उत्तर प्रदेश : एक्सप्रेस-वे की राजनीति

Last Updated 21 Dec 2021 03:51:34 AM IST

उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल पर गहराई से नजर डालें तो भाजपा ने हाल के दिनों में एक्सप्रेसवे को एक मुद्दे के रूप में सामने लाया है।


उत्तर प्रदेश : एक्सप्रेस-वे की राजनीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 दिसम्बर को शाहजहांपुर में गंगा एक्सप्रेसवे का शिलान्यास किया। चुनावी विश्लेषक यह प्रश्न उठा रहे हैं कि क्या भाजपा एक्सप्रेसवे के आधार पर इस बार चुनावी रण में विजित होने की उम्मीद कर रही है? यह प्रश्न अस्वाभाविक नहीं है। हालांकि एक्सप्रेसवे से चुनावी किले की विजय की पृष्ठभूमि नहीं है। बसपा प्रमुख मायावती के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में यमुना एक्सप्रेसवे का निर्माण किया गया। हां, 2012 के चुनावों से पहले, वह उसका उद्घाटन नहीं कर पाई। बावजूद लोगों को पता था कि यह एक्सप्रेसवे मायावती ने बनवाया है। सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे बनाने का फैसला किया। अखिलेश  ने 2017 के चुनावों में इसे अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित भी किया। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा की कैसी दुर्गति हुई यह बताने की आवश्यकता नहीं।
लेकिन भाजपा और इन दोनों पार्टयिों में अंतर यह है कि जिस तरह प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री दोनों एक्सप्रेसवे को महिमामंडित करते हुए उसका प्रचार करते हैं, लोर्कापण और शिलान्यास को व्यापक महत्व देते हैं वैसा सपा नहीं कर सकी। अखिलेश को भी लगता है कि इसका असर मतदाताओं पर होगा तभी उन्होंने पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के उद्घाटन से पहले दावा कर दिया कि यह उनकी परियोजना थी और भाजपा केवल प्रधानमंत्री से इसका फीता कटवा रही है। अखिलेश ने गाजीपुर से लखनऊ के लिए पूर्वांचल एक्सप्रेसवे विजय रथ यात्रा शुरू कर दी। इतनी बात सही है कि पूर्वांचल एक्सप्रेसवे की योजना सपा सरकार में बनी किंतु इसके सारे कार्य और समय सीमा में योजना को पूरा करना तथा इसकी गुणवत्ता पहले की योजनाओं से बेहतर और क्षेत्रफल विस्तारित करने का काम योगी सरकार ने ही किया। आपने योजना बना दी इससे आप दावा के हकदार नहीं होते। गंगा एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के पहले भी अखिलेश ने बयान दे दिया कि यह परियोजना तो मायावती ने शुरू की थी। जाहिर है, इसके असर का भय नहीं होता तो अखिलेश को इस तरह के बयान देने की आवश्यकता नहीं होती। उनके बयान से यह सवाल तो जनता उठाएगी ही अगर मायावती  के समय की योजना थी तो आपके कार्यकाल में भी यह पूरी क्यों नहीं हुई?

यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि भाजपा गंगा एक्सप्रेसवे परियोजना को पश्चिमी उप्र में अपने चुनावी तरकस में एक बड़े तीर के रूप में रख रही है। उसे लगता है कि इस परियोजना का आकषर्ण क्षेत्र में ऐसा होगा जिससे कि सपा रालोद गठबंधन के साथ टिकैत के भारतीय किसान यूनियन के असर को भी कमजोर करेगा। किंतु यह भाजपा के मुद्दों में से एक है जिसके साथ वह कई चीजों को जोड़ती है। यह उसकी रणनीति है। प्रधानमंत्री ने गंगा एक्सप्रेसवे को उप्र विकास को गति और शक्ति देने वाला बताते हुए जनता से कहा कि इससे एयरपोर्ट, मेट्रो, वाटरवेज, डिफेंस कॉरिडोर भी जोड़ा जाएगा और इसे फायबर ऑप्टिक केबल, बिजली तार बिछाने में आदि में भी इस्तेमाल किया जाएगा। भविष्य में पश्चिमी उप्र के कार्गो कंटेनर वाराणसी के ड्राईपोर्ट के माध्यम से सीधे हल्दिया भेजे जाएंगे। यह एक्सप्रेसवे समाज के हर तबके को फायदा देगा। पहले की योजनाओं का न इतना विस्तारित स्वरूप था और न अखिलेश और मायावती जनता के अंदर एक्सप्रेसवे की महिमा की ऐसी व्यापकता समझा पाते थे। प्रधानमंत्री ने जो बातें की वो सच भी हैं क्योंकि एक्सप्रेस वे केवल आवागमन का एक सामान्य साधन नहीं है। इससे आधुनिक विकास सहित सुरक्षा और कई व्यापक आयाम जुड़े हैं। यह सही है कि पश्चिमी उप्र की सामग्रियां इस माध्यम से वाराणसी पहुंच जल मार्ग के जरिए हल्दिया बंदरगाह आसानी से पहुंच जाएगी।
प्रधानमंत्री ऐसे अवसरों का दूसरे रूप में भी उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए गंगा एक्सप्रेसवे शिलान्यास कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले शाम होते ही सड़कों पर कट्टे लहराए जाते थे। पहले व्यापारी, कारोबारी घर से सुबह निकलता था तो परिवार को चिंता होती थी, गरीब परिवार दूसरे राज्य काम करने जाते थे तो घर और जमीन पर अवैध कब्जे की चिंता होती थी। कब कहां दंगा हो जाएं, कोई नहीं कह सकता था। बीते साढ़े 4 साल में योगी जी की सरकार ने स्थिति को सुधारने के लिए बहुत परिश्रम किया है। मुख्यमंत्री अब माफिया के अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलवा रहे हैं। आज यूपी की जनता कह रही है- यूपी + योगी, बहुत है उपयोगी। योगी आदित्यनाथ का एक यूएसपी अपराधियों पर टूट पड़ना, माफियाओं के खिलाफ निर्भीक और प्रखर कार्रवाई तथा सांप्रदायिक दंगों पर नियंत्रण है।
भाजपा हर अवसर पर इसे सामने लाती है और एक्सप्रेसवे के उद्घाटन में प्रधानमंत्री ने इसको जिस तरीके से रखा उसे कुछ लोग अवश्य प्रभावित होंगे। पश्चिम उप्र में भी माफियाओं और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है और उनमें एक विशेष संप्रदाय के वे लोग निशाना बने हैं, जिनके विरोध पूर्व की सरकारें कार्रवाई नहीं कर पाती थीं। इसके साथ मोदी ने यह भी कह दिया कि कुछ दल ऐसे हैं जिन्हें देश की विरासत और विकास दोनों से दिक्कत है। इन लोगों को बाबा विनाथ का धाम बनने से, राम मंदिर से, गंगा जी की सफाई से दिक्कत है। यही लोग सेना की कार्रवाई पर सवाल उठाते हैं, भारतीय वैज्ञानिकों की कोरोना वैक्सीन पर सवाल उठाते हैं। इस तरह आध्यात्मिक धार्मिंक और सांस्कृतिक विरासत के अभूतपूर्व उन्नयन तथा जनमानस पर इसके असर को दृढ़ करने की दृष्टि से भी प्रधानमंत्री ने पूरा उपयोग किया। इसमें भाजपा के लिए हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, सुरक्षा आदि मुद्दे सब सामने आ गए। पश्चिमी उप्र में यह भावनाएं कितनी गहरी हैं इसका अंदाजा उन्हें होगा जिन्होंने वहां की सामाजिक मनोविज्ञान से वाकिफ होंगे। तो कार्यक्रम अवश्य एक्सप्रेसवे या अन्य परियोजनाओं के शिलान्यास का हो,  भाजपा अपने सारे मुद्दे इसी माध्यम से जनता के सामने रखती है और यह उसकी रणनीति है।

अवधेश कुमार


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