योग सप्ताह : आत्मस्वरूप से जोड़ता है योग
भारत की पहल पर 2014 में संयुक्त राष्ट्र संघ के 177 देशों ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पास किया।
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सबसे दिलचस्प बात यह रही कि किसी देश की पहल को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पहली बार तीन महीने के भीतर ही मान लिया और वह भी बिना वोटिंग के। महासभा के पटल पर इस तथ्य को विशेष तरजीह दी गई कि ‘योग मानव स्वास्थ्य और कल्याण की दिशा में संपूर्ण नजरिया है।’ इस प्रकार एक नई थीम ‘सद्भाव व शांति के लिए योग’ के साथ 2015 में पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस उल्लासपूर्वक मनाया गया। कोविड-19 की वजह से पिछले दो वर्ष के दौरान योग दिवस समारोह पाकरे, स्टेडियमों व समुद्र तटों की बजाय डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आयोजित किया गया। इस बार आठवें योग दिवस समारोह का मुख्य आयोजन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में मैसूर में होगा।
मैसूर में यह आयोजन इसलिए भी अर्थपूर्ण हो जाता है कि अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त जाने-माने योगाचार्य बी.के.एस. अयंगर की कर्मभूमि रही है मैसूर। अयंगर ने योग की महत्ता को न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया, बल्कि इस मिथक को तोड़ने में भी कामयाब रहे कि योग केवल साधु-संतों और संन्यासियों के जीवन से जुड़ी विषयवस्तु है। वर्तमान दौर में हम जिन परिस्थितियों में रह रहे हैं, उनमें तन-मन को स्वस्थ रखने की अहमियत पहले से ज्यादा बढ़ चली है। योगगुरु अयंगर का कहना है, ‘योग हमें उन चीजों को ठीक करना सिखाता है, जिन्हें सहा नहीं जा सकता और उन चीजों को सहना सिखाता है, जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता।’ इस मायने में योग एक पूरा दशर्न है, जो हर कदम पर सहजता की ओर ले जाता है।
केंद्रीय आयुष मंत्रालय ने योग दिवस के मौके पर इस बार की थीम रखी है-‘मानवता के लिए योग’। प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि थीम के संदेश से स्पष्ट है कि कोविड-19 की दुारियों से उपजी विषम परिस्थितियों में योग मानवता का सेवक और रक्षा कवच बनकर सामने आया। आयुष मंत्रालय का मानना है कि योग का परिणाम है निरोगी काया। एम्स के एक अध्ययन के अनुसार नियमित रूप से योग करने से मस्तिष्क में अशांति उत्पन्न करने वाला ‘कॉर्टसिोल’ हार्मोन का स्रव नियंत्रित होने लगता है। योग-साधना वैदिक युग से चली आ रही है, ऋषि-मुनियों द्वारा विकसित इस अनूठी प्रणाली को हाल के बीस-पच्चीस वर्षो में दुनिया भर में नई पहचान और प्रतिष्ठा मिली है।
योग-साधना ऐसी पद्धति है, जो सीधे तौर पर मन, शरीर व आत्मा को कलात्मक ढंग से एक लय में सुचारु रूप से काम करने का रास्ता दिखाती है। इसलिए योग किसी व्यक्ति विशेष से बंधा हुआ नहीं है, सभी के लिए है, सारे विश्व के लिए है। अमूमन योग दिवस पर जो योग कराया जाता है, उसमें आत्मकल्याण और मानसिक पहलू की बजाय शारीरिक मुद्राओं की प्रैक्टिस और फिजिकल वर्कआउट पर ज्यादा जोर दिया जाता है। प्रत्याहार (चित्त पर पड़े कुसंस्कारों को उलीचना) और ध्यान (मेडिटेशन) पर चर्चा बहुत कम होती है। वेदों, उपनिषदों और गीता में योग का विशद वर्णन मिलता है लेकिन महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में योग को सटीक ढंग से परिभाषित किया गया है-‘योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:’ यानी आसनों का अभ्यास नहीं, बल्कि चित्त पर पड़े विकारों के शोधन की प्रक्रिया ही योग है। हम अपने निजी अहंकार और सांसारिक मोह-माया के कारण अपने ही स्वरूप से बिछुड़ गए हैं। योग के माध्यम से हम अपने मौलिक स्वरूप से जुड़ते हैं, यही योग की सार्थकता और खूबसूरती है। महर्षि पतंजलि कहते हैं कि असीम-अनंत से जुड़कर अपने आत्मस्वरूप में स्थित हो जाना ही योग है। प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था-‘योग भारत की प्राचीन परंपरा का बेशकीमती उपहार है। यह मस्तिष्क और शरीर के बीच समन्वय का प्रतीक है, मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है, विचार, संयम तथा संतुष्टि प्रदान करने वाला है। स्वास्थ्य तथा जगत की भलाई के लिए समग्र दृष्टिकोण को प्रदान करने वाला है। यह हैपिनेस को सुनिश्चित करने का कारगर उपाय है।’
1990 से कोरोना महामारी के प्रकोप तक हमारे देश ने तकरीबन तीस करोड़ लोगों को आर्थिक दुर्बलता की परिधि से बाहर लाने में सफलता प्राप्त की थी किंतु कोरोना के कहर ने तीन दशक की मेहनत पर पानी फेर दिया। कोरोना महामारी से उपजी कठिन परिस्थितियों के बीच भारत समेत दुनिया के तमाम देशों और उनके नागरिकों को अपनी जीवनशैली और आजीविका के बीच समन्वय और सामंजस्य स्थापित करना है। वर्चुअल र्वल्ड के इस दौर में मन का नया रोग ‘डिजिटल इगो’ जटिल आकार ग्रहण कर रहा है। पिछले कुछ वर्षो में खास तौर पर कोविड-19 की कालावधि में लोगों की वर्चुअल स्पेस पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। सोशल मीडिया के जरिए आपसी संबंधों को आंकने लगे हैं, विशेषज्ञों का मानना है कि ऑनलाइन होने की बनिस्बत आमने-सामने होने पर हमारा व्यवहार ज्यादा विनम्र होता है। इस नकारात्मक माहौल में योग ही संजीवनी साबित हो सकता है। डिप्रेशन, टेंशन, एंग्जाइटी से मुक्ति दिला सकता है।
कोरोनाकाल में यूनिसेफ द्वारा किए गए सर्वेक्षण में बच्चों और किशोरों में मानसिक अस्थिरता, संशय, स्मृति भ्रंश, उन्माद, स्लीप डिसऑर्डर आदि मानस रोगों में चिंताजनक वृद्धि हुई है। अमृत योग सप्ताह के दौरान आयुष मंत्रालय ने बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम तैयार किए हैं। स्कूलों में योग शिक्षा के अभिन्न हिस्से के तहत स्टूडेंट्स में मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने पर विशेष जोर दिया गया है। वर्तमान समय में जब तमाम देश कोरोना महामारी की आपदा से उभरने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं, तब भारत का सदियों से चला आ रहा योग विज्ञान, आयुर्वेदिक इम्यूनिटी-बूस्टर काढ़ा, और नेचुरोपैथी यानी टॉक्सिक्स विरेचन पद्धति पूरी मानव जाति को इस विकट स्वास्थ्य आपदा से उबारने में निश्चित ही सहायक होंगे। आजादी के अमृत महोत्सव-2022 के अवसर पर इस वर्ष विशेष रूप से दिव्यांगों, ट्रांसजेंडर्स, महिलाओं और बच्चों पर फोकस होगा। योग फॉर ह्यूमिनिटी थीम के अंतर्गत 25 करोड़ लोगों को योग से जोड़ने का निर्णय लिया गया है।
(लेखक योग विज्ञान संस्थान में अवैतनिक योग-शिक्षक हैं)
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