मुद्दा : बुल्डोजर और बेबसी
दिल्ली की जहांगीरपुरी हो या देश का कोई भी शहर, आज बुलडोजर के आतंक से सहमा हुआ है।
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हनुमान जयंती को हुई घटना के बाद जहांगीरपुरी में भी बुलडोजर चले वहां के लोग उसे प्रशासन द्वारा की गई साम्प्रदायिक कार्यवाही कह रहे हैं। प्रशासन इसे अतिक्रमण हटाने के कानून की सामान्य कार्यवाही बता रहा है। प्रशासन की मानें तो बुलडोजर केवल गैर-कानूनी दुकानों और लोगों द्वारा किए गए अतिक्रमण पर ही चला है।
कई टीवी चैनल इस पूरे घटनाक्रम को काफी मुस्तैदी से दिखाते रहे। वहां एक ओर तो जिनका मकान या दुकान गिराया गया उनका पक्ष सामने रखा जा रहा था, तो वहीं दूसरी ओर सरकारी तंत्र का भी पक्ष सामने रखा जा रहा था। जहांगीर पुरी के निवासियों की मानें तो उन्हें इस कार्रवाई के लिए एक भी नोटिस नहीं दिया गया। प्रशासन के अनुसार, हर एक दुकान या मकान को पर्याप्त नोटिस भेजा गया और उसके बाद ही यह कार्रवाई की गई। परंतु इस कार्रवाई का जहांगीरपूरी में हुए दंगे के बाद होना शायद यह संकेत नहीं दे रहा।
गौरतलब है कि अक्सर अतिक्रमण और अवैध निर्माण हटाने पर प्रशासन को काफी विरोध का सामना करना पड़ता है। परंतु सोचने वाली बात यह है कि कहीं भी किसी प्रकार का अतिक्रमण या अवैध निर्माण रातों रात नहीं हो जाता। प्रशासन के अधिकारी, फिर वो चाहे नगर निगम के हों या स्थानीय पुलिस के, बिना उनके संज्ञान के ऐसा नहीं हो सकता। दरअसल, अवैध निर्माण हों या अतिक्रमण, यदि उन्हें होते समय ही रोक दिया जाए तो ऐसी नौबत नहीं आती। परंतु भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी पहले रित की मोटी रकम लेकर न सिर्फ ऐसा होने देते हैं, बल्कि उच्च अधिकारियों या अदालत के दबाव में कार्यवाही का नाटक करते समय भी अच्छी खासी रकम ले लेते हैं।
लेकिन जहांगीरपुरी में जो हुआ वहां एक और बात गौर करने लायक है। जिस समय अतिक्रमण और अवैध निर्माण गिराए जाने की कार्रवाई शुरू ही हुई थी कि उसके चंद मिनटों में ही सुप्रीम कोर्ट ने वहां यथास्थिति बनाए रखते हुए इस पर रोक लगा दी। इस रोक की खबर मीडिया के माध्यम से तुरंत फैल गई परंतु प्रशासन के अधिकारियों ने बुलडोजर को नहीं रोका। उनका कहना था कि जब तक लिखित आदेश नहीं मिलेगा तब तक कुछ नहीं रु केगा।
जहांगीरपुरी में हो रही कार्रवाई के चलते किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना न हो इसके लिए वहां पर्याप्त मात्रा में पुलिस बल भी तैनात था। दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी मौके पर मौजूद थे। जब पत्रकारों ने पुलिस के अधिकारियों से पूछा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ऐसा क्यों हो रहा है? तो उनका जवाब था कि वो केवल नगर निगम के अधिकारियों को सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं। कार्रवाई रोकने या शुरू करने में उनका कोई हस्तक्षेप नहीं है। परंतु जब बुलडोजर थमा नहीं तो वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे यह बात सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में दोबारा लाए। कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए उसे तुरंत रोकने के आदेश दिए। फिलहाल वहां बुलडोजर जरूर रुक गए हैं परंतु बुलडोजर पर राजनीति नहीं थमी।
यहां यह सवाल उठता है कि ऐसी कार्रवाइयों में बुलडोजर का कहर केवल मकान या दुकान मालिक पर ही क्यों चलता है? क्या वे सारे अधिकारी या नेता जिनके अधीन यह इलाका आता है, वो दोषी नहीं हैं, जिन्होंने ऐसे अवैध निर्माण या अतिक्रमण होने दिए? उन पर कोई गाज क्यों नहीं गिरती? होना तो ऐसे चाहिए कि जिन-जिन अधिकारियों के कार्यकाल में ऐसे निर्माण या अतिक्रमण हुए हैं, उनसे भी जवाब मांगा जाए। कैफियत मांगी जाए और जरूरी लगे तो उन पर भी उचित कार्यवाही और कार्रवाई की जानी चाहिए। पुलिस की जिम्मेदारी कानून व्यवस्था बनाने के साथ ही शहर की सूरत बिगाड़ रहे अवैध निर्माण और अतिक्रमण की सूचना संबंधित नगर निकाय को देकर उसे रु कवाने की भी होती है। सभी पुलिसकर्मिंयों को इस बात का पूरा ज्ञान है कि अवैध निर्माण रु कवाने में उनकी क्या भूमिका होती है, परंतु वे इसे गंभीरता से नहीं लेते। इसलिए अवैध निर्माण और अतिक्रमण रातों रात पनपते रहते हैं।
अगर सभी एजेंसियां अपना काम सही समय पर जिम्मेदारी से करें तो ऐसी स्थित कभी भी उत्पन्न न हो और बुलडोजर की कार्यवाही और कार्रवाई के समय अधिकारी भी बेबस न हों। यकीनन यह मुफीद समय है जब उन अधिकारियों को भी जवाबदेह बनाया जाए जिनके कार्यकाल में ये अवैध निर्माण किए गए और सरकारी जमीन पर अतिक्रमण किए थे। वरना तो इस प्रकार की कार्रवाई के पीछे राजनीतिक लाभ-हानि ही ढूंढी जाएगी। बेशक, ऐसी कार्रवाई आज दिल्ली के किसी एक हिस्से तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि राजधानी दिल्ली में जहां कहीं भी अवैध कब्जे किए गए हैं, उन्हें तत्काल हटाया जाना चाहिए ताकि दिल्ली सांस ले सके।
(लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं)
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