बतंगड़ बेतुक : झल्लन ने बनाई अपनी टूलकिट

Last Updated 21 Feb 2021 01:21:37 AM IST

जब झल्लन आया तो हाथ में चार-छह पन्ने भी दबा लाया। हमने कहा, ‘ये कैसे कागज हैं झल्लन जो तू इतने प्यार से हाथ में सहेजे हुए है, लगता है जैसे तुझे कोई प्रेम पत्र भेजे हुए है।’


बतंगड़ बेतुक : झल्लन ने बनाई अपनी टूलकिट

झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, आजकल किसे तो प्रेम पत्र लिखना है और किसे प्रेम पत्र लिखवाना है। ये तो फोन, चैट और मैसेंजर का जमाना है। आज की दुनिया में आपकी जुबान पर प्रेम पत्र की बात आ रही है, जरूर आपको अपनी कोई प्रेम कहानी सता रही है। वैसे भी ददाजू, आज की दुनिया में प्रेम-वेम तो खत्म हो गया है, न जाने लोग मोहब्बत और प्रेम को कहां दफना आये हैं, हम तो बस अपनी एक टूलकिट बनाए हैं वहीं आपको सुनाने लाये हैं।’ हमने हैरानी से झल्लन को निहारा तो उसने अपने हाथ के कागजों को संवारा फिर हमारे सामने पसारा और बोला, ‘हैरान न होइए ददाजू, आजकल हर जगह टूलकिट चर्चा में आ रही है और जो भी टूलकिट बनाता-बनवाता है उसी की जमात मीडिया में छा रही है। सो, हम सोचे कि हम भी अपनी एक टूलकिट बना लें और सबसे पहले आपको दिखा लें।’
हमने कहा, ‘टूलकिट बनाने और मीडिया में छाने की बात तो ठीक, पर जो भी टूलकिट बना-बनवा रहा है वह पुलिस के हत्थे चढ़ सीधे जेल जा रहा है।’ झल्लन बोला, सुनिए ददाजू, जो लोग कम्प्यूटर पर टूलकिट बनाए हैं, फिर उसे एडिट-वैडिट कर इधर-उधर भिजवाएं हैं वही पुलिस के चंगुल में फंस पाये हैं। तभी न हम अपनी टूलकिट कागज पर बनाकर लाये हैं, अभी तक किसी को भी नहीं दिखाएं हैं, अपनी टूलकिट लेकर सीधे आपके पास चले आये हैं।’ हमने कहा, ‘आखिर तू अपनी इस टूलकिट से कौन सा षडयंत्र रचाएगा, किसको उकसाएगा और कहां दंगा भड़काएगा?’ झल्लन बोला, ‘अपनी बुद्धि पर तरस खाओ ददाजू, हम क्या आपको दंगाई नजर आते हैं जो अपनी टूलकिट देश-विदेश से मंगवाते-भिजवाते हैं। हम तो अपनी टूलकिट खुद अपने लिए बनाए हैं और पूरी टूलकिट में खुद को ही संबोधित किये हैं और इसमें सारे-के-सारे पर्सनल टच लगाए हैं।’ हमने कहा, ‘जब खुद को ही संबोधित करना था, न इसे मीडिया में लाना था, न पुलिस के हत्थे चढ़वाना था तो तुझे टूलकिट बनाने की खुजली क्यों हो रही थी, बिना टूलकिट के क्या तुझे रोटी हजम नहीं हो रही थी? खैर, बता क्या बना लाया है, अपनी टूलकिट में तूने अपने लिए कौन-सा गंभीर मसला उठाया है?’

झल्लन हमारी ओर देखकर मुस्कुराया, फिर उसने हाथ के कागजों को इधर-उधर घुमाया और बोला, ‘तो ददाजू, हमारी टूलकिट ने हमारे कई बेशकीमती घंटे लिये हैं इसलिए हम अपनी टूलकिट अपने-आप से ही शुरू किये हैं। हमने लिखा है, ‘हे झल्लन, टूलकिट बनाना बच्चों का खेल नहीं, यह मंजे हुए लोगों की मंजी हुई कला है और तू इस कला में पूरमपूर अनाड़ी है सो तू टूलकिट से दूर रहे इसी में तेरा भला है। तू किसानों के लिए टूलकिट बनाएगा तो सरकार तुझे तोड़ेगी और अगर सरकार के लिए टूलकिट बनाएगा तो आंदोलनजीवियों और मानवाधिकारियों की महान क्रांतिकारी जमात तुझे नहीं छोड़ेगी, इसलिए टूलकिट के बिना काम चलाना, टूलकिट के चक्कर में दिल-दिमाग मत खपाना और अपना खून मत जलाना।’ हमने मुस्कुराकर झल्लन की ओर देखा और कहा, ‘तो तूने अपनी टूलकिट की शुरुआत टूलकिट न बनाने से की है, आखिर टूलकिट-न-बनाने की टूलकिट बनाने की प्रेरणा तूने कहां से ली है?’ झल्लन बोला, ‘टोका-टाकी मत कीजिए ददाजू, ध्यान से सुनते जाइए और हमारे साथ हमारी टूलकिट के दूसरे प्वाइंट पर आइए। न जाने कैसे-कैसे खयालों में डूबकर कुछ अधपके बच्चे खयाली क्रांति के खयाली पुलाव पका लेते हैं और इस पुलाव का स्वाद इधर-उधर चखाने के लिए टूलकिट बना लेते हैं। इन्हें यह भ्रम हो जाता है कि ये सौ-पचास लोग जो सोच रहे हैं वही सही सोच रहे हैं और वे अपनी इस सोच के बल पर दुनिया बदल डालेंगे, उनकी समझ से वे जिसे अन्याय समझते हैं उसे मिटा डालेंगे और उधर देश बनकर जो सौ-पचास करोड़ की भीड़ खड़ी है वो डर जाएगी, उनकी आरती उतारेगी या उनके चरणों में झुक जाएगी। ऐसे लोग मूर्ख ही नहीं कायर भी होते हैं और अपना काम करने के लिए मुखौटा लगा लेते हैं। इनमें इतनी हिम्मत नहीं होती कि जो कहना चाहते हैं वह खुलकर कहें और जो करना चाहते हैं उसे छिपकर नहीं बल्कि निडर होकर सामने करें। जब ये ज्यादा कुछ नहीं कर पाते तो टूलकिट ही बना लेते हैं, जब तक चीजें खुलती नहीं तब तक चला भी लेते हैं मगर अंतत: बहुतों के साथ अपनी गर्दन भी फंसा लेते हैं। इसलिए हे झल्लन, टूलकिट मत बनाना और अपना काम बिना टूलकिट के ही चलाना।’
हमने कहा, ‘वाह झल्लन, तेरी टूलकिट तो तेरे अपने दिल-दिमाग की झांकी है, ये पूरी हो  गयी या अभी भी इसमें कुछ बाकी है?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, टूलकिट तो बहुत लंबी है अगर सुनाएंगे तो घंटों लग जाएंगे और दूसरे आप झल्लन की टूलकिट को समझ ही नहीं पाएंगे। इसलिए हमारी टूलकिट की अंतिम बात यह है कि हे झल्लन, तू भले अपनी टूलकिट बनाना, चाहे जहां चलवाना पर भूलकर भी ग्रेटा थनवर्ग को मत भिजवाना।’

विभांशु दिव्याल


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