सरोकार : महिला उत्पीड़न : कब सुधरेगा बिहार?
पखवाड़े भर पहले घटी कुछ छिटपुट घटनाओं ने बिहार के चेहरे पर एक बार फिर बदनुमा दाग लगाया है। दुनियाभर में अस्तम की लड़ाई लड़ने वाले बिहारियों को इससे गहरा धक्का लगा है।
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शिक्षा, लिंगानुपात, मद्यपान निषेध, रोजगार में महिलाओं को आरक्षण जैसे कुछ सकारात्मक सूचकांक के जरिए सुशासन की सीढ़ियां चढ़ने की कोशिशें तो इस राज्य ने खूब की पर अपनी संकीर्ण, रूढ़िवादी और तालिबानी सोच से पार न पा सका। प्रगतिशील छवि वाले इस प्रांत में सुशासन के स्तर पर कई झोल हैं।
हाल की ऐसी कई घटनाएं हैं, जिन पर संजीदगी से पड़ताल जरूरी है। मसलन गया के बेलागढ़ की ताजा घटना; जिसमें बिहार पुलिस का बर्बर चेहरा सामने आया है। यहां बालू माफियाओं को मदद पहुंचाने के आरोप में 13 वर्षीय नाबालिग बच्ची सहित छह महिलाओं को हाथ पैर बांध कर घंटों बंधक स्थिति में रखा गया। तलाशी के नाम पर न केवल विकलांगों, बुजुगरे बल्कि महिलाओं की भी बेरहमी से पीटा गया।
दूसरी घटना नवादा जिले के गोरियाडीह गांव की है। जहां एक स्थानीय महिला की डायन होने के आरोप में बेरहमी से हत्या कर दी गई। पहले तो उसके साथ मारपीट की गई फिर पेट्रोल और केरोसिन तेल डालकर उसे आग लगा दिया गया। आग से बचने के लिए तलाब में कूदी महिला को फिर भी बख्शा नहीं गया और पत्थर से कुचल कर उसकी जान ले ली गई। तीसरी घटना दरभंगा की है, जहां एक महिला पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाते हुए उसका सिर मुंडवा कर उसके चेहरे पर कालिख और चूना लगाकर पूरे गांव में घुमाया गया और गाली-गलौज की गई। हैरानी है कि ये फरमान गांव की पंचायत की ओर से जारी किया गया था। उपरोक्त घटनाओं को सामान्य या प्राय: घटित होने वाली घटना के नाम पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। किसी में देश या राज्य के मूल चरित्र को समझने के लिए वहां स्त्रियों की आर्थिक, सामाजिक और व्यावहारिक स्थितियों का बुनियादी आकलन अत्यावश्यक है।
फैमिली हेल्थ सर्वे की ताजा रिपोर्ट के अनुसार राज्य में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के आंकड़ों में भारी बढ़ोतरी हुई है। यहां 18 से 49 उम्र वर्ग की तकरीबन चालीस प्रतिशत महिलाएं मानसिक और शारीरिक हिंसा की शिकार हैं। शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में यह प्रतिशत कहीं अधिक है। एनसीआरबी के मुताबिक पिछले साल घटित दुष्कर्म की घटनायें ये बताती हैं कि यहां हर महीने लगभग 101 महिलाएं बलात्कार की शिकार हुई हैं। कानून अपना काम करता रहेगा, लेकिन समाज में इन अपराधों की शिकार महिलाओं की पीड़ा क्या इससे कम हो जाएगी? भारत में डायन बताकर महिलाओं की हत्या का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। इज्जत के नाम पर की जाने वाली हत्याएं, दहेज के लिए बहुओं को जलाने की घटनाएं,कन्या भ्रूण हत्या और महिलाओं की अस्मत से खिलवाड़ जैसी घटनाएं किसी भी सभ्य समाज के चहेरे पर कालिख की मानिंद है। राज्य महिला आयोग और महिला समाज कल्याण जैसी संस्थाएं भी गूंगी बन कर तमाशा देखती हैं। हैरानी होती है कि चांद पर कदम रखने से लेकर मंगल तक पानी तलाशने की कवायद करने वाला देश अब भी डायन प्रथा, ऑनर किलिंग जैसे कुचक्रों में फंसकर अपनी बेशकीमती स्त्री संपदा खो रहा है। ध्यान रहे, स्त्रियों के अपमान की इबारत पर कोई भी देश अपना स्वर्णिम इतिहास नहीं लिख सकता।
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