मीडिया : जारी है एक ‘कुसूचना युद्ध’

Last Updated 06 Mar 2022 01:17:41 AM IST

समकालीन रूसी-यूक्रेन युद्ध जितना जमीन पर लड़ा जा रहा है, उससे ज्यादा मीडिया में लड़ा जा रहा है।


मीडिया : जारी है एक कुसूचना युद्ध, सुधीश पचौरी

आप कितने भी तेजतर्रार रिपोर्टर या कैमरामैन हों और कितना भी चाहें कि ऐन ‘एक्शन की जगह’ से रिपोर्ट करें, लेकिन इस घमासान के बीच इसे न तो कोई कर सकता है, न उसे कोई करने देगा। यों भी  चलते गोले या बम नहीं देखते कि कौन क्या है? हमारे मीडिया में जिस तरह का युद्ध आ रहा है, वह बनाया गया एक संपादित युद्ध है, जिसे रूसी  सेना, यूक्रेन की सेना तो बना ही रही हैं, लेकिन सवरेपरि नाटो और अमेरिका की सीआईए भी बना रही है।
यह बात भी एक चैनल पर एक युद्ध व्याख्याकार ने ही कही कि इस युद्ध के साथ बहुत सा ‘कुसूचना युद्ध’ भी जारी है। इसलिए जो भी वीडियो या सूचनाएं अखबारों, रेडियो, टीवी या सोशल मीडिया में दिखती हैं, उनमें से बहुत कुछ किसी न किसी बड़ी शक्ति द्वारा ‘बनाई गई’ होती हैं, लेकिन यह कभी बताया-जताया नहीं जाता। बताया यही जाता है कि हमारे चैनल जो दिखा रहे हैं, एकदम ‘जीरो ग्राउंड’ से दिखा रहे हैं। इस युद्ध को हमसे बेहतर कोई नहीं दिखा रहा! जाहिर है कि यह युद्ध भी एक ‘निर्मिति’ है। उसकी सूचना-कुसूचना भी ‘निर्मिति’ ही है, और दुनिया के लोगों को दिलों को अपने पक्ष में जीतने के लिए यह ‘सूचना कुसूचना युद्ध’ लड़ा जा रहा है।

यह भी हमारे एक चैनल में आकर कुछ एक्सपर्ट ने बताया कि इस युद्ध से सबसे अधिक खुश अमेरिका है, उसके कॉरपोरेट हैं, बड़ी कंपनियां हैं, सूचना तकनीकी कंपनियां हैं क्योंकि उन्हीं का मारकेट बढ़ रहा है, उनका स्टॉक चढ़ रहा है। इस तरह इस युद्ध को जितना यूक्रेन लड़ रहा है, उससे अधिक उसके पीछे से सक्रिय अमेरिका, नाटो व यूरोप लड़ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण युद्ध में रूस के पक्ष का एकदम गायब कर दिया जाना है। जो भी पब्लिक ओपिनियन बन रही है, अमेरिकी नजरिए से बन रही है। अमेरिका इस प्रकार के ‘सूचना-युद्ध’ में माहिर है। पूरे ‘शीत युद्धकाल’ (1945 से 1990) के दौरान अमेरिका और उसकी सीआईए ने सोवियत संघ के खिलाफ जमकर कुसूचना युद्ध चलाया था, जिसमें वह बहुत हद तक कामयाब भी रहा। वह एक बार फिर से एक्शन में है। इस नये सूचना-युद्ध की शुरुआत इस युद्ध के ऐन शुरू में ही हो गई थी। हमले के बाद जैसे ही अमेरिका ने रूस पर प्रतिबंध लगाए तो देखते-देखते अमेरिका की सूचना तकनीक संबंधी तमाम कंपनियों ने भी रूस पर प्रतिबंध लगा दिए। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मो  ने भी अपने शिकंजे कस दिए और  इंटरनेट संजाल कंपनियों ने भी प्रतिबंध लगा दिया। प्रिंट मीडिया, रेडियो, टीवी तो पहले से ही रूस विरोधी प्रचार में संलग्न थे। इसका नतीजा है कि मीडिया में जितनी सूचना यूक्रेन व पश्चिम के पक्ष की आती है, रूस के पक्ष की सूचना उसके सौंवे पक्ष में नहीं बैठती। इस कुसूचना युद्ध के बारे में रूस के रक्षा मंत्री ने अपने रूसी चैनल पर ही बताया कि पश्चिमी देश किस तरह से रूस के हमले के विरोध में कुसूचना युद्ध चला रहे हैं, और रूस के पक्ष को आने ही नहीं देते।
उदाहरण के लिए यूक्रेन कहता है कि यूक्रेन ने रूस के नौ हजार सैनिक मार दिए हैं, जबकि सचाई है कि पांच सौ के करीब रूसी सैनिक अब तक मरे हैं। बहुत से चैनल इसे ‘डेविड बरक्स गोलिएथ’ की लड़ाई बता रहे हैं, और इस रूपक से यूक्रेन को हमदर्दी दे रहे हैं कि देखा, छोटा सा देश किस बहादुरी से लड़ रहा है। यह जितना ‘सूचना-कूसचना युद्ध’ है, उतना ही ‘सुछवि -कुछवि युद्ध’ भी है।
अपने चैनलों में भी इस युद्ध की कुछ छवियां पक्की हो चली हैं। जैसे यूक्रेन विक्टिम है, रूस बर्बर आक्रांता है। जेलेंस्की पॉपूलर है, हीरो है, सुपर हीरो है, फाइटर है, निडर है, फौजी ड्रेस में फ्रंट से लड़ रहा है, उसकी जनता भी लड़ने के लिए बंदूक चलाने की ट्रेनिंग ले रही है। इतना ही नहीं, ‘मिस यूक्रेन’ तक क्लाशनिकोव उठाए ‘पोज’ दे रही हैं। इसी तरह, पुतिन तानाशाह है, पागल है, युद्धोन्मादी है, अहंकारोन्मादी है, नरसंहारक है, नया हिटलर है।  दुनिया का नियंता होना चाहता है। जीत गया तो दुनिया में दर्जनों पुतिन हो जाएंगे और दुनिया को खत्म कर देंगे, लेकिन यह पक्ष नहीं बताया जाता कि किस तरह से अमेरिका ने, नाटो ने रूस के साथ की गई संधियां तोड़ी हैं। यूक्रेन को परमाणुरहित करने की जगह उसे सबसे बड़े परमाणु प्लांट बनाने के लिए तैयार किया है, यूक्रेन में नाटो परमाणु मिसाइलें तैनात करना चाहता है ताकि रूस डरा रहे। बार-बार मनाने पर भी कोई न माना तो रूस ने हमला किया और कह कर किया।

सुधीश पचौरी


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