मातृ मृत्यु-दर : बेहतर सुविधाओं से सुधरते हालात

Last Updated 31 Mar 2022 12:05:06 AM IST

भारत में किसी जमाने में गर्भधारण करने से लेकर बच्चा पैदा होने तक खराब खान-पान और लापरवाही की वजह से माताओं की मृत्यु-दर का अनुपात बहुत ज्यादा होता था।


मातृ मृत्यु-दर : बेहतर सुविधाओं से सुधरते हालात

लेकिन अब भारत ने इस विकराल समस्या पर अंकुश लगाने में सफलता पा ली है। इस कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन को रिपोर्ट जारी करनी पड़ी है कि भारत में माताओं के स्वास्थ्य की उम्दा देखभाल के कारण मृत्यु-दर का ग्राफ काफी नीचे चला गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक मानक तैयार किया हुआ है, जिसके अंर्तगत वे महिलाएं आती हैं, जो गर्भवती हो जाती हैं, और बच्चा पैदा करने के बाद 42 दिनों तक स्वस्थ रहती हैं। यदि उनकी इस बीच मृत्यु हो जाती है, तो इसे मातृ-मृत्यु में शामिल किया जाता है।

इसी मानक को आधार मानकर रजिस्ट्रार जनरल के सेंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम यानी एसआरएस कार्यालय ने भारत की 2017-19 में मातृ मृत्यु-दर यानी एमएमआर पर विशेष बुलेटिन जारी किया है। इस सव्रे के अनुसार एक लाख बच्चों के जन्म पर होने वाली माताओं की मृत्यु को मातृ-मृत्यु दर यानी एमएमआर कहते हैं। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया गृह मंत्रालय के अधीन है। जनसंख्या की गणना करने और देश में जन्म-मृत्यु का पंजीकरण रजिस्ट्रार जनरल के अंदर ही होता है। पंजीकरण के अलावा नमूना पंजीकरण प्रणाली यानी एसआरएस का उपयोग करके प्रजनन और मृत्यु-दर के संबंध में अनुमान भी लगाया जाता है। एसआरएस देश का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय नमूना सव्रेक्षण है, जिसके अन्य संकेतक राष्ट्रीय प्रतिनिधि नमूने के माध्यम से मातृ मृत्यु-दर जानने के करीब पहुंचते हैं। वर्बल ऑटोप्सी या वीए उपकरणों को नियमित आधार पर एसआरएस के माध्यम से दर्ज मौतों के लिए प्रबंधित किया जाता है, ताकि देश में एक विशिष्ट कारण से होने वाली मृत्यु-दर का पता लगाया जा सके। एमएमआर को लेकर भारत में मातृ मृत्य-दर में 10 अंकों की गिरावट आई है। यह 2016-18 के 113 से घट कर वर्ष 2017-18 में 103 हो गई थी, जो 8.8 फीसदी की गिरावट थी। देश में मातृ मृत्यु-दर वर्ष 2014-16 में 130, वर्ष 2015-17 में 122, 2016-18 में 113 और वर्ष 2017-19 में 103 रह गई थी। भारत ने 2020  में  एक लाख बच्चों के जन्म पर 100 माताओं की मृत्यु पर लाने का लक्ष्य रखा था। यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति यानी एनएचपी के लक्ष्य को प्राप्त करने के काफी करीब है, और 2030 तक एक लाख शिशुओं के जन्म पर 70 माताओं को खोने की स्थिति हो सकती है।

बहुत सारे विकसित देशों ने मातृ मृत्यु-दर को एकल अंक तक पहुंचा दिया है। इनमें इटली, पोलैंड और बेलारूस में एक लाख शिशुओं के जन्म पर सिर्फ दो माताओं की मौतें होती हैं, जबकि जर्मनी और ब्रिटेन में सात माताएं एक लाख शिशुओं के जन्म होने पर चल बसती हैं। कनाडा और अमेरिका में दस और उन्नीस माताएं दुनिया से विदा हो जाती हैं। भारत के अधिकांश पड़ोसी देशों-नेपाल में 186, बांग्लादेश में 173 और पाकिस्तान-में 140 मातृ मृत्यु दर है जबकि चीन और श्रीलंका ने मातृ स्वास्थ्य पर काफी ध्यान केंद्रित हुआ है। यहां 18 और 36 माताएं काल का ग्रास बनती हैं।

भारत में राज्यवार स्थिति देखें तो केरल 30, महाराष्ट्र 38, तेलंगाना 56, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश 58, झारखंड 61 और गुजरात में 70 माताओं ने जीवन त्यागा। केरल में सबसे कम मातृ मृत्यु-दर है। यहां 12 अंकों की गिरावट देखने को मिली है। यह राष्ट्रीय मृत्यु-दर से कम है। 2015-17 में केरल ने मातृ मृत्यु-दर को 42 के स्तर पर रोक दिया था। अब नौ राज्यों ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति द्वारा निर्धारित मातृ मृत्यु-दर को हासिल कर लिया है। उन राज्यों में कर्नाटक 83 और हरियाणा 96 भी अब शामिल हो गए हैं। उत्तराखंड 101, पश्चिम बंगाल 109, पंजाब 114, बिहार 130, ओडिशा 136 और राजस्थान में 141 मातृ मृत्यु-दर है। छत्तीसगढ़ 160, मध्य प्रदेश 163, उत्तर प्रदेश 167 और असम 205 पर हैं।

मातृ मृत्यु-दर को रोकने में सरकारी पहल भी हुई हैं, और विश्व स्वास्थ्य संगठन भी प्रयास करता आ रहा है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के भीतर जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजनाएं भी देश में चल रही हैं। पर देखने में आया है कि शहरों की अपेक्षा ग्रामीण माताएं मृत्य का ज्यादा शिकार होती हैं। इसके पीछे कुप्रबंधन भी देखने को मिलता है। स्वास्थ्य सेवाएं ग्रामीण इलाकों में समय पर उपलब्ध नहीं हो पातीं। इसमें दवा और एंबुलेंस का अभाव अक्सर खटकता है। इसके लिए सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं को पूरी तरह से निजी क्षेत्र में नहीं देना चाहिए। उतना ही देना चाहिए जितना नागरिक उनके खचरे को वहन कर सकते हों। सरकारी अस्पतालों की सेवाओं को हर स्तर पर बढ़ाया जाना चाहिए ताकि भारत का हर तबका स्वास्थ्य लाभ पाने के योग्य हो सके।

भगवती प्रसाद डोभाल


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