यूपी में कानून व्यवस्था : सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा

Last Updated 17 Nov 2021 01:17:19 AM IST

बीते तीन दशक में उत्तर प्रदेश में पहली बार होगा, जब विधानसभा चुनाव में कानून-व्यवस्था की बदहाली जैसा कोई मुद्दा नहीं होगा, बल्कि बेहतर कानून-व्यवस्था का मुद्दा सरकार के चयन का पैमाना बनेगा।


यूपी में कानून व्यवस्था : सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा

पुलिस को गोली का जवाब गोली से देने की छूट देकर योगी सरकार ने अपराधियों में जो भय पैदा किया है, उसका असर प्रदेश में साफ नजर आ रहा है।  
समाजवादी पार्टी के गठन के बाद मुलायम सिंह यादव ने पार्टी को मजबूत करने के लिए उत्तर प्रदेश में हार्डकोर अपराधियों को सियासी मंच देकर जिस तरीके से अपराध का सांस्थानिक राजनीतिकरण किया, उसका दुष्परिणाम अखिलेश यादव की सरकार तक आम जनता को भोगना पड़ा। अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण देने का असर था कि मऊ दंगा के दौरान मुख्तार अंसारी खुली जीप पर घूम कर एक वर्ग में दहशत पैदा करता रहा, और पुलिस टूटे मनोबल के साथ दंगा रोकने की बजाय उसकी सुरक्षा करती रही। वही मुख्तार अंसारी अब उत्तर प्रदेश की जेल में नहीं रहना चाहता, जो कभी जेल में बैठकर अपनी आपराधिक हुकूमत चलाता था। खूंखार अतीक अहमद भी भयभीत है, जो देवरिया जेल में रहते हुए व्यापारी को उठवा कर जेल के अंदर हाथ-पैर तुड़वाने की ताकत रखता था। पिछली सरकारों में विधायकों की हत्या कराने का हौंसला रखने वाले इन दोनों अपराधियों के अलावा वो तमाम अपराधी भयग्रस्त हैं, जिनकी कभी उत्तर प्रदेश में तूती बोलती थी।
भाजपा सरकार में 135 से ज्यादा एनकाउंटर और अपराधियों की दो हजार करोड़ से ज्यादा की संपत्ति को जब्त कर और अवैध कब्जों पर बुलडोजर चलाकर योगी ने स्पष्ट संदेश दिया है कि उत्तर प्रदेश में अपराधियों को भयभीत होकर चुपचाप जेल में ही रहना होगा। दरअसल, कानून व्यवस्था को लेकर कई बार आंकड़े सही तथ्य रखने में असमर्थ होते हैं। कानून-व्यवस्था आंकड़ों की बजाय अनुभूति का विषय होता है कि आम जन कैसा महसूस कर रहा है, और अपराधी क्या सोच रहे हैं। यह अनुभूति तब दिखती है, जब खूंखार से खूंखार अपराधी भयभीत होकर सरेंडर करते हैं।

अखिलेश यादव के शासनकाल में मुजफ्फरनगर के कैराना से व्यापारियों के पलायन करने को मजबूर करने वाला अपराधी फुरकान योगी आदित्यनाथ के कैराना दौरे के अगले ही कुछ घंटों में खुद जमानत खारिज करा कर जेल चला जाता है, तो जाहिर तौर पर माना जा सकता है कि यह कानून का डर है। अपराध की घटनाओं को पूरी तरह रोक पाना संभव नहीं है, लेकिन उस पर होने वाली त्वरित कार्रवाई भरोसा पैदा करती है। यह भरोसा तब होता है जब राज्य सांप्रदायिक दंगों की आंच से दूर होता है। यह भरोसा तब पैदा होता है, जब सरकारों के समानांतर अपनी व्यवस्था संचालित करने वाले अपराधी जान की सलामती के लिए गिड़िगड़ाते हैं। यह भरोसा तब आता है, जब सरकार की कथनी और करनी में फर्क न्यूनतम होता है।
आलोचनाओं एवं संभावित खतरों के बावजूद योगी आदित्यनाथ ने शपथ लेने के बाद जब अपराधियों के विरु द्ध जीरो टालरेंस नीति अपनाने का ऐलान किया तब किसी को भरोसा नहीं था कि यह दौर बहुत लंबा चलेगा। यह घोषणा भी ठीक उसी तरह तात्कालिक मानी गई, जैसी अमूमन पिछली तमाम सरकारों के समय होती थी। एक तरफ सरकारें राज्य को अपराधियों से मुक्त कराने का दावा करती थीं और दूसरी तरफ अपराधी बेखौफ सीधे-सीधे सरकार संचालन में अहम भूमिका निभाते थे। पिछली सरकारों की कार्यप्रणाली एवं अनुभवों से वाकिफ आम जन के मन में यही विचार था कि यह घोषणा मात्र चार दिन की चांदनी है, इसके बाद फिर वही दौर शुरू होगा जैसा पिछली सरकारों में होता आ रहा था, परंतु बीते साढ़े चार साल के शासन में साबित हो चुका है कि योगी ने शपथ लेते समय जो ऐलान किया था उस पर शत प्रतिशत खरे उतरे हैं। परिणाम है कि उत्तर प्रदेश संगठित अपराध के लगभग खात्मे की ओर बढ़ चुका है। सड़कों पर खुलेआम गैंगवार की घटनाएं थम गई हैं। व्यापारियों से रंगदारी बंद हो चुकी है। बच्चियां शोहदों के डर से अब स्कूल जाने से नहीं डरतीं। यह भरोसा इसलिए बढ़ा है कि अपराध होने पर कार्रवाई में तेजी आई है। अपराधियों को सजा मिल रही है।
किसी भी राज्य का अपराधशून्य होना असंभव है। खासकर उत्तर प्रदेश जैसे बड़ी आबादी वाले राज्य का, जिसकी जनसंख्या दूसरे नंबर की आबादी वाले राज्य महाराष्ट्र से लगभग दोगुना है। इस तथ्य के बावजूद यूपी की कानून-व्यवस्था की मजबूती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीते साढ़े चार सालों में उत्तर प्रदेश में एक भी दंगा नहीं हुआ है। समाजवादी पार्टी की पिछली सरकार में औसतन हर साल 150 के आसपास बड़े-छोटे सांप्रदायिक दंगे हुए थे। आंकड़ों के लिहाज से अखिलेश सरकार में हर तीसरे दिन दंगा हुआ या सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी, लेकिन भाजपा की सरकार में उत्तर प्रदेश दंगों से दूर रहा। आम जन को पलायन करने या टेंट में रहने को मजबूर नहीं होना पड़ा। यह इसलिए संभव हो पाया कि योगी ने पुलिस मशीनरी को अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की पूरी छूट दी। अपराधियों के खिलाफ कठोरता अपनाई तो उन पुलिसकर्मिंयों के खिलाफ भी कड़ा एक्शन लिया, जिन्होंने इस छूट का दुरुपयोग किया। कानूनराज का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि पद का दुरु पयोग करने वाले एसपी तक को प्रश्रय देने की बजाय कानून की जद में लाया गया। भगोड़ा घोषित कर इनाम रखा गया।
बसपा शासनकाल में उत्तर प्रदेश आतंकी हमलों से आजिज रहा तो सपा शासनकाल में दंगों एवं अपराधियों की मनबढ़ई को झेला, लेकिन योगी के कठोर निर्णय का ही असर रहा कि राज्य में न तो कोई आतंकी हमला हुआ और न ही दंगे हुए। सड़क पर अराजकता नहीं दिखी, केवल इसलिए कि सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के आदती लोगों से सरकार ने वसूली करने का कानून लागू किया। अपराधी मानसिकता वाले पुलिसकर्मी जबरिया रिटायर किए गए। योगी ने अवैध तरीके से अर्जित किए गए उनके आर्थिक साम्राज्य को भी तहस-नहस कर दिया। अवैध आय के स्रोत को जमींदोज कर अपराधियों की कमर तोड़ने का काम किया। अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चलवा कर तथा सरकारी जमीनों को मुक्त कराकर उन पर गरीबों के लिए घर बनवाए। कानून पर भरोसे का असर है कि समाजवादी पार्टी की सरकार में दंगों एवं अपराधियों के डर से कैराना से पलायन करने वाले लोग अब वापस लौट चुके हैं।

अनिल कुमार


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