राग-रंग : ‘कथाक्रम’ के आकर्षण का कम होना
इस वर्ष का ‘कथाक्रम’ सम्मान पंकज मित्र को दिया जा रहा है। लखनऊ में 28 नवम्बर को ‘कथाक्रम-2021’ के आयोजन में उन्हें सम्मानित किया जाएगा।
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सम्मान समारोह के बाद ‘साहित्य, समाज और सियासत से बेदखल किसान’ विषयक संगोष्ठी होगी। यह एक ही दिन का समारोह होगा और भाग ले रहे ज्यादातर साहित्यकार स्थानीय होंगे। ‘कथाक्रम’ का यह 29 वां आयोजन होगा। आयोजन की शुरुआत 1990 में आजमगढ़ से हुई थी। दूसरा समारोह 1991 में झांसी में हुआ। फिर कुछ वर्षो तक यह समारोह बंद रहा। 1995 में इसे देहरादून में आयोजित किया गया। 1996 में यह समारोह लखनऊ में आ गया और फिर यहीं होता रहा। पंकज मित्र से पूर्व यह सम्मान संजीव, मैत्रेयी पुष्पा, ओमप्रकाश वाल्मीकि, शिवमूर्ति, दूधनाथ सिंह, असगर वजाहत, उदय प्रकाश, भगवान दास मोरवाल, प्रियंवद, अब्दुल बिस्मिल्लाह, स्वयं प्रकाश, नासिरा शर्मा, अखिलेश सहित कई चर्चित साहित्यकारों को दिया जा चुका है।
‘कथाक्रम’ ऐसा साहित्यिक आयोजन रहा है, जिसकी साहित्यप्रेमियों और खुद साहित्यकारों को प्रतीक्षा होती थी। मैं जब 2002 में लखनऊ आया तो मुझे अच्छी तरह याद है कि इस आयोजन की खबरें समाचार पत्रों में दो-दो पेजों पर छपती थीं। हम पहले से तैयारी करते थे। आयोजन की खबरों के साथ ही भाग लेने वाले साहित्यकारों के साक्षात्कार, परिचर्चा से समाचार पत्रों के पेज भरे रहते थे। इन्हें लेकर स्थानीय समाचार पत्रों के बीच एक प्रतिस्पर्धा जैसी होती थी कि कौन कितनी अच्छी कवरेज कर ले जा रहा है। इसीलिए कई बार एक ही संस्थान से दो-तीन संवाददाताओं को यहां कवरेज में लगाया जाता था। मेरे और मेरे जैसे कई पत्रकारों, साहित्यप्रेमियों और खुद साहित्यकारों ने कई दिग्गज साहित्यकारों को इसी आयोजन के जरिए देखा और सुना है। कई बार सभागार लखनऊ और आसपास के जिलों के हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों से भी भरा मिलता था। ऐसी उपस्थिति होती कि लोगों को सभागार में सीटें भी नहीं मिल पाती थीं।
नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, निर्मल वर्मा, कमलेर, मनोहर श्याम जोशी, अशोक वाजपेयी जैसे कई उन साहित्यकारों ने इसमें शिरकत की है, और कई-कई बार की है। मंच पर नामवर सिह और राजेन्द्र यादव की नोंकझोंक भी यहां खूब चर्चा का विषय होती थी। कभी वे एक-दूसरे पर टिप्पणी करते तो कभी नाराज होते। दो दिन नगर में साहित्यिक विमर्श का तापमान खूब ऊंचा होता। मैंने आयोजन में लोगों को दूर-दराज के नगरों से भी आते देखा है। बड़ी संख्या में युवा कथाकार-उपन्यासकार भी जुटते। वास्तव में इस आयोजन में शिरकत करने का एक अर्थ साहित्य जगत में अपनी उपस्थिति को रेखांकित करने जैसा भी था। कई लेखकों को बोलने का समय नहीं मिल पाता, वे नाराज भी होते। कुल मिलाकर ‘कथाक्रम’ देश के प्रमुख साहित्यिक आयोजनों में रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षो से इसे लेकर पहले जैसा उत्साह नहीं दिख रहा है। कुछ साल पहले इसे दो दिन से घटा कर एक दिन का कर दिया गया और अब लगातार इसमें बाहर से भाग लेने वाले प्रमुख साहित्यकारों की उपस्थिति भी कम होती जा रही है। वे साहित्यकार भी अब इस आयोजन में नहीं दिखते जो कई वर्षो तक इसमें नियमित तौर पर भाग लेते रहे हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि इस बार या पिछले बार का आयोजन कोरोना संकट के कारण प्रभावित रहा है। नवम्बर में होने वाले इस आयोजन के समय पिछले वर्ष भी इस संकट का प्रभाव कम हो गया था और इस बार भी अब कोरोना का वैसा भय नहीं दिखता।
वैसे देश के ज्यादातर साहित्यिक आयोजनों का ऐसा ही हो चला है। ऐसे आयोजन धीरे-धीरे अपनी चमक खोते चले गए जिनके लिए उनका महत्त्व था। इनकी जगह लिटरेचर फेस्टिवल ने ले ली। लिटरेचर फेस्टिवल जहां आशुतोष राणा भी बड़े साहित्यकार के तौर पर आमंत्रित होते हैं, और पीयूष मिश्र भी। ‘कथाक्रम’ जैसे समारोहों के आयोजकों को पता होता है कि गंभीर साहित्यकार और लोकप्रिय लेखकों के बीच की विभाजक रेखा कहां है, किसे बुलाना और सम्मान देना है। ऐसे आयोजनों की भव्यता का कम होना वास्तव में साहित्य को लोकप्रिय मुहावरे के चश्मे से देखना भी है। हालांकि ‘कथाक्रम’ के आयोजन के केंद्र में रहे शैलेन्द्र सागर कहते हैं कि साहित्य जगत में भी अब वैसे बड़े नाम नहीं रहे जिनका आकर्षण था। नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, निर्मल वर्मा, कमलेर, मनोहर श्याम जोशी सहित कई वे बड़े साहित्यकार हमारे बीच नहीं रहे जिन्हें हिन्दी साहित्य का ‘स्टॉर’ कहा जा सकता है। पुलिस सेवा से रिटायर सागर यह भी कहते हैं कि हर आयोजन में बदलाव आते हैं, और ‘कथाक्रम’ में भी बदलाव आया है। अब हम एक दिन का आयोजन करते हैं, और बहुत सारे लोगों को बुला लेने पर उन्हें विचार व्यक्त करने के लिए समय दे पाना मुश्किल होता है। सागर यह भी जोड़ते हैं कि कोरोना का संकट अभी नहीं दिख रहा है, लेकिन उसका भय खत्म नहीं हुआ है। कोरोना के कारण ही इस आयोजन की तैयारी बहुत पहले से कर पाना संभव नहीं हो सका। पहले तो हमने ऑनलाइन आयोजन की ही रूपरेखा बना रखी थी।
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