अर्थव्यवस्था : प्रगति के हाइवे पर
पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दाम सभी के लिये चिन्ता का सबब हैं। सरकार इसका संज्ञान ले रही है।
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वैश्विक स्तर पर भी भारत दबाव डाल रहा है कि तेल का दाम कम किया जाए और उसका उत्पादन बढ़ाया जाए। प्रधानमंत्री का प्रयास है कि हम अक्षय ऊर्जा की खपत बढ़ाएं चाहे वह सौर हो या पवन ऊर्जा। अब नेशनल हाइड्रोजन मिशन की भी स्थापना की गई है। तेल उत्पादों पर केन्द्र एक्साइज और प्रदेश सरकार वैट लगाती है। जहां तक केन्द्र सरकार की बात है तो सभी जनकल्याणकारी योजनाओं का खर्च केन्द्र सरकार ही वहन करती है।
कोविड की त्रासदी के बाद लगभग तीस लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई थी, उसका सारा खर्च केन्द्र ही वहन कर रहा है। जीएसटी और डाइरेक्ट टैक्स के अंतर्गत जो राशि जमा हो रही है, उसमें कमी आने के बावजूद केन्द्र प्रदेशों को पूरी राशि मुहैया करा रहा है। कर आपूर्ति में कमी होने के कारण केन्द्र के संसाधनो में कमी आई है और केन्द्र के खच्रे बढ़े हैं। इसे देखते हुए प्रदेश सरकारों को अपना वैट कर कम करना चाहिए।
जहां तक अर्थव्यवस्था को पुन: पटरी पर लाने की बात है तो कोरोना के बाद सरकार के सभी प्रयास फलीभूत हो रहे हैं। हम जो देख रहे हैं वह एक मजबूत ‘वी’ आकार की रिकवरी है। भारतीय अर्थव्यवस्था इस वर्ष दो अंकों की विकास दर हासिल करने की राह पर है तथा आने वाले वर्षो में भी यह दर अच्छी रहेगी। यह केंद्र की मोदी सरकार द्वारा उठाये गए सुधारात्मक कदमों का परिणाम है।
कोरोना संकट के बाद मानो एक बार लग रहा था कि भारत अपनी विकास की गति में पिछड़ न जाए। परंतु जिस प्रकार कोरोना के बाद पिछले एक साल में विकास हुआ है वह सराहनीय है। वित्त मंत्रालय के मुताबिक लॉकडाउन के कारण भारत की अर्थव्यवस्था आपूर्ति और मांग की दिक्कतों का सामना कर रही थी। परंतु आज जब हम देखते हैं तो भारत का हर क्षेत्र अपने पूर्ववर्ती विकास के मार्ग पर अग्रसर हो रहा है। कई नए सुधार और आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की मदद से न केवल आर्थिक मंदी को भारत ने पीछे छोड़ा बल्कि आत्मनिर्भर बनकर आगे के लिए एक नई नींव भी तैयार कर रहा है। इस नए आत्मविश्वास और प्रगति के कई महत्वपूर्ण प्रमाण है।
कृषि क्षेत्र में जनवरी से दिसम्बर 2019 तक किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि किसानों की आय में 59 फीसद की वृद्धि हुई है। 2012-13 में प्रति परिवार आय प्रति माह 6426रु. से बढ़ कर 10218 रु. प्रति माह हो गई है। एक प्रमुख कंसल्टेंसी फर्म की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत विश्व स्तर पर दूसरा सबसे अधिक मांग वाला विनिर्माण गंतव्य बनने के साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका से भी आगे निकल गया है।
प्रत्यक्ष कर संग्रह 16 सितम्बर,21 तक 5.66 लाख करोड़ रुपये रहा जो पिछले साल इसी अवधि में 3.28 लाख करोड़ था। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चालू वित्त वर्ष में संग्रह 2019-2020 (पूर्व-कोविड) की इसी अवधि की तुलना में 28 प्रतिशत अधिक है। जीएसटी संग्रह, लगातार नौ माह से 1 लाख करोड़ का आंकड़ा पार करने के पश्चात जून 2021 में, कोविड की दूसरी लहर के कारण 1 लाख करोड़ से कुछ नीचे चला गया था लेकिन अर्थव्यवस्था की मजबूती को दिखाते हुए जुलाई और अगस्त 2021 का जीएसटी संग्रह फिर 1 लाख करोड़ को पार कर गया है।
विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (डब्ल्यूआईपीओ) द्वारा तैयार किए गए ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (जीआईआई) 2021 में भारत दो रैंक चढ़कर 46वें स्थान पर पहुंच गया है। अगस्त 2021 में भारत का व्यापारिक निर्यात 33.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो अगस्त 2020 में 22.83 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 45.17 अधिक था और अगस्त 2019 (पूर्व कोविड) में 25.99 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 27.5 अधिक था।
टीकाकरण अभियान में भारत ने 100 करोड़ टीकाकरण का प्रभावशाली लक्ष्य हासिल कर लिया है, यह मजबूत सकारात्मक भावनाओं और सेवाओं, पर्यटन जैसे क्षेत्रों में मदद करेगा। यह स्वीकार करने में कोई भी संकोच नहीं है कि अर्थव्यवस्था के कुछ हिस्सों में अभी भी समस्याएं हैं। केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार और भाजपा देश के कुछ क्षेत्रो में आर्थिक चिंताओं के प्रति सजग है। भाजपा बाजार आधारित अर्थव्यवस्था पर विश्वास करती है एवं दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों और कुशल एवं पारदर्शी बाजारों पर लगातार काम कर रही है।
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