गणतंत्र दिवस : हम भारत के लोग
जनवरी 26, 1950 को देश ने अपना संविधान स्वीकार किया। संविधान स्वीकृति के बाद हम गणतांत्रिक देश बन गए।
गणतंत्र दिवस : हम भारत के लोग |
देश की भौगोलिक, सामाजिक एवं आर्थिक विषमताओं को ध्यान में रखते हुए हमारे संविधान निर्माताओं ने भविष्य में देश के सम्मुख आने वाली चुनौतियों का समाधान करने में सक्षम संविधान देश को दिया। संविधान की प्रस्तावना का प्रारम्भ करते हुए उन्होंने ‘हम भारत के लोग’ कहा। हम भारत के लोग अर्थात अब हम स्वतंत्र, सम्प्रभुता सम्पन्न गणतंत्र हैं। अब हम किसी विदेशी सत्ता के अधीन नहीं है। हमारा संविधान भी किसी विदेशी सत्ता द्वारा निर्देशित एवं निर्मिंत नहीं हैं। यह संविधान हमारे प्रतिनिधियों द्वारा अर्थात हमने ही बनाया है। इसका अर्थ है हमारे द्वारा, हमारे लिए जिसको हम स्वीकार अथवा आत्मार्पित कर रहे हैं।
‘हम भारत के लोग’ देश के स्वतंत्र होते समय लगभग 40 करोड़ जो अब बढ़कर लगभग 138 करोड़ हो गए हैं। अब हम ही अपने भाग्य के निर्माता हैं। प्राचीन समय से अपने देश में एक कहावत प्रचलित है कि ‘यथा राजा तथा प्रजा’। स्वतंत्रता से पूर्व हमारे देश में राजतंत्र था। राजपरिवार से राजा चुना जाता था। राजा की नीतियों का अनुसरण प्रजा के करने के कारण ‘यथा राजा तथा प्रजा’ की यह कहावत प्रचलित हुई होगी। स्वतंत्रता के पश्चात हमने लोकतंत्र स्वीकृत किया, जिसके परिणामस्वरूप जनता के वोट से जन प्रतिनिधि चुने जाने लगे।
जब हम ‘हम भारत के लोग’ संबोधन करते हैं तब देश की 138 करोड़ जनसंख्या से इसका संदर्भ जुड़ता है, लेकिन 138 करोड़ भारतीयों का मन एवं संस्कार और संस्कार के आधार पर व्यवहार कैसा है, इसका भी विचार करना आवश्यक है। हिमालय से सागर, गुजरात से मणिपुर अर्थात उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम विशाल 38.87 लाख वर्ग किलोमीटर विस्तृत भू-भाग वाला भारत देश है। भागौलिक, जलवायु, मौसम आदि के आधार पर अनेक प्रकार की विविधता के दर्शन यहां पर होते हैं। भाषा के संदर्भ में कहा जाता है कि ‘कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी।’ इसी कारण संविधान द्वारा स्वीकृत 22 भाषाएं एवं क्षेत्रीय आधार पर 129 से अधिक बोली बोली जाती हैं। खान-पान, वेशभूषा, जन्म, धार्मिंक आस्था, शिक्षा एवं आर्थिक आधार अनेक प्रकार की विविधता निर्माण करते हैं।
सतही दृष्टि रखने वाले लोग इन विविधताओं में भेद को देखते हैं। गुलामी के लंबे अंतराल में हम स्वतंत्रता के लिए संघषर्रत रहे। इस कारण गतिशील समाज में अपनी समाज रचना के संदर्भ में बार-बार विचार करने की जो आवश्यकता रहती है वह हम नहीं कर सके। जो समाज व्यवस्था काल बाह्य हो गई थी, उसका पुनर्विचार भी नहीं हुआ। इस कारण अस्पृश्यता, वर्ण-भेद आदि ने हमारे समाज को जंजीर के समान जकड़ लिया। लक्ष्य से भटकाव अथवा लक्ष्य विहीन समाज होने के कारण हमारी स्वार्थी वृत्ति ने भी अनेक दोष हमारे अंदर उत्पन्न किए।
महिलाओं के प्रति दृष्टि अथवा अनेक कुरीतियों का जन्म इसी स्वार्थी मानसिकता का परिणाम है। भारत के पास प्राचीन सांस्कृतिक विरासत एवं विश्व को दिशा देने में सक्षम ज्ञान परम्परा है। आर्थिक समृद्धि प्राप्त करने के लिए पर्याप्त कृषि योग्य भूमि, जल एवं वन संपदा तथा प्रचुर श्रम शक्ति उपलब्ध है। इन तीनों गुणों के आधार पर हम विश्व की महाशक्ति हो सकते हैं। ‘जो वैश्विक ताकतें भारत को बढ़ती ताकत के रूप में देखना नहीं चाहती, वह भी भारत को कमजोर करने के लिए भारतीय समाज में विभेदों को बढ़ाने का सुनियोजित प्रयास कर रही हैं। एकात्मता को खंडित करने में कुछ मात्रा में इन लोगों ने सफलता भी प्राप्त की है। छोटी-छोटी पहचान को आधार बनाकर आंदोलन खड़े करना एवं अलगाव के बीज बोकर संघर्ष खड़ा करने के प्रयास सुनियोजित तरीके से चल रहे हैं। कुछ समय पूर्व पूना का मराठा-अनुसूचित संघषर्, सिख-हिंदू संघर्ष के आधार पर आतंक को प्रश्रय, स्पृश्यता-अस्पृश्यता को आधार बनाकर गुजरात एवं उत्तर प्रदेश की घटनाएं इसी अलगाववादी मानसिकता से उपजे ताजा उदाहरण हैं। नये-नये सिद्धांतों को गढ़ना, ऐतिहासिक घटनाओं को संदर्भ से काटकर नये-नये संदर्भ में प्रस्तुत करना, छोटे-छोटे विषयों को बढ़ाकर हिंसा फैलाना, हिंसा फैलाने वाले संगठनों को बौद्धिक धरातल देकर संरक्षण करना, ऐसे कार्य करने वालों को समाज में मान्यता प्रदान करना यह एक व्यवस्थित संजाल संर्पूण देश में फैला है। ‘हम भारत के लोग’ जब तक परस्पर इतने विभेदों में बंटे रहेंगे एवं अज्ञानतावश अनेक प्रकार के षड्यंत्र का शिकार बनते रहेंगे तब तक संविधान में व्यक्त संकल्पों की पूर्ति संभव नहीं है। अत: हमें विविधता में एकता को आत्मसात करना होगा।
यह शस्य-श्यामला भूमि हमारी मां है। मां-पुत्र का यह संबंध हमारे मध्य भाईचारा निर्माण करता है। हमारी सभी की एक साझी विरासत है, हमारी संस्कृति हम को जोड़ती है। समाज सुधारक, अलग-अलग गुणों को आधार मानकर उपदेश देने वाले उपदेशक, भारत की सुरक्षा के लिए बलिदान देने वाले सभी महापुरु ष हमारे अपने हैं। हम सभी उनकी संतान हैं। प्रसिद्ध समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया ने इसी आधार पर कहा था कि इस देश को जोड़ने वाले तत्व ‘राम, कृष्ण, शिव’ हैं। हमको इसी एकात्मता के दर्शन करने होंगे। जय-पराजय में प्रकट होने वाली प्रतिक्रिया एवं परिणामों को हम सभी ने समान रूप से भोगा है। विश्व में अपने भारत देश को अग्रणी देश बनाना यह लक्ष्य हम सभी 138 करोड़ भारतीयों को एक दिशा में चलने के लिए प्रेरित करेगा। हमारे संविधान निर्माताओं ने जब हमको ‘हम भारत के लोग’ कहकर संबोधित किया, तब इसका संबंध केवल आबादी तक सीमित नहीं होगा। उनकी दृष्टि में एकात्म, समरस, समान लक्ष्य वाला समाज रहा होगा, जिसमें किसी भी प्रकार की विषमता नहीं होगी, समान अवसर एवं सभी को न्याय होगा, जिसका अपना संकल्प, लक्ष्य होगा। गरीबी भगाकर, आर्थिक समृद्धि लाकर एक मन वाला, एक रस समाज जिसमें भारत के प्रति भक्ति, संस्कृति एवं महापुरु षों के प्रति गौरव एवं समान लक्ष्य वाला एक समाज बनाना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। इस वर्ष देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। गणतंत्र दिवस की शुभ बेला पर इसी विविधता में एकता के दर्शन करते हुए हम अपने संविधान निर्माताओं की आकांक्षा एवं अपने महापुरु षों की इच्छा को पूर्ण करने का संकल्प लें। तभी हम ‘हम भारत के लोग’ कहलाने के सच्चे अधिकारी होंगे।
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