उत्तर प्रदेश : सहजता से आसान बनाया चुनाव
आप उत्तर प्रदेश के किसी भी तबके का चयन करके उसके साथ बात करें, चाहें वो कामगार हों या विद्वान।
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इस बातचीत में उत्तर प्रदेश के चुनाव के संदर्भ में एक बात जो सामान्य तौर पर निकल कर आएगी वो ये कि, ‘योगी जी ईमानदार हैं’ और जब एक विश्लेषक के तौर पर मैं इस बात की समीक्षा करता हूं तो पाता हूं कि ये ईमानदारी सामान्य ‘आर्थिक संसाधनों की ईमानदारी’ से आगे निकल कर ‘व्यक्तित्व की ईमानदारी’ पर ठहरती है। उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणामों पर आ रहे अनेक विश्लेषणों में एक पक्ष जो छूट सा रहा है, वो योगी आदित्यनाथ की व्यक्ति के तौर पर ईमानदारी और पारदर्शिता भी है।
पिछले कई दशकों में देश के समाचारपत्र घोटालों की खबरों से इतने भरे रहे हैं कि भ्रष्टाचार का अर्थ केवल आर्थिक गड़बड़ी तक सिमट गया और हम यह भूलते गए कि सामाजिक जीवन में व्यक्ति जो असल में है, उसे नहीं दिखाना भी एक बड़ा भ्रष्टाचार है। बल्कि कहें कि पेशेवराना कमी भी है। इन्हीं असमंजस के बीच उत्तर प्रदेश में नये-नये मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ का एक बयान आता है कि ‘मैं हिंदू हूं, इसलिए मैं ईद नहीं मनाता।’ यह बयान सुनकर लोग चौंक जाते हैं, और कुछ लोग तो इसे विवादास्पद बयान मानते हैं, कुछ ऐसे भी होते हैं जिनको यह बयान भड़काऊ लगता है, लेकिन अब, जब योगी आदित्यनाथ अपने दूसरे कार्यकाल की शपथ लेने जा रहे हैं, तब यह तो कतई स्थापित ही हो चुका है कि भड़काऊ और विवादास्पद की जगह यह बेहद ईमानदार बयान था। उस समय जब उत्तर प्रदेश का मुख्य विपक्षी दल अपने घोषित उम्मीदवारों में एक जाति विशेष के प्रत्याशियों की जाति को हटाते हुए उनके नाम की घोषणा कर रहा था तब फिर से योगी आदित्यनाथ का क्षत्रिय पर बयान आया कि ‘इस जाति में पैदा होना कोई अपराध नहीं।‘
लोग फिर चौंक उठते हैं कि यह बयान भस्मासुर का काम करेगा, यह तो जाति दंभ है लेकिन कहानी फिर वहीं लौटती है और जनता अपने मतों द्वारा स्थापित करती है कि सही-गलत से अलग यह बेहद ईमानदार बयान था।
कहना होगा कि योगी आदित्यनाथ का हर बयान और कार्य राज्य की राजनीति को पारदर्शी बनाता जा रहा था और समाज के हर वर्ग और भविष्य के हर राजनीतिक फैसले पर गहरा असर कर रहा था। राजनीतिक परिदृश्य में एक ताजा झोके की तरह महसूस हो रहा था। मुसलमान विरोधी स्थापित करने के विपक्ष और उनसे प्रेरित बुद्धिजीवियों के अभियान के बीच योगी आदित्यनाथ की सरकार में 17 फीसद आबादी वाले मुस्लिम समुदाय को सरकारी योजनाओं में 34 फीसद लाभ मिल रहा था। इसे क्या कहा जाए? यह एक शासक की ईमानदारी ही तो थी जो यह कह रहा था कि विकास सभी का, तुष्टीकरण किसी का नहीं। योगी ऐसा कह भर नहीं रहे थे, बल्कि अपने कहे का पालन करते हुए भी साफ-साफ दिख रहे थे। पिता की मृत्यु पर उनके अंतिम दशर्न को न जाने वाले योगी आदित्यनाथ जब बहन के जिक्र मात्र पर भावुक हो जाते हैं, तो उनकी भावनात्मक ईमानदारी लोगों तक पहुंची। जब मुख्यमंत्री निवास पर अपने निजी सामान में एक गठरी मात्र का योगी आदित्यनाथ ने जिक्र किया तो उनकी वो ईमानदारी लोगों तक पहुंची। कह सकते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने अपने ईमानदार और खरे अंदाज में उत्तर प्रदेश को चुनावों के लिए भाजपा के लिए सबसे बेहतर स्थिति बना दी। जनता के सामने योगी आदित्यनाथ एक नेता के तौर पर बिल्कुल स्पष्ट और पारदर्शी रूप में खड़े थे, कुछ ढका-छिपा नहीं। जनता ने किसी नेता में इस प्रकार की साफगोई पहली बार देखी और महसूस की। दरअसल, इस प्रकार की ईमानदारी से योगी आदित्यनाथ नेताओं की कतार से बिल्कुल अलग खड़े दिखाई देने लगे।
योगी आदित्यनाथ की इसी सहजता ने चुनाव को भाजपा के लिए आसान बना दिया। जिन योगी आदित्यनाथ ने अपने मुख्यमंत्री पद के पूरे कार्यकाल के दौरान आदर्श स्वरूब बनने के लिए कोई नकली प्रयास नहीं किया, उन्होंने ही चुनाव के दौरान भी 80/20 की साफगोई रखी। योगी आदित्यनाथ की इसी ईमानदारी और पारदर्शिता ने एंटी इंकम्बेंसी के चिथड़े उड़ा दिए। योगी आदित्यनाथ लगातार देश-दुनिया मुझे देख रही है जैसे प्रभावों से दूर रहे, कई बार उनके बयानों की ईमानदारी खुद भाजपा को असहज कर देती थी लेकिन वो सहज बने रहे। सांसद के पहले कार्यकाल से मुख्यमंत्री के दूसरे कार्यकाल तक योगी आदित्यनाथ बिल्कुल नहीं बदले, कोई दिखावा नहीं, पल-पल बदलती विचारधारा नहीं, तेवर में कमी नहीं और अभिनय तो बिल्कुल नहीं। उम्मीद है अपने दूसरे कार्यकाल में भी योगी आदित्यनाथ ऐसे ही सहज बने रहेंगे क्योंकि उनकी यह सहजता ही हिंदी पट्टी की राजनीति को स्पष्ट और पारदर्शी बनाने में सहायक होगी।
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