राजनीति : ममता की टूटी उम्मीद

Last Updated 21 Mar 2022 12:40:50 AM IST

हाल में संपन्न पांच राज्यों के चुनावों के नतीजों ने कई सवाल खड़े किए हैं। जैसे कि क्या अभी भी भाजपा यानी मोदी की लोकप्रियता बरकरार है?


राजनीति : ममता की टूटी उम्मीद

क्या कांग्रेस अब पूरी तरह से घरातल में चली गई है? क्या मायावती की माया से उत्तर प्रदेश के मतदाताओं का मोह भंग हो गया है? क्या 2024 में साइकिल और तेज गति से दौड़ेगी? एक अहम प्रश्न यह भी उठने लगा है कि राष्ट्रीय राजनीति में कौन आगे हैं, तृणमूल कांग्रेस की मुखिया एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी या आम आदमी पार्टी के संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल?  
वैसे तो केजरीवाल की तुलना में ममता बनर्जी अनुभवी और वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन दिल्ली की सत्ता पर लगातार कब्जा कायम रखने के बाद अब जब आम आदमी पार्टी ने पंजाब की सत्ता हासिल की तो सवाल उठने लगे कि क्या राष्ट्रीय पटल पर ममता बनर्जी से अरविंद केजरीवाल आगे निकल गए हैं? या 2024 आते-आते आगे निकल जाएंगे? पिछले आम चुनाव (2019) में पश्चिम बंगाल में भाजपा ने अभूतपूर्व सफलता हासिल करने के बाद 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में ‘अबकी बार दो सौ पार’ और ‘दो मई दीदी गई’ जो नारा दिया था वह तृणमूल कांग्रेस के ‘खेला होबे’ नारे के सामने असफल साबित हुआ और तृणमूल कांग्रेस लगातार तीसरी बार पश्चिम बंगाल में जोड़ा फूल (तृणमूल का चुनाव चिह्न) खिलाने में सफल रही। बस यहीं से ममता बनर्जी को लगने लगा था कि 2024 में वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विकल्प या भाजपा विरोधी खेमे की मुखिया बन सकती हैं, इसी मंशा से बीते आठ-दस महीनों के दौरान ममता और उनके सांसद भतीजे अभिषेक बनर्जी ने कई राज्यों का दौरा किया, कई दलों के असंतुष्ट नेताओं को अपने पाले में किया, लेकिन दस मार्च को आए पांच राज्यों के चुनावी नतीजों ने साबित कर दिया है कि पश्चिम बंगाल के बाहर न तो ‘जोड़ा फूल’ खिला और न ही ममता बनर्जी का कोई जादू चला। अलबत्ता, अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली से इतर पंजाब पर ध्यान दिया और पंजाब में सरकार बना ली। न केवल ममता से उम्र में कम, बल्कि अनुभव में भी कम अरविंद केजरीवाल की इस कामयाबी ने ममता की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अब पूरे देश में क्षेत्रीय पार्टी के दौर पर आम आदमी पार्टी ऐसी इकलौती पार्टी है, जिसकी दो राज्यों में सरकार है, और वह भी बिना किसी सहारे के, जबकि अनुभवी और तेज-तर्रार होने के बावजूद पश्चिम बंगाल के बाहर ममता बनर्जी के हाथ खाली हैं।  

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में अभूतपूर्व जीत के बाद कोलकाता नगर निगम, विधाननगर नगर निगम, सिलीगुड़ी नगर निगम, चंदननगर नगर निगम, आसनसोल नगर निगम में बोर्ड बनाने और सूबे की 102 नगर पालिकाओं पर कब्जा करने के बाद ममता बनर्जी खुद को न केवल मोदी के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश में जुटी थीं, बल्कि अगले आम चुनाव (2024) में प्रधानमंत्री अथवा किंगमेकर बनने का सपना भी देख रही थीं। वह सपना अब करीब-करीब टूट गया है, और ममता को अहसास भी हो गया कि राष्ट्रीय स्तर पर मोदी को टक्कर देना इतना सहज नहीं है। वैसे जो नतीजे आए हैं, उनका अनुमान लोगों को तो क्या ममता को भी पहले से ही था। तभी तो उन्होंने सार्वजनिक तौर पर मान लिया था कि अभी तो भाजपा यानी मोदी को परास्त करना मुमकिन नहीं।
ध्यान रहे कि ममता जो सपना देख रही थीं कि 2024 के लोक सभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जगह लेंगी। वह चार राज्यों (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और  गोवा) भाजपा की जीत और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से चकनाचूर हो गया। बात-बात पर केंद्र  सरकार विशेषकर मोदी को आड़े हाथों लेनी वाली ममता तमाम कोशिश के बावजूद बंगाल के बाहर जोड़ा फूल  खिलाने में उतनी कामयाब नहीं हो पाई, ममता की तुलना में आम आदमी पार्टी ने बाजी मार ली, अब दिल्ली के साथ-साथ पंजाब में आप आदमी पार्टी की सरकार है, लेकिन तृणमूल के पास बंगाल के अलावा कुछ नहीं।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि पांच राज्यों के नतीजे आने के बाद ममता बनर्जी की तुलना में अरविंद केजरीवाल का राष्ट्रीय राजनीति में कद बढ़ा है, क्योंकि दिल्ली के बाहर पहली बार आम आदमी पार्टी ने पंजाब में बड़ी जीत हासिल की है। अब शायद यह कहना गलत नहीं होगा कि विपक्ष के चेहरे के तौर पर ममता की राह अब और मुश्किल हो गई है, या हो जाएगी। पंजाब में आम आदमी पार्टी और शेष चार राज्यों में भाजपा क्या जीती, ममता बनर्जी की उम्मीद ही टूट गई। या यूं कहें कि ये नतीजे ममता के लिए गतिरोधक का काम करेंगे।

शंकर जालान


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment