विश्व : मानवता केंद्रित शक्ति बनेगा भारत

Last Updated 23 Jan 2022 01:36:02 AM IST

भारत पिछले वर्ष से ही आजादी की 75वीं वषर्गांठ के अवसर से आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में उत्सव मना रहा है।


विश्व : मानवता केंद्रित शक्ति बनेगा भारत

75 साल की उम्र में भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है, और जल्द ही दशक के अंत तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। शीर्ष दस बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नेतृत्व कोई और नहीं, बल्कि भारतीय मूल के सीईओ करते हैं। अमेरिका जैसी विश्व महाशक्ति ने भारतीय मूल के उपराष्ट्रपति को चुना है, और यूनाइटेड किंग्डम भी भारतीय मूल के व्यक्ति को प्रधानमंत्री के रूप में अपनाने की तैयारी में है। यह दशर्ता है कि देश के बाहर भी भारतीय मूल के लोगों ने बड़ी सफलता प्राप्त की है।
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा में कई उथल-पुथल देखी गई। राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में उनकी समझ व्यावहारिकता के बजाय यूरोकेंद्रित विचारों से प्रभावित थी। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और युद्ध के बाद की उभरती सुरक्षा व्यवस्था को हल्के में लिया था। सोवियत संघ के साम्यवाद के साथ पश्चिमी वैचारिक टकराव को कम करके आंका। वास्तव में, वह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे कि यूएस और यूएसएसआर शीत युद्ध में थे।  उन्होंने गुटिनरपेक्षता को भारत की भव्य रणनीति के रूप में और बाद में अपनी मंडली के बैंडवैगन की वकालत की। राष्ट्रीय सुरक्षा को समाजवादी चश्मे से देखा। नतीजतन, भारत ने शुरु आत में ही अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने या नींव रखने के कई अवसर गंवा दिए थे।

1962 में चीनी आक्रमण और कुछ नहीं, बल्कि नेहरू के नेतृत्व के लिए व्यक्तिगत आघात था, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जागृति का आह्वान था। इसने नेहरू की विदेश और सुरक्षा नीति भानुमती का पिटारा खोल दिया था। पहली बार, यहां तक कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने भी उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के ज्ञान पर सवाल उठाना शुरू कर दिया। इस ढाई दशक में राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को संभालने के लिए राजनीतिक नेतृत्व के बीच भारी बदलाव देखा गया था। नेहरू के बाद के युग में भी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति तैयार करने में नीतिगत सुधारों की श्रृंखला देखी गई थी। उसके कारण प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय समुदाय का लाभ उठाने में सक्षम हो सके। भले ही उन्हें अपने पूर्ववर्ती नेहरू की तरह अंतरराष्ट्रीय कद का आनंद नहीं मिला। वह 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद विजयी प्रधानमंत्री के रूप में उभरे, लेकिन उनकी असामयिक मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी के हाथ में देश की बागडोर रही।
1971 में अंतराष्ट्रीय दबाव में बिना आए एवं सोवियत (रूस) से प्रगाढ़ संबद्ध बनाने और बहादुर सेना के नेतृत्व से पाकिस्तान से युद्ध जीत लिया। परिणामस्वरूप  पाकिस्तान का विभाजन हो सका। 1974 में पोखरण में भारत ने परमाणु हथियार परीक्षण किया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों के अलावा भारत एकमात्र देश था जिसने यह कीर्तिमान रचा। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते 1998 में पोखरण-2 नाम से परमाणु परीक्षण किए गए। 1999 में पाकिस्तान ने भारतीय सीमा में घुसपैठ की जिससे करगिल युद्ध हुआ और भारत फिर जीता।
पहली बार गैर-कांग्रेसी पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से बड़े बदलाव किए। आतंकवाद पर भारत की जीरो टॉलरेंस की नीति कारगर रूप से पाकिस्तान को वैिक मंच पर पृथक करने पर सफल साबित हुई। अन्य सरकारों के विपरीत मोदी सरकार ने उरी एवं पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक कीं। पाकिस्तान से व्यापार बंद करना भी जीरो टॉलरेंस नीति का हिस्सा माना जा रहा है। चीन से सटी सीमा पर आधारभूत संरचना बनाना हो या डोकलाम पर सख्त रवैया, भारत के इस रुख से चीन सहित विश्व भी स्तब्ध है। बदलते विश्व परिवेश में आक्रामक और मजबूत चीन एवं पाकिस्तान को एक साथ साधे रखने की चुनौती को भारत ने गंभीरता से लिया है।
निश्चित तौर पर भारत आने वाले समय में अपने स्वर्णिम इतिहास से प्रेरणा लेते हुए मानवता केंद्रित विश्व शक्ति के रूप में उभरेगा। प्रगतिशील एवं प्रभावी रुख से भारत 2047 में अपनी आजादी की 100वीं वषर्गांठ के अवसर पर फिर से अवश्य विश्व गुरु बनकर रहेगा।

डॉ. जे जगानाथन


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