सरोकार : भारतीय समाज में अपनी पुख्ता जगह बनातीं महिलाएं

Last Updated 21 Nov 2021 12:12:10 AM IST

अनेक अंतर्विरोधों के बावजूद महिलाओं ने भारतीय समाज में अपनी जगह पुख्ता की है।


सरोकार : भारतीय समाज में अपनी पुख्ता जगह बनातीं महिलाएं

प्राचीन भारत में महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा हासिल था। वैदिक काल गार्गी और मैत्रेयी जैसी कई विदूषी साध्वियों की सशक्त उपस्थिति की तस्दीक करता है। हालांकि इन सबके बावजूद भारत में महिलाओं को कमोबेश दासता और बंदिशों का ही सामना करना पड़ा। राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म में उल्लेखनीय उपस्थिति के बावजूद कई ऐसे क्षेत्र रहे जहां उनका प्रवेश सदियों तक वर्जित रहा।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान ने महिलाओं के लिए शिक्षा और रोजगार के दरवाजे खोले पर समयानुकूल संतुलन नहीं बना पाया। परंपरा, प्रतिष्ठा, रीति और लोकधर्म के नाम पर उन्हें सीमा लांघने की आजादी नहीं दी गई। हालांकि हाल के दिनों में अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति से उन्होंने दुनिया को चकित कर दिया। वर्जित क्षेत्रों में उनकी चलहकदमी ने पुरु ष प्रधान समाज को न केवल एक नई वैचारिकी दी अपितु उनकी अनगढ़ परिभाषा को फिर से पुनर्भाषित करने को बाध्य किया। कदाचित अनेक कालजयी संरचनागत बदलाव इस कड़ी का हिस्सा बनें जिसके बूते आज महिलाएं अपने वजूद की नई परिभाषा गढ़ने को तैयार है। परिवर्तनशील और प्रगतिशील अवधारणा ने सभी पेशागत सभी  विषमताओं को तोड़ा है।

हाल के दिनों में ऐसे कई बड़े निर्णय आए जिन्होंने महिलाओं के लिए सालों से बंद पड़े दरवाजों को खोल दिया है। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी हो या सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा पद और सीमा सुरक्षा से जुड़े अहम पद हो या लड़ाकू विमान की उड़ान, सुदूर सरहदों पर तैनाती या सेना में कमीशन दिया जाना। गैर-परंपरागत पेशे में लगातार उनकी बढ़ती दखल साबित कर रही है कि गर खुला आसमां हो तो तो वे दूर परवाज भरने को तैयार हैं। इस दिशा में संस्थाएं और सरकारें प्रयास सकारात्मक माहौल तैयार कर रही हैं, लेकिन अभी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनका महिलाओं के लिए तोड़ा जाना जरूरी है। जेंडर समानता का सिद्धांत भारतीय संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार और कर्त्तव्य, नीति निर्देशक सिद्धांतों के आलोक में प्रतिपादित किए गए हैं, जहां समानता की बात बार बार दोहराई गई है। लैंगिक पेशागत असमानता के आधारभूत कारण सामाजिक और आर्थिक ढांचे से जुड़े हुए हैं, जो अनौपचारिक-औपचारिक मान्यताओं पर आधारित है, जिसे दूर किया जाना जरूरी है।
इलेक्ट्रॉनिक, सूचना और प्रौद्योगिकी एवं कृषि, उद्योग जैसे कई अहम क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही है, लेकिन बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन, ऑटो स्पेयर, शेयर बाजार, रियल स्टेट, सार्वजनिक परिवहन प्रणाली, और धार्मिंक पदों पर बड़ी संख्या में महिलाओं का आना अभी बाकी है। ये ऐसे क्षेत्र हैं, जहां व्यवस्था की जंजीरों को तोड़ जाना जरूरी है। हालांकि संतुलन साधने की कोशिशें तभी साकार हो पाएंगी जब महिलाओं को घर से बाहर सुरक्षा की गारंटी मिले। उनके विरु द्ध सभी प्रकार की हिंसा पर लगाम लगे। उनके विरु द्ध घरेलू या सामाजिक स्तर पर रिवाजों, रस्मों, परंपराओं अथवा प्रचलित मान्यताओं से उत्पन्न हिंसा से प्रभावी ढंग से निपटा जाए। तकाजा इस बात का है कि जब सात समंदर पार के देशों ने सालों पहले उनके लिए वर्जनाओं से भरी दीवारों को तोड़ दिया तो हम क्यों नहीं। उनकी काबिलियत और कौशल को परखने के अवसर से चूका न जाए क्योंकि वो हर चुनौती से लड़ने का दम रखती हैं।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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