इंदिरा गांधी जयंती : इंदिरा, रॉ और पस्त देश
आजादी के बीसवें साल में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से जब बीबीसी ने पूछा कि आप देश को क्या संदेश देना चाहती हैं, इस पर उनका जवाब था कि हम बहुत मुश्किल जमाने से गुजरे हैं, लेकिन हम उतने ही मजबूत बन कर उभरे हैं।
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वे इस मौके पर विश्वास दिलाना नहीं भूलीं कि वो दिन भी आएगा जब हमारा देश खूब तेजी से आगे बढ़ेगा। दरअसल, इंदिरा गांधी भारत के उस दौर की प्रधानमंत्री थीं जब भारत ने युद्ध, अकाल, दुश्मनी का सामना किया था और वे देश को इन सब चुनौतियों से सफलतापूर्वक उबारने में कामयाब भी रहीं।
1962 के चीन से युद्ध की कड़वी यादें और 1965 के पाकिस्तान से युद्ध में वैश्विक दबाव का घूंट भारत ने पिया था और वे देश को इससे उबारने के लिए प्रतिबद्ध थीं। 1971 में पाकिस्तान से युद्ध के समय जब पाकिस्तानी विमान भारत के किसी भी शहर को निशाना बना सकते थे, उन्होंने देश की निर्भयता और साहस दिखाने के लिए दिल्ली के रामलीला के मैदान पर आम सभा की और दुश्मन देशों को वहीं से चुनौती दी। उनका भाषण इतना भड़काऊ और आक्रामक था कि सरकारी मीडिया को भाषण के बहुत सारे अंश काटना पड़े थे। उस समय अमेरिका का सातवां बेड़ा भारत की ओर तेजी से आ रहा था। चीन पाकिस्तान के समर्थन ने खड़ा था और भारत के पास इन सबसे से निपटने के लिए सामरिक क्षमता नहीं थी। यह बात और है कि इंदिरा गांधी की निर्भयता से दुश्मनों के सारे दांव धराशायी हो गए। अमेरिकी नौ सेना का सातवां बेड़ा 16 दिसम्बर, 1971 को बंगाल की खाड़ी में पहुंचता लेकिन उसके एक दिन पहले ही पाकिस्तान की सेना को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर होना पड़ा और अमेरिका को मुंह की खानी पड़ी। अपने बेड़े को श्रीलंका की ओर मोड़ना पड़ा।
पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना की 1971 की कार्रवाई को ‘द लाइटनिंग कैंपेन’ का नाम दिया गया था। भारत के लिए यह बेहद जटिल सैन्य अभियान था, जिसके लिए बहुत उच्च स्तर की सैनिक, कूटनीतिक, राजनैतिक, सामाजिक और प्रशासनिक तैयारी की जरूरत थी। 16 दिसम्बर, 1971 को बांग्लादेश के विश्व नक्शे पर उभरने के बाद, इस पूरे अभियान का कई देशों के सैन्य संस्थानों में अध्ययन किया जाता है। नेशनल डिफेंस कॉलेज ऑफ पाकिस्तान के जंगी दस्तावेज में भारत पाकिस्तान के बीच 1971 के इस समूचे युद्ध पर कुछ इस तरह लिखा गया है कि हिंदुस्तानियों ने पूर्वी पाकिस्तान के खिलाफ हमले का खाका तैयार करने और उसे अंजाम देने में बिल्कुल ऐसे पक्के ढंग से बनाया था जैसे किताबों में होता है। यह जंग सोच समझकर की गई तैयारी, बारीकी से बैठाए गए आपसी तालमेल और दिलेरी से अंजाम देने की बेहतरीन मिसाल है। विश्व के बड़े सेनापतियों ने भारतीय सेना के रण कौशल की तुलना जर्मन सेना द्वारा पूरे फ्रांस को परास्त करने के अभियान से की है।
ब्रिटिश सेनाधिकारी कैनेथ हंट ने कहा था कि भारतीय सेना ने 14 दिनों में बांग्लादेश के 50 हजार वर्गमील क्षेत्र में एक लाख से अधिक पाकिस्तानी सेना को परास्त करके विश्व के सैनिक इतिहास में शौर्य और रण कौशल की नई मिसाल कायम की। अमेरिकी जनरल ने लिखा कि भारतीय दस्ते पूर्व बंगाल में तेजी से बड़े और मजबूत छावनियों को घेरकर छोड़ते गए तथा कुछ दिन में ढाका तक पहुंच गए। दुनिया में कोई भी आशा नहीं करता था कि भारतीय सेना ऐसी सफाई से अमेरिकी हथियारों से लैस विशाल पाकिस्तानी सेना को इतनी जल्दी परास्त कर देगी।’ अमेरिकी गुप्तचर संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष ने भी माना कि वे भारतीय सेना की तेजी को समझने में असफल रहे।
18 मई, 1974 में भारत में पहला परमाणु परीक्षण किया गया था और यह समय दुनिया ने लिए अभूतपूर्व घटना थी। यह संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्य देशों के अलावा किसी अन्य देश द्वारा किया गया पहला परमाणु हथियार का परीक्षण था।
इंदिरा गांधी के कार्यकाल में बांग्लादेश का जन्म, भारत का पहला परमाणु परीक्षण, सिक्किम का भारत में विलय जैसे गोपनीय मिशनों के पीछे रॉ का बड़ा हाथ था। किसी भी देश की खुफिया एजेंसी उस देश के राष्ट्रीय हितों के संवर्धन का बड़ी गोपनीयता से पालन करती है और रॉ के कारनामे इसका पर्याय रहे हैं। पाकिस्तान और चीन की परंपरागत दुश्मनी से सामने आई परिस्थितियों में ही 1968 में रॉ का निर्माण किया गया था। इंदिरा गांधी द्वारा स्थापित रॉ ने इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
बांग्लादेश बनने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति मुजीबुर्रहमान को यह कहते हुए रॉ प्रमुख से मिलवाया कि आप चाहें तो हमारे काव साहब से आपके देश के बारे में कोई भी जानकारी ले सकते हैं, वे बांग्लादेश के बारे में जितना जानते हैं, शायद हम भी नहीं जानते। रॉ का प्रभाव पाकिस्तान के सुरक्षा तंत्र में भी रहा है। रॉ के पूर्व अतिरिक्त सचिव बी रमन ने अपनी किताब ‘द काऊ बॉयज ऑफ रॉ’ में लिखा है कि 1971 में रॉ को इस बात की पूरी जानकारी थी कि पाकिस्तान किस दिन भारत के ऊपर हमला करने जा रहा है। नबी एहमद शाकिर कराची यूनिर्वसटिी में पढ़े, बाद में पाकिस्तानी सेना में शामिल हुए और बड़े ओहदे तक भी पहुंचे। पाकिस्तानी सेना के एक अधिकारी की बेटी से उनका विवाह हुआ और बच्चे भी हुए। करीब 25 साल पाकिस्तान में बिताने वाले इस शख्स के बारे में बहुत बाद में पता चला की वे राजस्थान के रविंद्र कौशिक थे जो रॉ के एजेंट के रूप में पाकिस्तान गए थे।
वास्तव में इंदिरा गांधी भारत की साहसिक और आत्मविश्वास से भरपूर ऐसी नेता रहीं जिन्होंने प्रचार तंत्र से दूर रहकर बेहद गोपनीय तरीके से देश को सामरिक बढ़त दिलाने में उल्लेखनीय सफलताएं हासिल कीं। ऐसा करके उन्होंने भारत को दुनिया के अग्रणी ताकतवर राष्ट्रों में शुमार कर दिया। उन्होंने अपने जीवनकाल में ही तय कर दिया था कि कोई भी वैदेशिक ताकत भारत पर हमला करने का साहस नहीं कर सकती। इतिहास इस बात का साक्षी है कि 1971 के बाद भारत पर हमला करने का साहस न तो पाकिस्तान जुटा पाया और न ही चीन।
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