बेहतर प्रशासन : सटीक डाटा से ही संभव

Last Updated 21 Dec 2021 03:47:13 AM IST

आजकल देश में डाटा की गुणवत्ता पर बहस जारी है। हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो और ट्रांसपोर्ट एंड रिसर्च विंग के रेकॉर्ड्स में भारी असमानता पाई गई है।


बेहतर प्रशासन : सटीक डाटा से ही संभव

यही नहीं कोविड महामारी के डाटा में भी भरी असंगति पाई गई है। हमारे सरकारी विभाग सटीक डाटा सृजन और प्रसार में फिसड्डी साबित हो रहे हैं, नतीजा हम समय रहते आवश्यक कदम उठाने में असमर्थ हैं। उदाहरण के तौर पर देश में कोविड की दूसरी लहर की भयावहता को सीमित किया जा सकता था। साथ ही हम अपनी स्वास्थ्य प्रणाली को व्यवस्थित कर सकते थे। सरकार के पास आतंकवाद के कारण होनेवाली मौतों का भी ब्यौरा नहीं है, ना हीं कोयले के वर्तमान भंडारण का। बेहतर प्रशासन के लिए शासन के सभी स्तरों पर सटीक और उन्नत डाटा का सृजन, भंडारण और प्रसार अतिआवश्यक हो गया है।  दुनिया के सभी विकसित देश डाटा का बेहतर उपयोग साक्ष्य आधारित नीति निर्धारण के लिए कर रहे हैं। यही नहीं, वर्तमान साल 2021 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कारों में भी डाटा की महत्ता को स्वीकार किया गया है।
बड़े स्तर पर विकास की ओर अग्रसर राष्ट्रों को नीति निर्माण के लिए स्फूर्त और प्रभावी तंत्र की आवश्यकता होती है। हमारे देश में नीति निर्माण प्राय: सर्वेक्षण और परामर्श से होता है, लेकिन देश की बड़ी आबादी और विविधता के कारण डाटा संकलन और नीति निर्माण के बीच बड़ा अंतराल हो जाता है। उदाहरण के लिये, चौथा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण दस वर्षो के अंतराल पर 2015-16 में प्रकाशित किया गया था। नतीजा हम पुरानी स्थिति के लिए नियम बनाते हैं, जो वर्तमान के लिए उपयुक्त नहीं।  
 वर्तमान में बेहतर डाटा प्रबंधन की कुछ चुनौतियां हैं, जिनका निर्धारण तकनीक के उपयोग से प्रभावी तरीके से किया जा सकता है। वर्तमान में डाटा संग्रहण का मुख्य जरिया सर्वेक्षण है। सर्वेक्षण के लिए कर्मचारियों और अधिकारियों का एक बड़ा दल काम करता है। संख्या बड़ी होने के कारण सर्वेक्षण के सारे प्रतिभागियों को सुव्यवस्थित डेटा संग्रह और बेहतर रिपोर्टिंग के लिए एक मंच पर लाना कठिन हो जाता है। अलग-अलग विभागों द्वारा बड़ी मात्रा में संग्रहित डाटा का आपस में आदान प्रदान नहीं होता है। ज्यादातर एकत्रित डाटा मशीन द्वारा पठनीय प्रारूप में भी नहीं होता है। जमीनी स्तर पर तकनीक के इस्तेमाल के लिए अच्छे खासे निवेश के साथ स्थानीय कर्मचारियों का कौशल विकास भी करना होगा। जमीनी स्तर से शुद्ध डाटा के लिए योजना के साथ तकनीक का उपयोग करना होगा।

हमारे देश की सरकारें भी बेहतर डाटा प्रबंधन के लिए प्रयासरत हैं। उसी दिशा में नेशनल डाटा शेयरिंग एंड एक्सेसिबिलिटी पॉलिसी 2012 एक महत्त्वपूर्ण कदम रहा है, जिससे गैर संवेदनशील डाटा का उपयोग वैज्ञानिक, आर्थिक और सामाजिक विकास के उद्देश्य से सुगम बना दिया गया। साल 2012 में ही पंजीकृत डाटा.गोभ.इन के वेबसाइट से डाटा के केंद्रीय भण्डारण और स्रोत का लक्ष्य कुछ हद तक पूरा हुआ। अतीत के पंचवर्षीय योजनाओं ने स्वास्थ्य, प्राकृतिक आपदाओं, कृषि, सामाजिक विकास जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिए अनवरत और विशुद्ध डेटा संग्रह प्रक्रियाओं की आवश्यकता पर बल दिया है। 2001 में डॉ. रंगराजन आयोग की रिपोर्ट में भी जनोपयोगी नीति निर्धारण में डेटा की महत्व को स्वीकार किया गया है।
प्रशासन को और पारदर्शी बनाने के लिए तकनीक के योजनाबद्ध और प्रभावी इस्तेमाल की आवश्यकता है। डाटा का संग्रहण और एकत्रीकरण डिजिटल प्रारूप में हो। डाटा का एक केंद्रीय भंडार बने और वहां पर डाटा का भंडारण प्रभावी तरीके से हो, ताकि ग्राम, पंचायत, प्रखंड, जिला इत्यादि का डाटा आवश्यकता अनुसार देखा और उपयोग किया जा सके। नीति आयोग पहले से ही एक नेशनल डाटा एनालिटिक्स पोर्टल पर काम कर रहा, जिसको राज्यों और केंद्रशासित राज्यों के लिए डाटा का केंद्रीय भंडार बनाने की योजना है। आगे एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस का उपयोग कर विभिन्न विभागों और मंत्रालयों के डाटा का आपस में आदान प्रदान कर एकीकृत भंडारण हों। साथ ही विभिन्न विभागों द्वारा एकत्रित डाटा का सत्यापन कर डाटा की शुद्धता को बढ़ाया जा सकता है। डेटा अभिगम्यता, डाटा गुणवत्ता और डाटा के प्रभावी आदान प्रदान के लिए समरूप और अनुकूल तकनीकों का इस्तेमाल जरूरी है। साथ ही हमें आवश्यक कौशल विकास के कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर आवश्यक मानव संशाधन को भी तैयार करते रहना होगा। अभी हम डाटा प्रबंधन के शुरु आती चरण में हैं। और बेहतर प्रशासन और नीति निर्धारण के लिए कई आयामों को छूना बाकी है।                
(लेखक आईटी मामलों के विशेषज्ञ हैं)

प्रभात सिन्हा


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