बाढ़ : सालाना 19 साल पिछड़ता असम

Last Updated 22 Jun 2022 03:58:18 AM IST

बीस दिन में दूसरी बार असम बाढ़ से बेहाल हो गया। इस समय राज्य के 32 जिलों के 5424 गांव पूरी तरह पानी में डूबे हैं और कोई 47.72 लाख लोग सीधे प्रभावित हुए हैं। मौत का आंकड़ा 80 को पार कर गया है।


बाढ़ : सालाना 19 साल पिछड़ता असम

सबसे ज्यादा नुकसान पहाड़ी जिले डिमा हासो में हुआ जहां एक हजार करोड़ रुपये के सरकारी व निजी नुकसान का आकलन है। रेल पटरियां बह गई। पहाड़ गिरने से सड़कों का नामोनिशान मिट गया। यह शुरुआत है। अगस्त तक राज्य में पानी विकास के नाम पर रची गई संरचनाओं को उजाड़ता रहेगा। हर साल राज्य के विकास में जो धन व्यय होता है, उससे ज्यादा नुकसान दो महीने में ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों का कोप कर जाता है।
असम पूरी तरह से नदी घाटी में बसा हुआ है। इसके कुल क्षेत्रफल 78 हजार 438 वर्ग किमी. में से 56 हजार 194 वर्ग किमी. ब्रrापुत्र नदी की घाटी में है, और बाकी 22 हजार 244 वर्ग किमी. का हिस्सा बराक नदी की घाटी में है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के मुताबिक, असम का कुल 31 हजार 500 वर्ग किमी. हिस्सा बाढ़ प्रभावित है यानी असम के क्षेत्रफल का करीब 40 फीसद हिस्सा बाढ़ प्रभावित है जबकि देश भर का 10.2 फीसद हिस्सा ही बाढ़ प्रभावित है। अनुमान है कि बाढ़ से सालाना कोई 200 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। मकान, सड़क, मवेशी, खेत, पुल, स्कूल, बिजली, संचार आदि नष्ट हो जाने से यह नुकसान होता है। राज्य में इतनी मूलभूत सुविधाएं खड़ी करने में दस साल लगते हैं जबकि हर साल औसतन इतना नुकसान हो ही जाता है यानी असम हर साल विकास की राह पर 19 साल पिछड़ता जाता है। दुखद है कि आजादी के इतने सालों बाद भी बाढ़ नियंत्रण की कोई मुकम्मल योजना नहीं बन पाई है। यदि इस अवधि में राज्य में बाढ़ से नुकसान और बांटी गई राहत राशि को जोड़ें तो पाएंगे कि इतने धन में एक नया सुरक्षित असम खड़ा किया जा सकता था।
ब्रह्मापुत्र का प्रवाह क्षेत्र उत्तुंग पहाड़ियों वाला है, वहां कभी घने जंगल हुआ करते थे। उस क्षेत्र में बारिश भी जम कर होती है। बारिश की मोटी-मोटी बूंदें पहले पेड़ों पर गिर कर जमीन से मिलती थीं, लेकिन जब पेड़ कम हुए तो ये बूंदें सीधी जमीन से टकराने लगीं। इससे जमीन की टाप सॉयल उधड़ कर पानी के साथ बह रही है। फलस्वरूप नदी के बहाव में अधिक मिट्टी जा रही है। इससे नदी उथली हो गई है, और थोड़ा पानी आते ही इसकी जल धारा बिखर कर बस्तियों की राह पकड़ लेती है। असम में हर साल तबाही मचाने वाली ब्रह्मपुत्र और बराक नदियां, उनकी कोई 48 सहायक नदियां और उनसे जुड़ी असंख्य सरिताओं पर सिंचाई और बिजली उत्पादन परियोजनाओं के अलावा इनके जल प्रवाह को आबादी में घुसने से रोकने की योजनाएं बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है।

असम की अर्थव्यवस्था का मूल आधार खेती-किसानी है, और बाढ़ का पानी हर साल लाखों हैक्टेयर फसल को नष्ट कर देता है। ऐसे में किसान कभी भी कर्ज से उबर ही नहीं पाता। एक बात यह भी कि ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह का अनुमान लगाना बेहद कठिन है। इसकी धारा की दिशा कहीं भी, कभी भी बदल जाती है। परिणामस्वरूप जमीन का कटाव, उपजाऊ जमीन का नुकसान भी होता रहता है। यह क्षेत्र भूकंप ग्रस्त है। धरती हिलने के हल्के-फुल्के झटके आते रहते हैं। इससे जमीन खिसकने की घटनाएं भी खेती-किसानी को प्रभावित करती है। असम में मई से सितम्बर तक बाढ़ रहती है। दुनिया में नदियों पर बने सबसे बड़े द्वीप माजुली पर नदी के बहाव के कारण जमीन कटान का सबसे अधिक असर पड़ा है। राज्य में नदी पर बनाए गए अधिकांश तटबंध और बांध 60 के दशक में बनाए गए थे। अब वे बढ़ते पानी को रोक पाने में असमर्थ हैं। पिछले साल पहली बारिश के दवाब में 50 से अधिक स्थानों पर बांध टूटे थे। इस साल पहले ही महीने में 27 जगहों पर मेड़ टूटने से जलनिधि के गांवों में फैलने की खबर है।
ब्रrापुत्र घाटी में तट-कटाव और बाढ़ प्रबंध के उपायों की योजना बनाने और उसे लागू करने के लिए दिसम्बर, 1981 में ब्रrापुत्र बोर्ड की स्थापना की गई थी। बोर्ड ने ब्रrापुत्र और बराक की सहायक नदियों से संबंधित योजना कई साल पहले तैयार भी कर ली थी। केंद्र सरकार के अधीन एक बाढ़ नियंत्रण महकमा कई सालों से काम कर रहा है, और उसके रिकार्ड में ब्रrापुत्र घाटी देश के सर्वाधिक बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में से हैं। इन महकमों ने इस दिशा में क्या कुछ किया? उससे कागज और आंकड़ों को जरूर संतुष्टि हो सकती है, असम के आम लेगों तक तो उनका काम पहुंचा नहीं है। असम को सालाना बाढ़ के प्रकोप से बचाने के लिए ब्रrापुत्र और उसकी सहायक नदियों की गाद सफाई, पुराने बांध और तटबंधों की सफाई, नये बांधों को निर्माण जरूरी है।

पंकज चतुर्वेदी


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