 2014 में पूर्ण बहुमत की सरकार आने तक हर कार्यकर्ता और नेता ने अपनाया। डॉ. मुखर्जी विदेश नीति जैसे गंभीर विषयों पर मजबूत पकड़ रखते थे। महाबोधि सोसायटी के अध्यक्ष के रूप में ऐसे कार्य निष्पादित कर रहे थे, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण थे। सुदूर पूर्व के राष्ट्रों से भारत के संबंधों के प्रति आपके को हाल में ‘लुक ईस्ट एक्ट ईस्ट’ जैसी विदेश नीति के महत्त्वपूर्ण अवयव के रूप में देखा जा सकता है। स्वतंत्र भारत के पहले उद्योग मंत्री के रूप में भी उनकी छाप प्रथम औद्योगिक नीति (1948) पर स्पष्ट रूप से नजर आती है, जिसका विस्तृत स्वरूप ‘आत्मनिर्भर भारत के रूप में आज हमारे सामने है।’
मुखर्जी न केवल दूरदर्शी राजनेता, बल्कि महान चिंतक और शिक्षाविद् भी थे। मात्र 33 वर्ष की उम्र में ही कलकत्ता विविद्यालय के उपकुलपति नियुक्त हुए थे। उनका शिक्षा संवाद अपने आप में ज्ञान गंगा है जिसकी झलक एनईपी-2020 में हमें देखने को मिलती है। उनके अनुसार ‘जो हम अफसोस करते हैं, वह यह नहीं है कि पश्चिमी ज्ञान भारतीयों पर थोपा गया था बल्कि ये ज्ञान भारत को अपनी सांस्कृतिक विरासत के बलिदान पर आयात किया गया था। इसकी उपेक्षा न कर दोनों प्रणालियों के बीच उचित संश्लेषण की आवश्यकता थी, इससे भारतीय आधार को बहुत कम क्षति पहुंचती।’ शिक्षा व्यवस्था को लेकर उनका कहना था कि आम तौर पर एक भारतीय विविद्यालय को स्वयं को राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के जीवित अंगों में से एक मानना चाहिए।
डॉ. मुखर्जी शिक्षा को आजादी हासिल करने का सबसे प्रभावी मार्ग मानते थे। वो आजादी न केवल राजनीतिक अपितु आर्थिक, सामाजिक, वैचारिक और सांस्कृतिक भी हो। वे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। इसका पता उनके राजनीतिक जीवन की शुरु आत से ही स्पष्ट होता है। मात्र एक वर्ष की राजनीतिक यात्रा के उपरांत ही विनायक सावरकर ने उनसे प्रभावित होकर उन्हें हिंदू महासभा का अध्यक्ष मनोनीत कर दिया था। डॉ. मुखर्जी हमेशा कहते थे, ‘राष्ट्रीय एकता के धरातल पर ही सुनहरे भविष्य की नींव रखी जा सकती है।’ पीएम मोदी के नेतृत्व में पिछले 8 वर्षो में डॉ. मुखर्जी के इसी विजन को जमीनी स्तर पर लागू करने का काम किया गया है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के सिद्धांत पर आज मौजूदा सरकार राष्ट्र निर्माण के मार्ग पर प्रशस्त है। एकता एवं अखंडता के स्वरूप डॉ. मुखर्जी को राष्ट्र आज उनके बलिदान दिवस पर नमन करता है, और राष्ट्र निर्माण में हर नागरिक को उनका बलिदान अपना सर्वोच्च योगदान देने की प्रेरणा भी देता है।
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