सामयिक : बदहाली पर आंसू बहाती यूनिवर्सिटी
अपने स्थापना काल से अब तक ज्ञान की गंगा बहा कर लाखों परिवारों के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने वाला तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर इन दिनों अपनी ही बदहाली पर आंसू बहाने को विवश है।
![]() सामयिक : बदहाली पर आंसू बहाती यूनिवर्सिटी |
हाल के कुछ दिनों से विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार, अराजकता तथा अनियमितता का माहौल व्याप्त है।
कोरोना काल में सारी परीक्षाएं स्थगित रहने के बावजूद बगैर वित्त समिति तथा अभिषद के सहमति के सारे नियम-कायदे ताक पर रख कर कोटेशन मंगाकर पूर्व में पांच रुपये प्रति कॉपी की दर से खरीदी जा रही कॉपी के दर में वृद्धि करते हुए नौ रुपये अस्सी पैसे प्रति कॉपी की दर से चौहत्तर लाख 97 हजार रुपये की सात लाख पैंसठ हजार कॉपी खरीद कर विश्वविद्यालय के लाखों रुपये का बंदरबांट किया जा चुका है। विभिन्न छात्र संगठनों तथा राजनीतिक दलों द्वारा कॉपी खरीद में लाखों के घोटाले के खिलाफ लगातार आवाज उठाए जाने के बावजूद अब तक न तो विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा किसी प्रकार की जांच कराई गई है, न ही राज्य सरकार तथा राजभवन की ओर से किसी प्रकार की कार्रवाई।
हद तो तब हो गई जब वित्त समिति की बैठक में सदस्यों द्वारा नियम विरु द्ध की गई कॉपी खरीद के विरोध में उसके भुगतान पर असहमति प्रकट की गई तो कुलपति द्वारा बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम के स्थापित प्रावधान के विरुद्ध जाकर राजभवन द्वारा उन वित्त समिति सदस्यों को हटवाते हुए नये सदस्यों का मनोनयन करवा कर नई वित्त समिति गठित कर भुगतान के लिए सहमति ले ली गई।
कॉपी घोटाले की तरह ही कई स्नातकोत्तर विभागाध्यक्षों की असहमति के बावजूद पैंसठ से सत्तर लाख रुपये की अनुपयोगी ई-बुक्स तथा ई-जर्नल्स खरीद कर लाखों रुपये के किताब खरीद घोटाले को अंजाम दिया गया। वििद्यालय में भैरवा तालाब बंदोबस्ती घोटाला, केंद्रीय पुस्तकालय परिसर बंदोबस्ती घोटाला, चौबीस परगना परिसर बंदोबस्ती घोटाला तथा विश्वविद्यालय गेस्ट हाउस आवंटन घोटाला के बाद ओएमआर सीट खरीद योजना तथा आउटसोर्सिंग समेत ऑटोमेशन के माध्यम से विश्वविद्यालय में की जाने वाली लूट से विश्वविद्यालय के हित में सोचने वाले सभी शिक्षक, छात्र तथा समाज के प्रबुद्ध नागरिक सशंकित हैं।
इन सबके अलावे विश्वविद्यालय के ही कुछ अधिकारियों तथा कर्मचारियों की मिलीभगत से भू-माफिया द्वारा विश्वविद्यालय की बेशकीमती बाइस बीघा जमीन हड़पने की साजिश रची जा रही है। विश्वविद्यालय के निर्देशानुसार 2010-17 तक सभी महाविद्यालयों तथा स्नातकोत्तर विभागों में स्नातक तथा स्नातकोत्तर समेत सभी प्रकार के व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में बीपीएल कोटे के तहत निर्धारित सीट के अतिरिक्त दो छात्रों का नामांकन लिया जा रहा था मगर 2018 से ऑनलाइन नामांकन प्रक्रिया अपनाए जाने के पश्चात निर्धारित सीट के अतिरिक्त लिए जाने वाले बीपीएल कोटे के नामांकन की ओर किसी का ध्यान नहीं जाने या नामांकन से जुड़े संबंधित अधिकारियों तथा कर्मचारियों की संकीर्ण मानसिकता की वजह से लगातार तीन वर्षो तक बीपीएल कोटे के तहत छात्रों का नामांकन नहीं हो पाया, जो अत्यंत गंभीर और आपराधिक मामला है।
लगातार तीन वर्षो तक नामांकन नहीं लिए जाने के पश्चात इस वर्ष बीपीएल कोटे के तहत नामांकन का मुद्दा उठाए जाने पर अब विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा बगैर कोई पत्र दिखाए बीपीएल कोटे के खात्मा की बात करते हुए नामांकन लेने से इनकार किया जा रहा है। इस परिस्थिति से विश्वविद्यालय को निजात दिलाने तथा विश्वविद्यालय में उच्च व गुणवत्तापूर्ण शैक्षणिक, सांस्कृतिक, अकादमिक माहौल बनाने तथा भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाते हुए नियम, अधिनियम, परिनियम के तहत कार्य संचालन के लिए वर्षो से अधिकारियों की कुर्सी पर कुंडली मार कर बैठे भ्रष्ट व बेईमान अधिकारियों को पदमुक्त करने तथा अनुकंपा पर चल रहे विश्वविद्यालय में स्थाई ईमानदार व प्रशासनिक रूप से दक्ष शिक्षाविद कुलपति के नियुक्ति की आवश्यकता है।
सांस्कृतिक एवं क्रीड़ा संबंधी गतिविधियां देखने को मिल सकती हैं। विश्वविद्यालय का पुराना गौरव लौटता दिख सकता है। ऐसे वक्त में विश्वविद्यालय के छात्रों, शिक्षकों तथा प्रबुद्ध नागरिकों एवं युवाओं को एकजुट होकर विश्वविद्यालय को बचाने के लिए पहल करने की जरूरत है। इसे लुटने से नहीं बचाया गया तो मिथिलांचल, कोसी, सीमांचल, पूर्वाचल तथा संथाल परगना के क्षेत्र में फैला महान स्वाधीनता सेनानी अमर शहीद तिलका मांझी के नाम पर स्थापित विश्वविद्यालय नालन्दा तथा विक्रमशिला विश्वविद्यालय की तरह इतिहास बन कर रह जाएगा।
(लेखक के निजी विचार हैं)
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