वैश्विकी : बाइडेन की विदेश नीति

Last Updated 21 Feb 2021 01:23:24 AM IST

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपना कार्यकाल शुरू होने के एक महीना पूरा होने पर अपनी विदेश नीति के बारे में विस्तार से एक रूपरेखा प्रस्तुत की।


वैश्विकी : बाइडेन की विदेश नीति

बाइडेन ने म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति इमेन्वुएल मैक्रो की मौजूदगी में यूरोप, एशिया, चीन और रूस के बारे में अपने प्रशासन की सोच और रवैये को जाहिर किया। कोरोना वायरस महामारी, विश्व अर्थव्यवस्था की बहाली के साथ ही उन्होंने लोकतंत्र और मानवअधिकार के मुद्दे पर भी अपने विचार रखे।
बाइडेन ने अपने प्रशासन के लिए 100 दिन का एजेंडा रखा था। अब तक एक तिहाई समय  बीत  चुका है तथा इस बात का आकलन किया जा रहा है कि बाइडेन प्रशासन किस ओर जा रहा है। नये प्रशासन के महत्त्वपूर्ण निर्णयों में जलवायु परिवर्तन के बारे में अपनी वचनबद्धता पर वापस लौटने तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में फिर सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करने के फैसले शामिल हैं। बाइडेन ने जलवायु परिवर्तन संबंधी पेरिस समझौते के साथ फिर जुड़ने का फैसला किया जो विश्व मानवता के समक्ष उपस्थित प्रमुख चुनौती का सामना करने के लिहाज से बहुत महत्त्वपूर्ण है।

म्यूनिख सम्मेलन में बाइडेन मुख्य रूप से यूरोपीय नेताओं की ओर मुखातिब थे। उन्होंने यूरोपीय नेताओं को आश्वासन दिया कि अमेरिका उनके साथ है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के दौरान अमेरिका और यूरोप के बीच जो अविास और खाई बनी थी, उसे दूर करने का बाइडेन ने प्रयास किया। उन्होंने कहा कि ‘अमेरिका वापस लौट आया है।’ इस कथन की एक व्याख्या यह हो सकती है कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बारे में अमेरिका ट्रंप के पहले की स्थिति में लौटेगा। अमेरिका के वापस लौटने से ‘कुछ देश खुश और आश्वस्त होंगे तो कुछ अन्य देशों में आशंका और भय पैदा होगा।’ बाइडेन ने नाटो को मजबूत बनाने और यूरोप की सुरक्षा के प्रति अपने पुराने रवैये पर लौटने का एलान किया। उन्होंने सैन्य संगठन नाटो की सक्रियता पर जोर देते हुए कहा कि किसी एक नाटो देश पर हमला संगठन के सभी देशों पर हमला है। उन्होंने जर्मनी से अमेरिकी सैनिकों को हटाने के ट्रंप प्रशासन के फैसले को रद्द करने की घोषणा की। हाल के वर्षो में अमेरिका यूरोप की बजाय एशिया को भूरणनीतिक दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र मानता रहा है। अब बाइडेन ने यूरोप को फिर पहले जैसा महत्त्व देने की बात की है।
नये अमेरिकी राष्ट्रपति ने चीन की बजाय रूस को अपना मुख्य निशाना बनाया। यह भी यूरोप केंद्रित सोच का नतीजा है। बाइडेन ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन का नाम लेकर उनकी आलोचना की। उन्होंने रूस पर अमेरिका, यूरोप और अन्य लोकतांत्रिक देशों में अस्थिरता और अविास पैदा करने का आरोप लगाया। बाइडेन ने एक ओर नया शीतयुद्ध शुरू नहीं करने की बात की वहीं रूस के विरुद्ध अपने आक्रामक रवैये से यह संकेत दिया कि दोनों देशों के बीच संबंधों में कड़वाहट आ सकती है।
चीन के बारे में बाइडेन ने अपेक्षाकृत नरम रवैया अपनाया। ट्रंप प्रशासन ने चीन पर पूर्वी लद्दाख, दक्षिणी चीन सागर, ताइवान, हांगकांग और शिंजियांग प्रांत में आक्रामक गतिविधियां और कार्रवाई करने के जो आरोप लगाए थे, वे बाइडेन के संबोधन में नदारद रहे। बाइडेन ने चीन के साथ ‘कड़ी प्रतिस्पर्धा’ की बात कही लेकिन ‘कड़ी प्रतिस्पर्धा’ के संदर्भ में उनका मुख्य जोर आर्थिक गतिविधियों को लेकर था। व्यापार युद्ध से जुड़े मुद्दों को लेकर बाइडेन ने चीन के विरुद्ध सख्त रवैया अपनाने के संकेत दिए। बाइडेन ने अपने संबोधन में लोकतंत्र की दुहाई देते हुए इसे शासन-प्रशासन की सबसे अच्छी प्रणाली बताया। उन्होंने दुनिया में अधिनायकवादी नेताओं के उभरने पर भी चिंता व्यक्त की। लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर बाइडेन के जोर देने से आने वाले दिनों में प्रशासन विभिन्न देशों के साथ कैसे संबंध बनाएगा, इसका निर्धारण होगा। भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका के सत्ता प्रतिष्ठान में बहुत से लोग हैं जो बाइडेन से यह अपेक्षा रखते हैं कि वह लोकतंत्र और मानवाधिकारों को अपनी विदेश नीति का मुख्य आधार बनाएं।

डॉ. दिलीप चौबे


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