धार्मिक सहिष्णुता : इतिहास की गलतियों से सीखना होगा

Last Updated 18 Nov 2021 12:11:20 AM IST

आईटी हब एवं व्यावसायिक सेंटर कहे जाने वाले गुड़गांव में कुछ दिन पूर्व सार्वजनिक स्थल पर नमाज पढ़ने को लेकर बड़ा विवाद हो गया। माहौल तनावपूर्ण बन गया था।


धार्मिक सहिष्णुता : इतिहास की गलतियों से सीखना होगा

शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा। इस तरह की घटनाएं दिल्ली से लेकर पटना और कोलकाता तक अलग-अलग शहरों में अलग-अलग रूप में देखने में आ रही हैं। हिंदूवादी संगठनों का मत है कि नमाज अदा करने पर हमें कोई एतराज नहीं है परंतु सड़कों एवं सार्वजनिक स्थलों पर नमाज नहीं अदा की जानी चाहिए। इसमें जमा होने वाली भीड़ से लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ता है।
दूसरी तरफ, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी सहित अधिकतर मुस्लिम संगठनों का भी मानना है कि नमाज अल्लाह की इबादत है। किसी को तकलीफ देकर इबादत करना ठीक नहीं है, लेकिन वह यह बात पर भी जोड़ते हैं  कि जन्माष्टमी, कांवड यात्रा आदि धार्मिक उत्सवों पर सड़कों को क्यों बंद किया जाता है? एक देश, एक संविधान, एक नियम-कानून, फिर उनके अनुपालन में दो नियम क्यों? भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को धर्म और उपासना की स्वतंत्रता का अधिकार देता है परंतु भारत का संविधान यह भी कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति की स्वतत्रंता वहां समाप्त हो जाती है, जब उससे किसी दूसरे व्यक्ति को परेशानी होने लगती है। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सार्वजनिक स्थल पर किसी का भी अतिक्रमण नहीं हो सकता है। मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि पेरम्बलूर जिले के कलाथुर गांव में अल्पसंख्यक हिंदूओं द्वारा मनाए जाने वाले त्योहारों से बहुसंख्यक मुस्लिम समाज की भावनाएं आहत होती हैं, इसलिए उन पर रोक लगनी चाहिए। मद्रास हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।

किसी क्षेत्र का बहुसंख्यक वर्ग दूसरे वर्ग के मूलभूत अधिकारों, जिनमें धार्मिक प्रक्रियाएं शामिल हैं, को रोक नहीं  सकता। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर ऐसा हुआ तो देश के ज्यादातर हिस्सों में अल्पसंख्यक धार्मिक रीति-रिवाज और त्योहार नहीं मना पाएंगे। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि सड़कों और गलियों पर कोई धर्म दावा नहीं कर सकता। उन्हें सब इस्तेमाल कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि विश्व के 27 मुस्लिम देशों में भी सार्वजनिक स्थलों पर नमाज अदा करने की अनुमति नहीं है। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यहां तक कहा है कि ध्वनि प्रदूषण के लिए ऊंची आवाज में माइक चलाने पर भी प्रतिबंध होना चाहिए। उल्लेखनीय है कि इंडोनेशिया में लोगों की परेशानियों को देखते हुए मस्जिदों के लाउडस्पीकर की आवाज कम रखने का निर्णय लिया गया है।
भारतीय समाज हमेशा से ही सहिष्णुवादी रहा है, जहां कट्टरता का किंचित मात्र भी स्थान नहीं है। भारत हमेशा से ही प्रताड़ित लोगों के लिए एक शरणस्थली रहा है। अयोध्या में बनने वाली मस्जिद भी सरकार द्वारा ही बनाई जा रही है। भारत का संविधान किसी भी सरकार को इस बात की इजाजत नहीं देता कि वह कोई भी ऐसा कानून बनाए जो धर्म के आधार पर भेदभाव करे। भारत की दुनिया में जो साख है, वह उसकी लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष छवि के कारण है।
इसके बावजूद कुछ सिरफिरे और असामाजिक तत्व जानबूझ कर माहौल खराब करने में लगे रहते हैं। कुछ राजनीतिक नेता भी लोगों की भावनाओं का व्यापार कर अपना हित साधने में लगे हैं। शासन-प्रशासन को ऐसे तत्वों के साथ सख्ती से निपटना होगा। वर्तमान समय की सबसे बड़ी चुनौती को समय रहते बौद्विक परिपक्वता के साथ सुलझाना होगा। इसके लिए समाज में सद्भावना दलों के गठन को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जो समाज एवं पुलिस-प्रशासन के बीच एक सेतु का कार्य करें। आज धर्म के छलावे के मूल्यों को छोड़कर धर्म के नैतिक मूल्यों के प्रसार की आवश्यकता है। इक्कीसवीं सदी में हमारी प्राथमिकता लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित सिर्फ विकास ही होना चाहिए अन्यथा आने वाली पीढ़ियों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इन सबके बीच सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हम इतिहास की गलतियों से भी कुछ सीखने को तैयार नहीं हैं।

डॉ. सुरजीत सिंह गांधी


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