अतिवादी विचार : विषाक्त माहौल का सबब
सलमान खुर्शीद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। केंद्र में कैबिनेट स्तर के कई मंत्रालय उन्होंने संभाले हैं।
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ऐसे व्यक्ति से आशा की जाती है कि एक-एक शब्द लिखने के पहले सोचेगा कि इसकी क्या प्रतिक्रिया हो सकती है। उनकी पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या नेशनहुड इन अवर टाइम्स’ के हिंदुत्व संबंधी विवादित संदर्भ पर जब पत्रकारों ने प्रश्न किया तो उनका खीझ भरा उत्तर था कि ऐसे बेहूदा सवाल क्यों पूछते हो? कहा कि 300 पृष्ठ की किताब में मैंने हिंदू मुस्लिम एकता की बात की है, उस पर चर्चा क्यों नहीं हो रही है?
आइए, पहले उन पंक्तियों को देखें। छठे अध्याय में 113वें पृष्ठ पर वे लिखते हैं, ‘भारत के साधु संत सदियों से जिस सनातन धर्म और मूल हिंदुत्व की बात करते आए हैं, आज उसे कट्टर हिंदुत्व के जरिए दरकिनार किया जा रहा है। आज हिंदुत्व का ऐसा राजनीतिक संस्करण खड़ा किया जा रहा है, जो इस्लामी जिहादी संगठनों आईएसआईएस और बोको हरम जैसा है।’ मूल बात यह नहीं है कि हिंदुत्व के जिस राजनीतिक संस्करण की वो बात कर रहे है, वह सही है या गलत है। सलमान खुर्शीद या किसी भी नेता को हिंदुत्व से असहमति जताने का पूरा अधिकार है। लेकिन क्या उसकी भाषा ऐसी ही होनी चाहिए? आखिर, गुलाम नबी आजाद को सामने आकर अपने हस्ताक्षर से यह बयान देना ही पड़ा कि हिंदुत्व से हम असहमत हो सकते हैं, लेकिन उसकी तुलना आईएसआईएस और बोको हरम से करना तथ्यात्मक रूप से गलत एवं अतिशयोक्तिपूर्ण है।
आईएसआईएस, बोको हरम जैसे संगठनों ने जिस क्रूरता से लोगों की हत्याएं की हैं, आत्मघाती विस्फोट किए हैं, संगठित रूप से जिहाद के नाम पर युद्ध किया है, वैसा तो पहले सुना तक नहीं गया था। सलमान खुर्शीद भी जानते हैं कि इन आतंकवादी संगठनों ने अपनी मजहबी हिंसक क्रूरता से सबसे ज्यादा कोहराम इस्लामी देशों में ही मचाया हुआ है। सलमान खुर्शीद जानते हैं कि वह इस तरह इस्लाम की आलोचना करने वाली पुस्तक उन देशों में नहीं लिख सकते जहां ये संगठन ज्यादा सक्रिय हैं। इससे पता चलता है कि सलमान खुर्शीद और उनकी तरह के लोगों के अंदर भाजपा, संघ आदि की वर्तमान राजनीति से उत्पन्न घृणा किस चरम अवस्था में पहुंच चुकी है। घृणा और गुस्से से कुंठा पैदा होती है। तभी तो इतने अनुभवी होने के बाद पुस्तक लिखने में ऐसे चरमपंथी विचार अभिव्यक्त हो जाते हैं।
वास्तव में सलमान खुर्शीद ने इस पुस्तक में अधिवक्ता और नेता के रूप में चालाकी प्रदशिर्त की है। अयोध्या फैसले की प्रशंसा भी करते हैं जिसमें मंदिर के साथ-साथ दूर मस्जिद बनाने की बात भी है। हिंदुत्व की व्यापकता की भी बात करते हैं किंतु चालाकी से दूसरी ओर स्वयं को कानूनी पंजे से बचाने का ध्यान रखते हुए आलोचना भी कर देते हैं। उनकी मानसिकता का एक उदाहरण और देखिए। वे यह भय पैदा करते हैं कि सरकारी अधिकारियों का झुकाव एक धर्म की तरफ हो गया है। कैसी निंदनीय और खतरनाक मीमांसा है? इसका मतलब वे दूसरी भाषा में यही कह रहे हैं कि भाजपा सरकारों के कारण सरकारी अधिकारी भी अतिवादी सांप्रदायिक विचारों से ग्रस्त होकर काम कर रहे हैं तथा देश में अल्पसंख्यक समुदाय या उनके मजहब के साथ न्याय नहीं हो रहा। इस तरह अधिकारियों कर्मचारियों तक की ईमानदारी और न्याय प्रिय तक उन्होंने कटघरे में खड़ा कर दिया। उनको इस बात पर भी गुस्सा है कि कांग्रेस के अंदर भी कुछ लोग हिंदुत्व के समर्थक हो गए हैं। वो कहते हैं कि हमारी पार्टी में भी हिंदुत्व की चर्चा आ जाती है। अनेक नेताओं को इसकी चिंता है कि हमारी छवि अल्पसंख्यक समर्थक पार्टी की हो गई है। वे बिना नाम लिए हुए राहुल गांधी को जनेऊधारी ब्राह्मण होने का प्रचार करने वाले नेताओं की भी निंदा करते हैं। उनको इस बात पर भी आपत्ति है कि अयोध्या फैसला आने के बाद उनकी पार्टी के कुछ नेताओं ने कह दिया कि वहां भव्य मंदिर बनाया जाना चाहिए। सलमान खुर्शीद बताएं कि उस फैसले के बाद कांग्रेस का क्या बयान होना चाहिए था?
सच यही है कि सलमान खुर्शीद सहित कांग्रेस के कई नेताओं को उच्चतम न्यायालय का फैसला पचा नहीं है। पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम इसी पुस्तक के विमोचन के मौके पर स्पष्ट कह रहे थे कि न्यायालय के फैसले का कानूनी आधार एकदम कमजोर है। उन्होंने यह भी कहा कि यह फैसला सही था। इसलिए दोनों पक्षों ने मान लिया, ऐसा नहीं है। दोनों पक्षों ने मान लिया इसलिए कि यह फैसला सही था। इससे समझा जा सकता है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के अंतर्मन में उच्चतम न्यायालय के फैसले को लेकर कैसी धारणा है। जाहिर है, सलमान खुर्शीद ने इसी को घुमा-फिरा कर लिखने की कोशिश की है। इसमें अतिवादी विचार आने ही हैं, और उनको फंसना ही है।
यह भी समझ से परे है कि ऐसे अनुभवी नेता को इतनी भी समझ नहीं आई कि सामने उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हैं, और इसकी व्यापक तीखी नकारात्मक प्रतिक्रिया होगी। सच यही है कि सलमान खुर्शीद ने भाजपा को ऐसा मुद्दा दे दिया है, जिसमें उसे लाभ और कांग्रेस को केवल राजनीतिक क्षति होनी है। लगता है कि कांग्रेस के ही कुछ नेता अपने वक्तव्य और विचारों से पार्टी का अंत करने पर तुले हैं। सलमान खुर्शीद की पंक्तियां और चिदंबरम के वक्तव्य उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनाव अभियानों में प्रतिध्वनित होंगे ही, अन्य राज्यों में भी यह एक बड़ा मुद्दा हो गया है।
आने वाले अनेक वर्षो तक अनेक चुनावों में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता द्वारा हिंदुत्व को आतंकवादी संगठनों के समान बताने किए पंक्तियां उसी तरह उद्धृत की जाती रहेंगी जैसे पी चिदंबरम ने गृह मंत्री रहते हुए भगवा आतंकवाद शब्द प्रयोग किया था। वैसे भी यह मुद्दा होना ही चाहिए कि आखिर, कांग्रेस के ऐसे नेताओं की सोच क्या है। भाजपा इसमें आक्रामक होगी और कांग्रेस के सामने रक्षात्मक होने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने सलमान खुर्शीद का समर्थन भी कर दिया है और उसके लिए तर्क दे रहे हैं। नहीं समझ रहे कि वे इससे देश में विषाक्त वातावरण बनेगा तथा इससे उनकी पार्टी के चुनावी भविष्य पर एक बड़ा ग्रहण लग जाएगा। हालांकि कोई पार्टी जीते हारे, यह जितना महत्त्वपूर्ण नहीं है, उससे महत्त्वपूर्ण है देश का माहौल। सलमान खुर्शीद भले कहें कि उनका उद्देश्य हिंदू मुस्लिम एकता है लेकिन उनके अतिवादी विचार देश का माहौल खराब करने की भूमिका निभाएंगे।
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