निजी क्षेत्र में आरक्षण : संघीय ढांचे पर आघात की आशंका
अभी हरियाणा में निजी क्षेत्र में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए आरक्षण लागू करने का मामला ठंडा भी नहीं हुआ कि इसी बीच पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी ने पंजाब में सरकारी और निजी, दोनों क्षेत्रों में स्थानीय निवासियों को लगभग 100 फीसद आरक्षण देने की बात कहकर मामले को और तूल दे दिया है।
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ऐसे बिल को लाने के लिए मुख्यमंत्री जरूरी कानूनी सलाह ले रहे हैं। ज्ञातव्य हो कि ऐसे ही बिल आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में क्रमश: जुलाई, 2019 एवं दिसम्बर, 2020 में पहले ही पारित हो चुके हैं। हालांकि निजी क्षेत्र में क्षेत्रीय आरक्षण अभी किसी भी राज्य में पूरी तरह से कार्यान्वित नहीं हो पाया है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने नवम्बर, 2020 में पारित हरियाणा स्टेट एम्प्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडिडेट्स बिल, 2020 को जनवरी, 2022 से प्रभाव में लाने की बात कही है। बिल के अनुसार हरियाणा राज्य से संचालित होने वाली निजी क्षेत्र की नवसृजित नौकरियों में राज्य के मूल निवासियों को 15 फीसद आरक्षण का प्रावधान किया गया है। यह नियम 10 या 10 से ज्यादा कर्मचारी रखने वाले राज्य में स्थित कंपनियां, सोसायटी, ट्रस्ट और सीमित दायित्व भागीदारी फर्म पर लागू होता है। हरियाणा के खेतों और ईट भट्ठों में ज्यादातर बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल, ओडिशा जैसे राज्यों के मजदूर काम करते हैं।
ध्यान देने वाली बात है कि हरियाणा सरकार ने वैसे रोजगार में आरक्षण का प्रावधान नहीं किया है। अप्रत्यक्ष रूप से राज्य सरकार स्थानीय रोजगार बिल के साथ सूचना प्रौद्योगिकी और अन्य सेवा उन्मुख संस्थाओं के व्हाइट कॉलर नौकरियों को प्रभावित करना चाहती है। कर्नाटक सरकार ने ऐसा ही नियम समूह सी एवं डी के ब्ल्यू कॉलर नौकरियों के लिए बनाया है। आंध्र प्रदेश सरकार ने भी औद्योगिक इकाइयों में ऐसे ही आरक्षण का प्रावधान किया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(द्द) के अनुसार भारत गणराज्य का हर नागरिक देश के किसी भी कोने में जाकर अपनी दक्षता और अर्हता के अनुकूल काम करने के लिए स्वतंत्र है। ऐसे बिल भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का सीधा उल्लंघन करते हैं, जिसके अनुसार भारत गणराज्य के क्षेत्र के भीतर धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध किया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 16 (2) के अनुसार भी कोई भी नागरिक केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर राज्य के अधीन किसी रोजगार या पद के लिए अपात्र नहीं होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अधिकांश फैसलों में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण देने का विरोध किया है, बशर्ते असाधारण परिस्थितियां उत्पन्न नहीं होती हों। निजी क्षेत्र को प्रतियोगिता में बने रहने के लिए दक्ष और अनुभवी कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। इसलिए निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियां अपने आप को समान अवसर नियोक्ता बोलती हैं। इसका सीधा मतलब है बिना किसी भेदभाव के सुयोग्य उम्मीदवारों को मौका दिया जाएगा लेकिन राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए नियमों से बड़ी कंपनियों की स्वायत्तता और स्वचालन में बाधा उत्पन्न होगी।
आरक्षण के नियमों के अनुपालन के लिए अतिरिक्त कार्य करना भी कई कंपनियों को पसंद नहीं होगा। निजी क्षेत्र की कंपनियां परेशानीरहित काम करने के लिए अपना कार्यालय और उत्पादन इकाई राज्य से बाहर और जरूरत पड़ने पर देश से बाहर भी स्थापित कर सकती हैं। ऐसे दूरगामी प्रभाव के कारण ही सीआईआई, फिक्की जैसे सभी बड़े उद्योग संगठनों ने भी ऐसे कानूनों का विरोध किया है। निजी क्षेत्र का आरक्षण राजनीतिक पार्टयिों के लिए एक तगड़ा मुद्दा होगा, जिसका फायदा हर राजनीतिक पार्टी अपने तरीके से उठाना चाहेगी। लाजिमी है कि इससे हमारे देश के संघीय ढांचे को आघात पहुंच सकता है। राज्यों का केंद्र सरकार से टकराव होगा।
स्थानीय लोगों को ऐसे बिल से अवश्य लाभ होगा, लेकिन क्षेत्रीयता के नाम पर लड़ाइयां बढ़ेंगी और एक ही देश के नागरिक होने के बावजूद हम दूसरे राज्य के साथी नागरिक को गलत नजरिए से देखेंगे। देखने में आया है कि आरक्षणप्राप्त लोग धीरे-धीरे अपने व्यक्तिगत विकास और कौशल विकास पर ध्यान देना छोड़ देते हैं। राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा संचालित कौशल विकास योजनाओं का लाभ अपने नागरिकों तक इस तरह से पहुंचाना चाहिए कि वे स्वत: ही दक्ष होकर अपनी प्रतिभा और दक्षता के अनुरूप उपयुक्त नौकरी पा सकें।
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