सरोकार : रुदाली बनतीं अफगानी महिलाएं

Last Updated 10 Apr 2022 12:10:01 AM IST

एक लंबी जद्दोजहद, अस्थिरता और अराजकता के बाद अफगानी औरतें जरा सी सांसें भर रही थीं और कुछेक उम्मीद भरे फरमानों के साथ खुद को थोड़ा संवारने की कोशिश ही कर रही थी कि एक नये तालिबानी फरमान ने उनके मसूबों की धड़धड़ाती ट्रेन को पटरी से नीचे उतार फेंका।


सरोकार : रुदाली बनतीं अफगानी महिलाएं

उनके उड़ान भरते पर को कायदों के फंदों में बुरी तरह उलझा दिया गया। इस रक्तरंजित भूमि पर उनके भय, अविश्वास और बेघर होने की पीड़ा का करु ण राग अब भी हर जगह सुनाई देता है। लंबे मांग और अनवरत आंदोलनों के बाद पिछले हफ्ते अफगानिस्तान में प्राइवेट यूनिर्वसििटयों को छात्र-छात्राओं के लिए खोल दिया गया है, लेकिन सहज नहीं सीमाओं के साथ। विशेष तौर पर लड़कियों के लिए कड़े निर्देश जारी कर दिए गए हैं। उन्हें कक्षा में कहां और कैसे बैठना है, उन्हें कौन पढ़ाएगा और कक्षा कितनी देर चलेगी इसे लेकर तालिबानी खासे सख्त हैं।
कक्षाएं शुरू होने से पहले तालिबान के शिक्षा प्राधिकरण ने एक दस्तावेज जारी कर महिलाओं को अबाय और नकाब पहनने, लड़के-लड़कियों के बीच पर्दे की एक दीवार लगाने, अलग-अलग समय अंतराल पर महिलाओं और पुरुषों को इमारत से बाहर निकलने के निर्देश दिए है। इतना ही नहीं अब प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में भी लड़के लड़िकयों को बांटने की  तैयारी चल रही है। ये सब आदिम काल की प्रतीति कराने वाला है। तालिबान का कट्टर शरिया कानून औरतों को इंसान ही नहीं समझता। उसके कई ऐसे दकियानूसी फरमान है जो नाकाबिलेगौर है।
मौजूदा वक्त अफगानी औरतों पर सितम का है। उनका वजूद खतरे में है। फिर भी खुद को विकसित और मौजू कहलाने वाले मुल्क चुप्पी साधे बैठे हैं। आखिर किसी ऐसे आक्रांता सरकार को कैसे स्वीकार्यता दी जा सकती है जो औरतों के बुनियादी हक की पैमाइश न करता हो। कोई भी कामयाब  और अमन पसंद  मुल्क महिलाओं की साझेदारी  के बगैर तरक्की की राह आसान नहीं कर सकता। जब तक औरतों के लिये जिल्लत और जलालत से मुक्त एक सभ्य, संस्कारित और उदार समाज का निर्माण नहीं होगा तब तक कोई भी मुल्क सभ्य और विकसित नहीं बन पाएगा।

समाज में औरतों का पूरे हक हकूक के साथ मौजूद होना ठीक उसी तरह लजिमी है जिस तरह एक जिस्म के लिए लहू का बहना, लेकिन एक ज्वलंत सवाल ये भी आखिर ऐसे दकियानूसी सरिया कानूनों की जड़ों पर प्रहार क्यों नहीं किया जा रहा।क्या वजह है कि इन्हें अब तक अस्तित्व में बनाए रख इनकी आड़ में  औरतों पर जुल्म ढाया जा रहा है। कोई भी रिवाज अप्रासंगिक और गैर मौजूं होने लगे तो उन्हें उखाड़ फेंकने में ही भलाई है। रस्मों रिवाज मनुष्य और समाज की बेहतरी और उत्थान के लिए होते है जब उनसे यातना और अमानवीयता झलकने लगे तो उनका तत्काल परिहार ही उचित है। अभी तालिबानियों के लिए मंथन और चिंतन का समय है। नए समाज को गढ़ने और पुरातन व सड़ी गली मान्यताओं को पार् में धकेलने का समय है। समय की नींव में रोशन बुनियाद को करीने से सजाने और संवारने का समय है। स्त्रियों की चीखों और सिसकियों पर नए अफगान की दीवार न खड़ी हो, जहीनी तौर पर तालिबानियों को इसका ख्याल रखना होगा। वरना इतिहास उन्हें कभी माफ़ नहीं कर पाएगा।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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