अंबेडकर जयंती : सपने साकार करते मोदी
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने सामाजिक भेदभाव के विरोध में बड़े अभियान की शुरुआत की थी।
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बाबा साहेब को केवल दलित राजनीति से जोड़कर देखना उनके कद को छोटा करना होगा। बाबा साहेब श्रमिकों से लेकर किसान, मजदूर, बाल शोषण और महिलाओं के अधिकारों को लेकर भी मुखरता से लड़े। उन्होंने वर्ण, जाति, नस्ल, रंग जैसे सभी विभेदकारी तत्वों से मुक्त होने की होने की राह दिखाई। इस प्रकार डॉ. अंबेडकर ने पूरा जीवन जातिवाद के खात्मे व गरीबों, दलितों, शोषितों और वंचितों के लिए अर्पित किया था।
देश के राजनीति पर नजर डालें तो लगता है कि 1952 में पहले आम चुनाव के समय दलित राजनीति खास महत्त्व की थी ही नहीं। उस दौर में दलित, शोषित और वंचित एवं आदिवासी अपने वोट की ताकत से अनभिज्ञ था। समाज में जन जागृति का बड़ा अभाव था। ऐसे समय में बाबा भीमराव डॉ. अंबेडकर स्वयं चुनाव हारे पर अपने कर्मपथ से डिगे नहीं। समाज में लोगों के बीच में जा कर असमानता और भेदभाव की कुरीति को जड़ से खत्म करने के लिए संघर्ष करते रहे। जैसे-जैसे समाज के वंचित तबकों में जागृति आती गई, देश में दलितों के सशक्तिकरण की बात को प्रमुखता से उठाया जाने लगा। एक समय महाराष्ट्र में रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया अस्तित्व में तो आई लेकिन उसकी आरंभिक सफलता आंशिक ही रही। साठ के दशक में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम गठजोड़ की सुगबुगाहट हुई।
नब्बे के दशक में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के रूप में दलित राजनीति के बल पर चुनाव जीतने की कोशिश हुई पर ये सारे गठबंधन और पार्टयिां निजी स्वाथरे और महत्त्वाकांक्षाओं के चलते बहुत जल्द ही टूट गए। तब केवल दलितों को दलित बनाए रखने और गरीब को गरीब बनाए रखने की साजिश हुई जिसका परिणाम हुआ कि दलितों की बातें तो बहुत की गई लेकिन राजनीति में दलित राजनीति को महज वोट बैंक का जरिया ही समझा गया, उनके सशक्तिकरण के लिए किसी ने कोई कदम नहीं उठाए। यह भारतीय जनता पार्टी थी जिसने पहले अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में और अब सर्वस्पर्शी तथा सर्वसमावेशी विकास के प्रति लक्ष्य करके दलित सशक्तिकरण को नया आयाम दिया और दे रही है, और अंबेडकर के हर स्वप्न को जमीन पर साकार कर रही है। कांग्रेस, सपा, बसपा, राजद, डीएमके, टीएमसी जैसी पार्टयिों ने अपने शासन में माफिया, बाहुबलियों, दंगाइयों को राजनैतिक संरक्षण देकर भय, भूख और भ्रष्टाचार का शासन चलाया। कांग्रेस की यूपीए सरकार के 10 वर्षो में तो इसकी अति हो गई। जनता दस सालों की प्रचंड लूट और कुशासन को बेबसी से देखती रही। 2014 के आम चुनावों में जनता ने अपने ऊपर हुए अत्याचारों का बूथ पर जवाब दिया।
दलितों और गरीबों ने इस बार भाजपा को प्रचंड समर्थन दिया। इस ऐतिहासिक चुनाव में जातिवादी, परिवारवादी, लूट की राजनीति का मकड़जाल पूरी तरह से ढह गया। नरेन्द्र मोदी देश के प्रधान सेवक के रूप में आए और मोदी सरकार की गरीब कल्याण योजनाओं के सफल क्रियान्वयन से 2019 के चुनाव में भी पहले से अधिक प्रचंड बहुमत से दोबारा भारत के प्रधानमंत्री बने। दोनों बार जनता ने मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से जुड़ी आशा और विश्वास को समर्थन दिया है। मोदी के नेतृत्व में जिस तरह से राजनैतिक ध्रुवीकरण सोलहवीं लोक सभा के लिए हुए चुनाव में हुआ उससे न केवल क्षेत्रीय दल प्रभावित हुए, बल्कि दलित राजनीति भी। पीएम मोदी ने संसद में अपने संबोधनों में लगातार दलितों, पिछड़ों और गरीबों के उत्थान की बात की है। मोदी ने बाबा साहेब की 125वीं जयंती का भव्य आयोजन किया। रिकॉर्ड दो सालों में 195 करोड़ की लागत से डॉ. अंबेडकर अंतराष्ट्रीय केंद्र की स्थापना की गई। 2015 से 14 अप्रैल को समरसता दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया गया। 30 सितम्बर, 2015 को बाबा साहेब की स्मृति में 125वीं जयंती वर्ष के अवसर पर डाक टिकट, दस रु पये और 125 रुपये के सिक्के जारी किए गए।
यही नहीं, बाबा साहेब निर्मिंत संविधान के सम्मान में हर वर्ष 26 जनवरी को संविधान दिवस मनाने का निश्चय किया गया। महाराष्ट्र की तत्कालीन भाजपा सरकार ने लंदन 10, किंग हेनरी रोड पर स्थित उस भवन को खरीद लिया जहां अंबेडकर ने रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। केंद्र सरकार ने डॉ अंबेडकर चिकित्सा सहायता योजना के तहत 2.5 लाख रुपये सालाना की आमदनी वाले परिवारों को मुफ्त मेडिकल सुविधा देने की योजना शुरू की। इन तमाम योजनाओं के सफल क्रियान्वयन से आज बड़े पैमाने पर दलित भाजपा से जुड़ रहे हैं, और चुनाव दर चुनाव भारी समर्थन व बंपर वोट दे रहे हैं। भाजपा के ऊपर वह छाप नहीं रह गयी है कि यह सवर्णो की पार्टी है। चुनावी सफलता से इतर भी देखें तो दलितों, आदिवासियों, गरीबों एवं वंचितों के लिए लक्षित नीतियों और प्रगति व सत्ता में दलितों की व्यापक भागीदारी से देश सर्वागीण विकास के पथ पर निरंतर बढ़ रहा है।
भारतीय संविधान के प्रमुख शिल्पी बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती पर मां भारती के ऐसे महान सपूत को मैं सादर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। बाबा साहेब ने समतामूलक न्यायपूर्ण समाज बनाने के लिए आजीवन संघर्ष किया। डॉ. अंबेडकर के चिंतन के आयाम अत्यंत व्यापक हैं। वह श्रेष्ठ विचारक ही नहीं, महान कर्मयोद्धा भी थे। उनके विचारों में भेदभावरहित मानवीय विश्व की रचना का संदेश अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने सामाजिक दरार और खूनी क्रांति से बचाव के लिए सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन को तेज करते हुए प्रजातांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने पर बल दिया। वे सामाजिक-आर्थिक ढांचे में एक व्यक्ति और एक मूल्य के सिद्धांत को जमीनी हकीकत में बदलने के लिए प्रेरणा देते हैं। आज इस अवसर पर मेरी जनता जनार्दन से अपील रहेगी कि हम बाबा साहेब के जीवन तथा विचारों को ग्रहण कर उनके आदशरे को अपने आचरण में ढालने का संकल्प लें। जातिगत विद्वेष से निकल सौहार्दपूर्ण वातावरण का निर्माण कर प्रधानमंत्री मोदी के ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के लक्ष्य को पूरा करने में अपना हर संभव योगदान दें।
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय मीडिया सह-प्रमुख एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)
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