मुद्दा : बालू लूट पर कब लगेगी रोक

Last Updated 05 Apr 2022 01:25:25 AM IST

प्रकृति प्रदत सम्पदा मनुष्य की जीवन शैली संवारने में सहयोगी होती हैं, लेकिन मानवीय स्वार्थवश प्राकृतिक उपहारों का विदोहन के कारण असंतुलन पैदा हो जाता है।


मुद्दा : बालू लूट पर कब लगेगी रोक

परिणामस्वरूप समाज की वर्तमान संरचना और भविष्य की संभावनाएं एक साथ प्रभावित हो जाती हैं। बिहार की नदियों से बालू का उत्खनन, भंडारण एवं ढुलाई की बदतर स्थिति इसी की ओर इशारा करती है।  
यहां भूगर्भ से खनन की संभाव्यता नहीं थीं, परंतु परंपरागत उत्खनन ने विकास और समृद्धि का सहचर होने का प्रमाण दे दिया। बिहार की नदियों से मिलने वाली रेत और सोनहुला बालू ने एक साथ बिहार के अर्थ और व्यवस्था दोनों को प्रभावित कर दिया। आलम यह कि सरकार को प्रति वर्ष करीब 1600 करोड़ का राजस्व देने वाले इस व्यवसाय पर अंकुश लगाना बड़ी चुनौती हो गई। बालू की निकासी और ढुलाई के कारण यातायात से लेकर विधि-व्यवस्था तक बुरी तरह प्रभावित है। बालू घाटों पर अक्सर खूनी संघर्ष भी होता है। यूं तो इस राज्य में सोन, फल्गु, चानन, मोरहर और गंगा जैसी नदियों से बालू का उत्खनन होता है, परंतु सर्वाधिक मांग सोन नदी का सोनहुला बालू का है, क्योंकि इसके कण का व्यास 0.2 मिमी से 2 मिमी तक होता है। इसे मोटा बालू या बारीक बालू कहा जाता है। भवनों के निर्माण एवं प्लास्टर आदि में इस बालू की मांग बिहार सहित उत्तर प्रदेश के सुदूर जिलों तक है।

राज्य के 29 जिलों में बालू उपलब्ध है, लेकिन नदियों से उत्खनन के लिए पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति और माइनिंग प्लान अपेक्षित है। पिछले दो दशक से इस धंधे में नीलामी लेने वाली कंपनियों के समानांतर बड़ी संख्या में बालू माफिया पैदा हो गए। वे अकूत सम्पति अर्जन के साथ प्रशासनिक व्यवस्था को भी प्रभावित करने लगे हैं। धीरे-धीरे यह समस्या शासन-प्रशासन के लिए चुनौती बन गई, क्योंकि खादी, खाकी और माफिया गठजोड़ बालू व्यवसाय पर हावी हो गया। बालू के मौसम में सैकड़ों वाहनों की लंबी कतारें राजधानी पटना सहित भोजपुर, छपरा, पटना, औरंगाबाद, हाजीपुर, रोहतास एवं बक्सर जिलों में कभी छटती ही नहीं। हालात इतने बदतर हो जाते हैं कि इन जिलों की प्रमुख सड़कों से एंबुलेंस तक का निकलना मुश्किल हो जाता है।

प्रतिदिन औसतन दो से ढाई हजार ओवरलोडेड ट्रक सड़कों पर दौड़ते रहते हैं। बालू की बेलगाम लूट में प्रशासन और बालू माफियाओं की मिलीभगत 2021 में चरम पर पहुंच गई। इससे परेशान नीलामी लेने वाली ब्रॉडसन कमोडिटीज प्राईवेट लिमिटेड सहित अन्य कंपनियों ने 1 मई 2021 को उत्खनन से तौबा कर ली और हाथ खड़े कर दिए। सरकार ने विभागीय व्यवस्था शुरू  की। नतीजतन लूट और बढ़ गई। बालू लूट के कारण सोन नदी के तटीय इलाकों में किसी भी तरह पैसा कमाने की एक अप-संस्कृति पैदा हो गई, जिसकी जद में युवा पीढ़ी समा गई है। इसी दरमियान खनन विभाग के प्रधान सचिव हरजोत कौर बम्हवार के पत्र पर राज्य सरकार ने संज्ञान लेकर 41 पदाधिकारियों पर कार्रवाई की। 14 जुलाई 2021 की इस कार्रवाई की जद में सोन नदी के तटीय जिलों के थानाध्यक्ष, अंचलाधिकारी और खनन पदाधिकारी सहित एसपी तक आ गए। आर्थिक अपराध इकाई (ईओडब्ल्यू) की जांच में लगभग सभी पदाधिकारियों की संपत्ति आय से अधिक पाई गई। बिहार सरकार ने अपनी बालू नीति तो बना दी है, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप और वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की गाइडलाइन के पश्चात बालू उत्खनन, भंडारण एवं ढुलाई की प्रक्रिया काफी जटिल हो गई है। अब 1 जुलाई से 30 सितम्बर तक बालू खनन बंद रहता है, क्योंकि बरसात के दिनों में जल-जीवों का प्रजनन होता है। साथ ही खनन के कारण नदी का प्रवाह बदलने का खतरा रहता है। हालांकि खनन को लेकर देश के अन्य नदियों की तुलना में बिहार की नदियों की स्थिति भिन्न है। यहां प्रत्येक वर्ष बाढ़ आती है। जब बाढ़ का पानी अधिक आएगा, बालू भी आधिक आएगा। इन नदियों से अगर बालू का निकासी नहीं होगा तो बाढ़ का फैलाव और ज्यादा होगा।
इसके अलावा एक और दुारी है। ओवरलोड बालू ट्रकों के कारण सीमावर्ती सड़कें बमुश्किल एक साल भी नहीं चल पातीं, क्योंकि नदी से बालू को सीधे ट्रकों-ट्रक्टरों पर लादा जाता है। बालू गीला होने के चलते पूरे रास्ते ट्रकों-ट्रक्टरों से पानी टपकता रहता है। खनन और परिवहन विभाग द्वारा समय-समय पर अभियान चलाकर ऐसे वाहनों से जुर्माना वसूला जाता है, लेकिन इससे कोई खास असर नहीं हुआ। पर्यावरण को प्रभावित होते देख राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण एनजीटी ने नीलामी पर रोक लगा दी है। इसके विरुद्ध सरकार सर्वोच्च न्यायालय गई। न्यायालय ने सरकार से डिस्ट्रिक्ट सव्रे रिपोर्ट (डीएसआर) तलब करते हुए बिहार राज्य खनिज निगम को पर्यावरण नियमों के अनुकूल अपने स्तर से बालू का उत्खनन कराते हुए राजस्व वसूली का निर्देश दिया। फिलहाल बीएसएमसी द्वारा घाटों की बंदोबस्ती की अवधि विस्तार कराकर राजस्व वसूली की जा रही है। देखना है कि सरकार डीएसआर दाखिल कर नई व्यवस्था के अनुकूल बालू उत्खनन की अपनी मंशा जाहिर करती है या बालू लूट की परम्परा यथावत कायम रहती है।

भीम सिंह भवेश


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