बांग्लादेश हिंसा : विश्व समुदाय आगे आए
भारत सहित पूरी दुनिया में इस्कॉन के बैनर से बांग्लादेश में हिंदुओं के विरुद्ध जारी हिंसा का विरोध किया जाना बिल्कुल स्वाभाविक है।
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सभी समुदाय के लोगों को विश्व भर में इस हिंसा के विरु द्ध एकजुट होना चाहिए। लेकिन हिंदुओं के विरुद्ध कुछ भी हो जाए दुनिया के लिए यह तभी चिंता का कारण बनता है जब भारत की कूटनीति सक्रिय होती है। भारत में स्वयं को सेकुलर मानने वाला खेमा ऐसे खामोश है मानो बांग्लादेश में हिंदुओं के विरुद्ध हमला स्वाभाविक घटना हो। बांग्लादेश में 13 अक्टूबर, 2021 को कोमिल्ला के नानुआर दिधी के दुर्गा मंडप से आरंभ हमले ने देशव्यापी एकपक्षीय दंगे का रूप ले लिया था।
नोआखाली के इस्कॉन मंदिर पर बर्बर हमला हुआ। अबुल अला मौदुदी द्वारा स्थापित कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी सहित अन्य मुस्लिम संगठनों का हाथ इसके पीछे माना जा रहा है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा था कि जमात वही स्थिति लाना चाहती है जिसमें खुलेआम कत्लेआम हो। जमात और ऐसे दूसरे संगठन हिंदुओं पर हमले करते रहे हैं, मंदिर और हिंदू घर तोड़े और जलाए जाते रहे हैं। शेख हसीना उदारवादी हैं किंतु इन कट्टरपंथियों के सामने वह भी कमजोर नजर आई हैं।
बांग्लादेश के अखबार ब्लिट्ज ने आबादी का विश्लेषण कर बताया है कि 1947 में पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश में 30 प्रतिशत से ज्यादा हिंदू थे। 2011 की जनगणना में हिंदुओं की आबादी 8 प्रतिशत रह गई। बांग्लादेश के मीडिया पर नजर रखें तो साफ दिखाई देगा कि हिंदुओं को अपमानित तथा हिन्दू महिलाओं के साथ बदतमीजी की घटनाएं आम हैं। बांग्लादेश की ही संस्था ऐनओ सालिश सेंटर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है 2013 के आरंभ से इस वर्ष सितम्बर तक हिंदुओं पर 3679 हमले हो चुके हैं। नोआखाली में स्थिति भयावह है। बांग्लादेश हिंदू-बुद्धिस्ट-क्रिश्चियन यूनिटी काउंसिल ने चांदपुर एवं नोआखाली हमलों में जान-माल की क्षति की भयावह तस्वीर पेश की है।
नोआखाली और कोमिल्ला दोनों महत्वपूर्ण जगह हैं। नोआखाली वह स्थान है, जहां 15 अगस्त, 1947 के पूर्व और बाद में हुए भीषण दंगों के बाद महात्मा गांधी को जाना पड़ा था। कोमिल्ला वह जगह है जहां आठवीं सदी में त्रिपुरा के देव राजवंश का शासन था। 1400 के बाद माणिक वंशी राजाओं ने शासन किया। किंतु 16 वीं सदी से स्थितियां बदलने लगीं। 1764 में शमशेर गाजी के नेतृत्व में यहां बड़ा आंदोलन हुआ और राजवंश का अंत हो गया। कुछ लोग उसे काजी नजरुल इस्लाम की कर्मभूमि के रूप में याद करते हैं जहां उन्होंने प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आने के विरुद्ध अपनी चर्चित कविता की रचना की थी। वहां 1931 में मालगुजारी के खिलाफ भी किसान आंदोलन हुआ था और उसमें भी कुछ मजहबी अंश थे। तब महात्मा गांधी और रविन्द्रनाथ टैगोर दोनों वहां गए थे। नोआखाली का दंगा कोई भूल नहीं सकता। 1946 का यही अक्टूबर महीना था जब वहां हिन्दुओं पर हमले आरंभ हुए थे। गांधीजी वहां नवम्बर 1946 में पहुंचे थे। उस समय के बंगाल के कांग्रेस के नेता डॉ बिधान चंद्र राय ने गांधी जी को हिंसा का जो विवरण दिया था, वह दिल दहलाने वाला था।
उन्होंने कहा था कि हिंदुओं का नरसंहार हो रहा है और हिंदू महिलाओं के साथ लगातार दुष्कर्म किया जा रहा है। मोहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन के बाद कोलकाता से लेकर बंगाल की कई जगहों पर खुलेआम कत्लेआम हुआ था। उसकी चपेट में नोआखाली था। गांधी जी के साथ प्यारेलाल नैयर, डॉक्टर राम मनोहर लोहिया, उनकी सहयोगी आभा, मनु आदि गए थे। उन्होंने सात सप्ताह तक पैदल क्षेत्र की यात्रा की। रिकॉर्ड बताते हैं कि वे करीब 115-16 मील चलकर 47-48 गांवों तक पहुंचे। उस समय 10 अक्टूबर, 1946 का दिन था, जिसे कोजागरा पूर्णिमा कहा जाता है। हिन्दुओं की सामूहिक हत्याओं के साथ हजारों को मुसलमान बनाया गया था। बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार थी। बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री हुसैन शाहिद सुहरावर्दी ने गांधीजी को नोआखाली छोड़ने की चेतावनी दी थी। उनके रास्ते में अनेक बाधाएं मुस्लिम लीग और उनके कट्टरपंथियों ने खड़ी कीं। गांधी गांव-गांव घूमते रहे।
काफी लोग इस समय नोआखाली और गांधी को याद कर रहे हैं। क्या आज वही स्थिति बांग्लादेश या पाकिस्तान में है कि कोई गांधी जैसा व्यक्ति वहां जाए, यात्राएं करे और हमलों को शांत करे? कतई नहीं। बांग्लादेश के साथ हमारे संबंधों को देखते हुए देश के विरु द्ध कुछ बोलना राजनयिक दृष्टि से विपरीत परिणामों वाला माना जा रहा है। मरणासन्न हो चुकी पार्टी बीएनपी यानी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी सक्रिय हो गई। उसने दंगों की जांच के लिए दो समानांतर कमेटियों का गठन कर दिया। सब जानते हैं कि बेगम खालिदा जिया के शासन में किस तरह हिंदुओं पर हमले हुए, कट्टरपंथ और आतंकवाद तेजी से फैला। उन्हें लगता है कि मजहबी उन्मादियों के साथ खड़े होकर वह अपना समर्थन वापस पा सकती हैं। इसलिए भारत सरकार अंदर भले सक्रिय हो स्पष्ट बोलने से बच रही है।
वास्तव में इस प्रकार की हिंसा अपने आप नहीं होती। इसकी जड़ें गहरी हैं। लंबे समय से हिंदुओं और अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध पैदा की गई घृणा तथा बांग्लादेश को सम्पूर्ण इस्लामिक राज बनाने का प्रचार चलता रहा है। ऐसी घटनाओं में संयम बनाए रखना कठिन है। बांग्लादेश की 4096 किलोमीटर सीमा से लगने वाले पूर्वोत्तर के 5 राज्यों असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय और पश्चिम बंगाल में इसका असर है। अक्टूबर के नोआखाली तथा मोहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन को पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश के कट्टरपंथी हमेशा याद करते हैं।
यानी यह छिटपुट हिंसा या अचानक हो गई वारदात नहीं है। इसके पीछे एक विचार और योजना है। यह यूं ही खत्म नहीं होगी। दुनिया का प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह किसी धर्म या पंथ को मानने वाला हो उसको अपने महत्वपूर्ण पर्व मनाने के लिए विश्वास दिलाना जरूरी है कि वह सुरक्षित है। लेकिन हिंसा रु की नहीं। वास्तव में इसके लिए बांग्लादेश सरकार को तो जो कुछ संभव हो सकता है करना ही चाहिए, भारत सहित संपूर्ण दुनिया के हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई यहां तक कि मुसलमानों को भी प्रतिरोध करना चाहिए अन्यथा एक दिन वहां से गैर मुस्लिमों का नामोनिशान खत्म हो जाएगा।
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