ओमीक्रोन : बहुरूपिये से डरें नहीं, सामना करें
भारत एवं पूरे विश्व में फिर कोरोना के नए रूप ओमीक्रोन ने आतंक पैदा कर दिया है।
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हालांकि कहीं इसका व्यापक मारक प्रसार नहीं दिखा है, किंतु कोरोना की पिछली लहर की भयावह स्मृतियां हर किसी के अंदर भय पैदा कर देंगी। सबके मन में यही डरावना प्रश्न है कि कहीं फिर उसी तरह की लहर आ गई तो क्या होगा? विश्व की कोई भी सरकार जोखिम उठाने को तैयार नहीं है। अगर उसने इसको नकारने का जोखिम उठाया और मानवीय क्षति हुई तो लोकतंत्र में उस सरकार की कैसी अवस्था होगी इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है।
एलोपैथ मेडिकल समुदाय संपूर्ण मार्गनिर्देश का अगुआ बना हुआ है जबकि सच यही है कि उसे भी अभी इस बीमारी के बारे में पूरी तरह पता नहीं है। अभी तक की जानकारी के अनुसार इस नए वैरिएंट बी.1.1.529 की पहचान दक्षिण अफ्रीका में हुई। कहा गया है कि इसमें अप्रत्याशित रूप से ज्यादा म्यूटेशन दिखा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस वैरिएंट में करीब 50 म्यूटेशन देखे गए हैं। इनमें 30 से अधिक तो सिर्फ स्पाइक प्रोटीन में है। स्पाइक प्रोटीन के सहारे वायरस मानव शरीर की कोशिकाओं तक अपनी पहुंच सुनिश्चित करता है। जाहिर है, स्पाइक प्रोटीन में अगर इतने सारे म्यूटेशन हैं तो अभी तक के टीके इसके सामने कमजोर पड़ सकते हैं। आखिर ज्यादातर टीके स्पाइक प्रोटीन को ही अपना लक्ष्य बनाकर तैयार किये गये हैं। अनेक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि विश्व भर में उपलब्ध टीके इस वैरिएंट पर पूरी तरह कामयाब होंगे या नहीं इसके बारे में निश्चितता से अंतिम निष्कर्ष देना कठिन है।
हांगकांग से आर्ए एक समाचार के अनुसार वहां होटल के अलग-अलग कमरों में ठहरे लोगों के स्वैब में यह वैरिएंट पाया गया। इसका मतलब यह हुआ कि कोरोना के इस प्रकार के फैलाव के लिए लोगों का एकदम पास आना या किसी तरह से इसके स्पर्श में आना जरूरी नहीं है। यह हवा में दूरी तय करके भी किसी को ग्रस्त कर सकता है। जानवर भी इसकी चपेट से बाहर नहीं हैं। यानी न जानवर सुरक्षित न मनुष्य और बचाव के उपाय भी नाकाफी। तो फिर? विशेषज्ञों की अभी तक की बातों का निष्कर्ष यही है कि टीका या दवा जो भी हमारे सामने है वो इस वैरिएंट के सामने नाकाफी हो सकती है। हम मानें या न मानें आधुनिक मेडिकल समुदाय ने अघोषित रूप से अपनी लाचारी प्रकट कर दी है। वैसे यह पहले भी प्रमाणित हुआ है पर हमने इसे स्वीकारा नहीं। कोई संकट या बीमारी सारे प्रयासों के बावजूद अगर बार-बार दस्तक दे रही है और हमारी बेचारगी बार-बार स्पष्ट होती है तो निश्चित रूप से उसके बारे में अभी तक की समझ तथा निपटने के प्रयासों पर नए सिरे से विचार करना जरूरी हो जाता है।
सबसे पहले तो यह मानकर चलना होगा कि कोरोना जैसी बीमारी आई है तो अचानक जाएगी नहीं। हम भले पहली लहर दूसरी लहर या संभावित तीसरी लहर की बात करें सच यही है कि कोरोना पूरी तरह गया ही नहीं। इसकी संख्या और प्रचंडता में कमी अवश्य आई लेकिन कोई दिन ऐसा नहीं है जिस दिन कोरोना के कुछ संक्रमित मरीज किसी न किसी कोने में सामने नहीं आए हों। अंतर इतना ही होता है कि अचानक संक्रमितों की संख्या तेजी से ऊपर की ओर गई, कुछ दिनों के लिए ऐसा लगा जैसे पल्रय आ गया, स्वास्थ्य के सारे तंत्र चरमरा गए और फिर उतरते हुए यह नीचे पायदान पर आ गया। टीका बनाने वालों ने भी दावा नहीं किया कि इसके दोनों खुराक लेने वाला व्यक्ति कोरोना से पूरी तरह सुरक्षित हो गया है। उनका इतना ही कहना है कि आपको बड़ा वाला कोरोना नहीं होगा। यानी संक्रमण होगा लेकिन वह जानलेवा नहीं। यह बात अलग है कि विश्व के अनेक कोने में टीका लिए लोगों की भी मृत्यु हो गई। दूसरे टीका से पैदा एंटीबॉडी 6 से 8 महीने में काफी हद तक निष्प्रभावी भी हो जाता है। तो क्या हर 6-8 महीने पर टीका देना होगा? यह संभव है ?
एलोपैथी प्रणाली में ही डॉक्टरों का ऐसा समुदाय खड़ा हो गया है जो इसके बारे में दी गई अभी तक की अनेक जानकारियां गलत बताता है। ऐसे लोग टीमों पर भी प्रश्न उठाते हैं। इनके अनुसार जिस बीमारी के बारे में पूरी तरह पता ही नहीं है उसके रोकने का टीका कैसे विकसित हो सकता है? हमारे आपके लिए इस पचड़े में पड़ने की आवश्यकता नहीं है। कुछ आम अनुभवों को पकड़ें। एक, देसी बचाव के उपाय भारी संख्या में लोगों पर कारगर साबित हुए।
दूसरे, संक्रमण होने पर अकेले या परिवार सहित अपने घरों में कोरंटाइन होकर उपचार करने वाले अधिकतर लोग स्वस्थ हो गए। तीन, काफी संख्या में कोरोना संक्रमित आयुर्वेद और होम्योपैथी के द्वारा स्वास्थ्य हुए। चार, ऐसी देसी औषधियां लेने वाले अनेक लोग आपको मिल जाएंगे जिन्होंने अति विश्वास के साथ कहा कि वो संक्रमित नहीं हो सकते और वाकई में नहीं हुए। लंबे समय से अस्वस्थ होने के बावजूद मेरे आयुर्वेद के डॉक्टर ने आश्वस्त किया कि आप निश्चिंत रहें जो दवाइयां आपको मिल रही हैं उनमें कोरोना संक्रमण आपको हो ही नहीं सकता। इससे मेरा आत्मविश्वास बना हुआ है। इस सूत्र को पकड़कर हमको आपको और भारत के नीति निर्धारकों को अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा करना होगा। अगर चिकित्सा के भारतीय प्रणाली में वाकई बचाव और हो जाने पर उपचार के प्रमाण हैं तो इसे व्यापक पैमाने पर अपनाने में हिचक क्यों? हमारा लक्ष्य सिर्फ बचाव तथा संक्रमित का उपचार है चाहे वह जिस चिकित्सा प्रणाली से मिले। केवल एलोपैथ ही वैज्ञानिक हैं और बाकी अवैज्ञानिक इस विकृत सोच से बाहर आएं तो रास्ता दिखेगा।
जितना एलोपैथी कर सकती है वह करे लेकिन दूसरी पद्धति के लोग अगर बचाव एवं उपचार में स्वयं को सक्षम साबित करते हैं तो स्वीकार करें। लेकिन इन सब के परे सबसे पहले हमें यही स्वीकार करना होगा कि कोरोना से डरकर छुपने की जगह इसका सामना करना ही एकमात्र विकल्प मानव समुदाय के सामने रह गया है। बचाव के जितने मानवीय उपाय अपनाना संभव हों उनको अपनाया जाए किंतु इसके डर से गतिविधियां बिल्कुल नहीं रु कें। मनुष्य होने के नाते हमारा एक जीवन चक्र है जिसे बाधित करना उचित नहीं। वैरिएंट के नाम मेडिकल प्रणाली के दिए हुए हैंं। ये वैरिएंट पहले थे या नहीं इसके बारे में कोई निश्चिंता से नहीं कह सकता। संभव है यह वैरिएंट पहले भी रहे हों लेकिन पकड़ में नहीं आए। तो आइए अपनी समस्त गतिविधियां जारी रखते हुए इस बहुरूपिये वायरस का सामना करें।
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