मीडिया : हेट स्पीच और मीडिया

Last Updated 23 Jan 2022 01:40:12 AM IST

उत्तराखंड में बाबाओं की हेट स्पीचों के बाद एक इस्लामिस्ट ने भी मानो जबावी हेट स्पीच दी। इसी बीच कुछ युवाओं ने ‘बुली बाई ऐप्प’ बनाकर धर्मिक ‘हेट’ को नया आयाम दिया और पकड़े गए। स्पष्ट है कि घृणा से घृणा बढ़ती है!


मीडिया : हेट स्पीच और मीडिया

‘हेट’ (घृणा) रोकनी है तो मीडिया से कहिए कि वह ‘हेट स्पीच’ न दिखाए! अगर ऐसा होगा तो वह ‘हेट स्पीच’ अपने आप मर जाएगी! जब-जब हम ‘हेट स्पीच’ से घबराते हैं तो कई लोग ऐसे ही तर्क देते हैं, लेकिन ऐसा कहते हुए भूल जाते हैं कि मीडिया का काम है जो हो रहा है उसे खबर में लाना और ऐसे मुद्दों के प्रति आम जनता का ध्यान खींचना और उसे सजग करना! इस तर्क से चलें तो ‘हेट स्पीच’ को दिखाना मीडिया का कर्तव्य है! यों भी आज के मीडियामय वातावरण में कोई बात न छिप सकती है न छिपाई जा सकती है। अगर मुख्यधारा मीडिया जैसे टीवी या प्रिंट आदि उसे न बताएगा तो वह सोशल मीडिया प्लेटपफार्मो पर देखी-सुनी जाएगी और तब वह और अधिक मारक हो जाएगी! इसलिए अगर मुख्यधरा का मीडिया ‘हेट स्पीच’ या ऐसे ही किसी ‘हेटात्मक बाइट’ को दिखाता है, चरचा कराता है तो प्रथमदृष्ट्या भले लगे कि वह ‘हेट’ फैला रहा है, लेकिन अंतत: वह उसे दिखा-दिखाकर उसके तीखेपन को कम ही कर रहा होता है, उसकी आलोचना की जगह बना रहा  होता है!
‘हेट स्पीच’ के बारे में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि बहुत सा मीडिया ‘गोदी मीडिया’ ही है इसलिए उससे यह उम्मीद करना कि वह ‘हेट’ की जगह ‘सुलह’ की बात करेगा असंभव है! इसके प्रमाण में कई लेग ऐसे चैनलों व एंकरों के नाम लेते हैं जो बाजाप्ता एक ओर झुके दिखते हैं। ऐसा बताते हुए ऐसे लोग भूल जाते कि स्पर्धी हेट स्पीच को भी पोसने वाले चैनल कम नहीं! इस संदर्भ में अगर एंकरों से पूछो तो वे कहते हैं कि हम तो हेट के पक्ष-विपक्ष के पैरोकारों को अपना पक्ष रखने देते  हैं और अगर हम  किसी की आपत्तिजनक गाली-गलौज को रोकते हैं तो वे हमें उनकी गालियां भी झेलनी पड़ती हैं!

कहना न होगा कि आजकल बहुत सी ‘हेट स्पीचें’ कुछ नेताओं तथा धर्मिक नेताओं द्वारा मीडिया के लिए खास बनाई जाती हैं. उनकी प्लानिंग की जाती है. प्रत्याक्रमण में कौन क्या बोलेगा और उसका क्या जबाव दिया जाएगा, यह भी तय कर दिया जाता है! साफ है कि इन दिनों ‘हेट स्पीच’ को किसी हथियार की तरह चलाया जाता है पिफर मेनेज किया जाता है पिफर मैंने ये नहीं कहा था या एक मरी सी ‘सारी’ बोलकर सब शांत कर दिया जाता है और फिर किसी रोज को कोई ‘घृणा जीवी’ अपनी ‘घृणाभिव्यक्ति’ से अपने को ‘हीरो’ बना डालता है और संसद या विधनसभा में पहुंचने के सपने देखने लगता है! आजकल की हेट स्पीचें किसी खास स्थिति में अचानक बाहर निकल पड़ी ‘घृणा’ नहीं होतीं बल्कि एक ‘सुविचारित द्वेषवादी रणनीति’ होती है, जिससे समाज में ‘धर्मिक विभाजन’ की भावनाओं को गहरा या जासके ताकि ‘वोट विभाजन’ हो सके!
‘हेट स्पीच’के लेकर एक व्यवस्था यह है कि हेट स्पीच को प्रसारित करने वाले सोशल मीडिया प्लेटफार्म ऐसी खबरों (पोस्टों) को हटा दें, लेकिन यहां भी धर्मिक दुराग्रह काम करते दिखते हैं! कुछ हटाई जाती हैं, लेकिन कुछ रहने दी जाती हैं! इसी तरह बहुत से ‘घृणाजीवी’ अभिव्यक्ति की आजादी की व्यवस्था की आड़ लेकर अपना शिकार खेलते रहते हैं क्योंकि अभी तक कोई ऐसी सटीक व्यवस्था नहीं दिखती जो इसकी नकेल कस सके! कोई कसता है तो फौरन ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ के पक्षधर खड़े हो जाते हैं और अंतत: घृणा की स्पर्धा की जाने लगती है कि हमने घृणा उगली तो आपने तो उससे पहले उंगली..हमने तो सिर्फ अब कही आपकी तो किताब में ही घृणा भरी है..आदि इत्यादि!
इस टिप्पणी में हमारा अभीष्ट ‘हेट स्पीच और मीडिया’ के संबंध की चरचा  करना है, न कि  ‘उससे कैसे बचें?’ यह बताना! यों भी ‘हेट’ से बचना असंभव है क्योंकि वह किसी पेंडेमिक की तरह हमारी हवा मे घुल चुकी है! उपरोक्त संक्षिप्त विलेषण से हम सिर्फ इतना कहना चाहते हैं  कि ‘हेट स्पीचें’ दो दिन बजकर गायब नहीं होतीं बल्कि वे सोशल मीडिया पर लगातार ‘सकरुलेट’ होती रहती हैं और नीचे तक अपना असर करती रहती हैं और ‘हेट’ का अचार या मुरब्बा बनता रहता है जो समाज को नीचे तक सिरे से ‘विभाजित’ करता रहता है! ऊपर से हम एक  नजर आते हैं, लेकिन अंदर की दरारें बढ़ती जाती हैं!

सुधीश पचौरी


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