बतंगड़ बेतुक : बंदर हो बंदर ही रहोगे

Last Updated 23 Jan 2022 01:29:18 AM IST

इस बार झल्लन उत्तर प्रदेश के संग्रेका, पाजभा, पास और पासब चार प्रसिद्ध जंगलों से चार बंदर पकड़ लाया और उन्हें पूरे सम्मान के साथ अपने सामने की खाली चार कुर्सियों पर ला बिठाया।


बतंगड़ बेतुक : बंदर हो बंदर ही रहोगे

चिखाऊ-चिल्लाऊ एंकरी के उलट निपट सीधे शांत स्वर में बोला, ‘ये तो तुम लोगों को पता होगा कि तुम सब यहां क्यों आये हैं, हम तुम्हें काहे बुलाए हैं?’ चारों ने झल्लन की ओर देखकर मुंडी हिला दी, अपनी सहमति जता दी, फिर घुड़कियाती नजर एक-दूसरे पर डाली और अपनी गर्दन झल्लन की ओर घुमा ली।
झल्लन बोला, ‘तुम बंदरों ने अपने बिरादरी भाई गांधी के तीन बंदरों को देखा होगा, नहीं तो उनके बारे में सुना होगा। उनमें से एक मुंह बंद रखता था कि बुरा न कहे, एक कान बंद रखता था कि बुरा न सुने, एक आंख बंद रखता था कि बुरा न देखे, और अगर तुम्हारे चौगड्डे की तरह वहां भी चौगड्डा होता तो चौथा बंदर अपनी नाक ढक लेता कि बुरा न सूंघे। पर तुम लोग प्राय: राजनेताओं की तरह आचरण करते हो। तुम जब बोलते हो बुरा बोलते हो, जब सुनते हो तो सिर्फ बुरा सुनते हो, अपनी आंख से जहां भी देखते हो बुरा देखते हो, दूसरे के घर में भले अगरबत्ती जल रही हो पर उसमें भी तुम गंधक की गंध सूंघते हो। यहां बंदरियत का सवाल है सो उम्मीद है कि बहस करते हुए न इंसानों की तरह घुड़कियाओगे, न एक-दूसरे पर खौखियाओगे और न चीखोगे, न चिल्लाओगे। जो कहोगे वो ईमानदारी से कहोगे, शालीनता से कहोगे, जब एक बोले तो बाकी ध्यान से सुनोगे, बीच में नहीं रोकोगे-टोकोगे और जब बोलोगे तो अपनी बारी आने पर ही बोलोगे।’
प्रतिक्रिया स्वरूप किसी बंदर ने खीं किया, किसी ने खूं किया, किसी ने खौं किया और किसी ने खौं-खौं कर दिया। हां, झल्लन ने इसे अपनी बात से उन सबकी सहमति मान लिया। वह बोला, ‘जब कोई भी मामला सामने आता है, वो चाहे राजनीतिक हो, धार्मिक हो, प्रशासनिक हो या आपराधिक, तुम लोग जमकर एक-दूसरे पर उंगली उठाते हो, कीचड़ उछालते हो पर न वो तुम्हारी मानता है, न तुम उसकी मानते हो। क्या तुम लोगों के पूरे जंगल में कोई ऐसा मसला है जिस पर तुम लोग एकमत हो जाओ, एक-दूसरे से सहयोग के लिए तत्पर हो जाओ।’ सभी बंदरों ने एक-दूसरे को देखा। थोड़ी खीं-खी की, थोड़ा घुड़का दिया और सबने असहमति में सिर हिला दिया।

झल्लन बोला, ‘तुम लोग एक-दूसरे पर झूठ बोलने का आरोप लगाते हो, एक-दूसरे को भ्रष्टाचारी बताते हो, एक-दूसरे को नाकारा और जनता का दुश्मन ठहराते हो। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि थोड़ा झूठ तुम बोल रहे हो और थोड़ा सच वह बोल रहा हो, थोड़ा भ्रष्टाचार तुमने भी किया हो और थोड़ी ईमानदारी वह भी बरत रहा हो, थोड़ा बहुत नाकारापन तुम दिखा रहे हो और थोड़ी सक्षमता वह भी दिखा रहा हो, जनता विरोधी कुछ कर्म तुमने भी किये हों और जनहित के कुछ कार्य वह भी कर रहा हो?’ सारे बंदरों ने पहले झल्लन की ओर घुड़का, फिर उन्होंने एक-दूसरे को घुड़का दिया, झल्लन की बात में उनकी रुचि नहीं है यह उन्होंने घुड़क-घुड़क के दिखा दिया।
झल्लन ने कहा, ‘अच्छा यह बताओ जब कोई मवाली किसी और जंगल में रहता है तो वह बाहुबली, अपराधी, माफिया कहा जाता है और जैसे ही वह अपना जंगल छोड़कर तुम्हारे जंगल में आ जाता है तो गंगा नहा जाता है, पवित्र हो जाता है। बताओ, कौन सा जंगल ऐसा है जिसमें माफिया गिरोह न रहते हों और शासन-प्रशासन में सीधा दखल न देते हों?’ सारे बंदर खीं-खीं करने लगे, उनके हाथ स्वयं अपने समर्थन में अपनी छातियां कूटने लगे, हर बंदर यह जता रहा था कि वह और उसका जंगल बेदाग हैं, बाकी जंगलों में दाग ही दाग हैं। वे फिर खौखियाने लगे, एक-दूसरे पर किचकिचाने लगे।
झल्लन बोला, ‘ठीक है, ठीक है, तुम लोग अलग-अलग जंगल से आये हो सो अपने-अपने जंगल को पावन-पवित्र दिखाओगे, दूसरे के जंगल को भेड़ियों का जंगल बताओगे। दूसरे जंगल का भेड़िया तुम्हारे गिरोह में शामिल हो जाये तो तुम उसे मेमना बता देते हो और तुम्हारे जंगल का कोई मेमना किसी दूसरे के जंगल में जा घुसे तो तुम उसे भेड़िया बना देते हो। तुम इंसानों की राजनीति करते हो इसलिए यही करोगे, कोई चाहे कुछ भी कर दे पर तुम अपनी पटरी से नहीं उतरोगे।’
सारे बंदर फिर झल्लन को घुड़कियाने लगे, एक-दूसरे की ओर देखकर किकियाने-खौखियाने लगे। लगा जैसे वे एक-दूसरे की पूंछ उखाड़ डालेंगे और शालीनता, शिष्टता, सभ्यता, नम्रता, विनम्रता के सारे बगीचे उजाड़ डालेंगे। झल्लन ने निवेदन किया, ‘बंदर भाइयो, एक-दूसरे पर मत खौखियाएं, अगर आप शांत हो जायें तो हम बात आगे बढ़ाएं, नहीं तो हमें लगेगा कि आपको खौखियाता छोड़ चर्चा यहीं बंद करा दें या फिर तुम सबको लात मारकर भगा दें।’ झल्लन की बात सुनकर सारे बंदर और ज्यादा खौखियाने लगे, ज्यादा दांत किटकिटाने लगे, पूंछ उठा-उठाकर एक-दूसरे को और झल्लन को ज्यादा घुड़कियाने लगे।  झल्लन बोला, ‘तुम बंदरपने से कभी ऊपर नहीं उठ पाओगे और यही हाल रहा तो अपने-अपने जंगलों के प्रवक्ता बन कर जल्दी ही टीवी चैनलों पर छा जाओगे।’

विभांशु दिव्याल


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment