मुद्दा : चुनौतियों से जुड़े आम जन

Last Updated 05 Nov 2020 12:39:51 AM IST

विश्व का ध्यान कोविड-19 पर केंद्रित है, पर हमें विश्व की अनेक अन्य बड़ी समस्याओं से ध्यान नहीं हटाना चाहिए।


मुद्दा : चुनौतियों से जुड़े आम जन

विशेषकर यह ध्यान में रखते हुए कि ये  बड़े पैमाने पर जानलेवा सिद्ध हो सकती हैं। कोविड के आगमन से पहले ही विश्व के हजारों प्रतिष्ठित वैज्ञानिक चेतावनी दे चुके थे कि जलवायु बदलाव, जैव-विविधता के तेज हृास, खतरनाक रसायनों व रेडिएशन के तेज प्रसार, वन-विनाश व जल-संकट जैसी लगभग एक दर्जन पर्यावरणीय समस्याएं ऐसी हैं, जो पृथ्वी की सहन क्षमता के बाहर हैं यानी जो धरती की जीवनदायिनी क्षमताओं को ही बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर सकती हैं। वैज्ञानिक यह चुनौती भी दे चुके हैं कि परमाणु हथियार, रोबोट हथियार, रासायनिक व जैविक हथियार के बढ़ते खतरों के साथ अंतरिक्ष में युद्ध की आशंकाएं ऐसे महाविनाश की संभावना उत्पन्न कर रही हैं, जिससे धरती के अधिकांश जीवन के साथ उसकी जीवन पनपाने की क्षमता ही नष्ट हो सकती है।
आगे बड़ा सवाल है कि इस निराशा के बीच आशा कहां नजर आती है? यदि विश्व की सरकारें और अन्तरराष्ट्रीय संस्थान सबसे बड़ी चुनौतियों के लिए प्रतिबद्ध नहीं हैं, तो आखिर हम किस का द्वार खटखटाएं? कहां उम्मीद तलाश करें? इस निराशा के बीच आशा यह है कि दुनिया में छोटे स्तर के हजारों प्रयास ऐसे हैं जिनमें इन समस्याओं के छोटे स्तर के समाधान कहीं न कहीं नजर आते हैं। यदि इन प्रयासों में एकजुटता लाई जाए और इन्हें एकत्र कर एक असरदार ताकत का रूप दिया जाए तो इनसे एक बड़ी उम्मीद निकल सकती है। ये प्रयास मुख्य रूप से पर्यावरण, अमन-शांति, समता व न्याय तथा लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में हैं। धरती की जीवनदायिनी क्षमता को बचाने के प्रयास मुख्य रूप से अमन-शांति व निशस्त्रीकरण के साथ पर्यावरण व जैव-विविधता रक्षा के क्षेत्र में हैं। पर इन प्रयासों को न्याय/समता तथा लोकतंत्र के दायरे में ही आगे बढ़ना चाहिए। पर्यावरण रक्षा के कुछ प्रयास ऐसे हैं, जो न्याय व समता को समुचित महत्त्व नहीं देते हैं और कभी-कभी तो इनके विरोध में जाते हैं।
सच बात तो यह है कि पर्यावरण रक्षा व अमन-शांति के कई महत्त्वपूर्ण प्रयास इस कारण ही आगे नहीं बढ़ पाए क्योंकि उन्होंने न्याय व समता व आम लोगों विशेषकर निर्धन वर्ग के हितों को समुचित महत्त्व नहीं दिया। इसी वजह से जनसाधारण इन प्रयासों से जुड़ नहीं सके व ये प्रयास एक बड़ी ताकत बन नहीं सके। यदि मजदूरों को कहा जाता है कि ग्रीनहाऊस गैसों को कम करने की योजना बनी है, तो यह योजना चाहे कितनी जरूरी हो पर यह उन्हें तुरंत आकषिर्त नहीं करेगी क्योंकि वे तो अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए चिंतित हैं। पर उन्हें कहा जाए कि ग्रीनहाऊस गैसों को कम करने की ऐसी योजना है, जिसके साथ सभी की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की योजना का सामंजस्य बनाया गया है तो वे अवश्य ध्यान देंगे।

इसी तरह स्थानीय को वैश्विक से जोड़ते हुए आगे बढ़ा जाए तो एक ओर साथ-साथ आम लोगों की दैनिक समस्याएं कम होती जाएंगी तथा दूसरी ओर विश्व की सबसे बड़ी समस्याओं के समय रहते समाधान के लिए जन-समर्थन बढ़ता जाएगा। यह उमड़ता-बढ़ता जन-समर्थन ही एक दिन इन सबसे बड़ी गंभीर वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए सबसे बड़ी ताकत बन सकता है। इन समाधानों की ओर बढ़ने के लिए जरूरी है कि अमन-शांति व पर्यावरण रक्षा के प्रयास व अभियान स्थानीय व वैश्विक सोच का संतुलित समावेश करें तथा स्थानीय समाधानों पर ध्यान देते हुए साथ में वैश्विक समस्याओं संबंधी शिक्षण का कार्य भी जारी रखें। इस समय यह नहीं हो पा रहा है। स्थानीय व वैश्विक प्रयास अलग स्तरों पर हो रहे हैं। इन दोनों में सामंजस्य नहीं है। गलतियों को सुधारना होगा।
न्याय व समता के प्रयास, लोकतंत्र रक्षा व मानवाधिकार के प्रयास, सद्भावना व अमन-शांति के अभियान तथा पर्यावरण रक्षा के अभियान-ये सब एक दूसरे के पूरक हैं। यदि खतरनाक व महंगे हथियारों की होड़ कम होगी तो इससे अमन-शांति स्थापित करने में मदद मिलने के साथ पर्यावरण विनाश भी कम होगा व निर्धन वर्ग की बुनियादी जरूरतें पूरी करने के लिए अधिक संसाधन भी उपलब्ध होंगे। यदि महिलाओं पर हिंसा कम होगी तो वे सभी क्षेत्रों में आगे बढ़ते हुए निर्धनता कम करने, पर्यावरण रक्षा में कहीं बेहतर योगदान दे सकेंगी। वैश्विक व स्थानीय सरोकारों को एक ही माला में पिरोते हुए विश्व की बड़ी समस्याओं के समाधान में जनसाधारण को जुड़ना चाहिए।

भारत डोगरा


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