तकनीक : संभावनाओं के द्वार खोलते ड्रोन

Last Updated 27 Oct 2021 02:26:25 AM IST

कुछ दिनों पहले जब मणिपुर के सुदूर इलाके में ड्रोन के जरिए दवाइयां भेजी गई और गुजरात के खेतों में ड्रोन ने रसायन छिड़का तो लोगों को इसकी खासियत का पता चला।


तकनीक : संभावनाओं के द्वार खोलते ड्रोन

मानव-रहित हवाई वाहनों की मदद से कुछ ऐसे रोबोट उड़ाये जा रहे हैं, जिनसे मानव-सहित उड़ानों के कुछ लाभ तो मिलते हैं, लेकिन इनमें न तो कोई जोखिम उठाना पड़ता है और न ही किसी प्रकार की परेशानी झेलनी पड़ती है। ड्रोन नाम से प्रचलित ये रोबोट पिछले दो दशकों से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग और कंप्यूटर विज्ञान में हुई प्रगति के कारण काफी चर्चा में आ गए हैं। सन् 1973 में योम कुप्पूर में और सन् 1982 में लेबनान के युद्ध में जबसे इनकी क्षमता प्रमाणित हुई है, कई सैन्यबलों ने इनकी मदद से निगरानी का काम शुरू कर दिया और ड्रोन का उपयोग हथियार के रूप में भी किया जाने लगा है।
ड्रोन का उपयोग केवल सैन्य उपयोग के लिए ही नहीं होता, सारी दुनिया में उनका उपयोग युद्धेतर कार्यों के लिए भी किया जा रहा है। इनका उपयोग संकट काल के दौरान केवल सहायता एजेंसियों तक ही सीमित नहीं है, किसान इसका उपयोग अपने खेतों के लिए करते हैं। वन्यजीवों के अवैध शिकार करने वाले शिकारियों से जंगल की रक्षा भी हो सकती है। इस तरह ड्रोन का व्यावसायिक उपयोग भी है। दुर्भाग्यवश, जो भी नई प्रौद्योगिकियां आती हैं, उनके साथ जोखिम भी रहता है और ड्रोन भी इसके अपवाद नहीं हैं।   दूसरी उड़ने वाली वस्तुओं की तरह ड्रोन भी कभी-कभी टक्कर के शिकार हो जाते हैं। ऐसे हादसे तभी ज्यादा होते हैं, जब ड्रोन का आकार बड़ा होता है और वे भारी होते हैं, क्योंकि इससे संपत्ति का नुकसान हो सकता है।

ड्रोन उन हवाई मार्गों पर उड़ते हैं, जिनका उपयोग मानव-सहित विमानों द्वारा किया जाता है। इसलिए आकाश में उनकी टक्कर हो सकती है या टक्कर की आशंका रहती है। भारत सरकार ने 2014 में नागरिकों द्वारा इसके उपयोग पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी थी, लेकिन इस साल ड्रोन की उपयोगिता और लोगों तक सरलता से पहुंच बनाने के लिए ड्रोन संचालन के नियमों में परिवर्तन कर दिया है। नियमों के मसौदे में प्रस्ताव किया गया है कि कोई भी अधिकृत विनिर्माता या आयातक ड्रोन की बिक्री विमानन क्षेत्र के नियामक नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) से मान्यता प्राप्त व्यक्ति या इकाई को ही कर सकता है। नियमों में कहा गया है कि ड्रोन के आयातक, विनिर्माता, व्यापारी, मालिक या परिचालक को डीजीसीए से अनुमति लेनी होगी। कोई भी आयातक या विनिर्माता सिर्फ  अधिकृत व्यापारी या मालिक को ही ड्रोन बेच सकेगा। मसौदे में कहा गया है कि डीजीसीए के पास मानवरहित विमान प्रणाली (यूएएस) के पास इन नियमों के तहत किसी तरह की अनुमति देने से पहले यूएएस के विनिर्माण या रखरखाव सुविधा के निरीक्षण का अधिकार होगा। इसमें कहा गया है कि देश में कोई भी यूएएस तीसरे पक्ष की बिना वैध बीमा पॉलिसी के परिचालन नहीं कर सकेगा। इसके अलावा कोई यूएएस डीजीसीए द्वारा दी गई अनुमति से अधिक भार नहीं ढो सकेगा। माना जा रहा है कि नई पॉलिसी नवाचार और व्यापार के लिए नई संभावनाएं खोलेगी। साथ ही भारत को ड्रोन हब बनाने के लिए नवाचार, प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग में भारत की ताकत का लाभ उठाने में मदद करेगी। जारी आदेश से अद्वितीय प्राधिकरण संख्या, अद्वितीय प्रोटोटाइप पहचान संख्या, अनुरूपता का प्रमाण पत्र, रखरखाव का प्रमाण पत्र, ऑपरेटर परमिट, अनुसंधान और विकास संगठन का प्राधिकरण, छात्र दूरस्थ पायलट लाइसेंस, दूरस्थ पायलट प्रशिक्षक प्राधिकरण, ड्रोन पोर्ट प्राधिकरण, ड्रोन घटकों के लिए आयात की अनुमति मिल गई है। भारी पेलोड ले जाने वाले ड्रोन और ड्रोन टैक्सियों को शामिल करने के लिए ड्रोन नियम के तहत ड्रोन का कवरेज 300 किग्रासे बढ़ाकर 500 किलोग्राम कर दिया गया है।
किसी भी पंजीकरण या लाइसेंस जारी करने से पहले किसी सुरक्षा मंजूरी की आवश्यकता नहीं है। मानव-रहित वाहन प्रणाली अंतरराष्ट्रीय संघ की रिपोर्ट में कहा गया है कि सन 2025 तक अकेले अमेरिका में ही व्यावसायिक ड्रोन उद्योग में 100,000 से अधिक रोजगार के अवसर पैदा हो जाएंगे। इतना ही नहीं ड्रोन से निर्यात बाजार बढ़ाने में भी मदद मिल सकती है। मसलन जापान में अस्सी के दशक से ही ड्रोन के व्यावसायिक उपयोग के लिए लाइसेंस दिये जाने लगे थे और तब से ही यामाहा कॉर्पोरेशन खेती-बाड़ी के लिए हवाई छिड़काव के लिए ड्रोन का उत्पादन करता रहा है और अब उसका निर्यात अमेरिका, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया में किया जा रहा है।

अमलेंदु भूषण खां


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