बतंगड़ बेतुक : जानवरों से भी ज्यादा गए बीते

Last Updated 18 Oct 2020 12:41:30 AM IST

झल्लन भर गुस्सा दुखी नजर आ रहा था और ओंठों-ही-ओंठों में कुछ बड़बड़ा रहा था। उसके हाव-भाव बता रहे थे कि वह भीतर-ही-भीतर फड़फड़ा रहा था।


बतंगड़ बेतुक : जानवरों से भी ज्यादा गए बीते

हमने पूछा, ‘काहे झल्लन, काहे इतना दुखी नजर आ रहा है और काहे गुस्से में बल-सा खा रहा है और क्या बड़बड़ा रहा है?’ वह बोला, ‘अब क्या कहें  ददाजू, ये इंसान कभी इंसान हो पाएगा या जानवर की तरह पैदा हुआ था तो जानवर की तरह ही मर जाएगा।’ हमने कहा, ‘आखिर हुआ क्या, पता तो चले, किस चीज ने तुझे इतना आहत कर दिया है, कुछ सुराग तो लगे।’ झल्लन बोला, ‘दिल्ली के राहुल राजपूत के बारे में आप भी सुने होंगे और जिन लोगों ने भी सुना है वे चैन से कैसे रहे होंगे।’ हमने कहा, ‘तू उस लड़के की बात कर रहा है जिसे कुछ लड़कों ने पीट-पीटकर बेदम कर दिया था और जो अस्पताल में इलाज के दौरान मर गया था?’
झल्लन बोला, ‘बताइए ददाजू, ये बेचारा लड़का क्या कसूर किये जो उसे इस तरह मौत के घाट उतार दिये। यही न कि वह अपनी हमउम्र लड़की से दोस्ती रख रहा था या उससे प्यार कर रहा था। किसी से प्यार करना इतना बड़ा जुल्म तो नहीं है कि किसी की जान ले ली जाये और एक बेचारी मां की गोद सूनी कर दी जाये?’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, इस पूरे मामले में अलग-अलग मजहबों का मामला उलझा है, मजहब का मामला ऐसा होता है जो न कभी सुलझा था और न आज सुलझा है।’ झल्लन बोला, ‘हमने तो सुना है ददाजू कि मजहब इंसान को इंसानियत पढ़ाने के लिए होता है, पर जब ऐसी घटना होती है तो लगता है मजहब इंसान को जानवर बनाने के लिए होता है। इससे क्या फर्क पड़ता है कि लड़का हिंदू है, लड़की मुसलमान है या लड़का मुसलमान है लड़की हिंदू है। भाई, आखिर हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, लोकतंत्र में रह रहे हैं, लेकिन हम अपने बच्चों को इतनी आजादी भी नहीं देना चाहते कि वे अपनी जिंदगी के रास्ते खुद तय कर सकें, जिससे प्यार करना चाहें उससे प्यार कर सकें और जिससे विवाह करना चाहें उससे विवाह कर सकें।’

हमने कहा, ‘मजहबी कट्टरता और मजहबी जहालत बहुत खतरनाक होती है, ये लोगों में सिर्फ नफरत के बीज बोती है, नफरत में जगती है और नफरत में सोती है।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, मजहब के नाम पर आखिर इंसान इतनी नफरत कैसे ढोता है, क्यों अपनों और परायों के नाम पर इतना जहर बोता है?’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, हर मजहब का चरित्र दुमुंहा होता है, ऊपर से वह शांति की बातें करता है लेकिन भीतर दूसरे मजहब को नष्ट और बेइज्जत करने का कुत्सित इरादा रच रहा होता है। और जब मामला लड़की का हो तब तो इनका चरित्र डरावना हो जाता है, और सच कहें तो घिनावना हो जाता है। लड़की इनके लिए इनकी इज्जत बनाने-मिटाने की निशानी होती है, लड़की की अपनी मर्जी इनके लिए खतरनाक और बेमानी होती है।’ झल्लन बोला, ‘वही तो ददाजू, लड़की मुस्लिम थी और हिंदू लड़के से प्यार कर रही थी और यही बात लड़की के भाई-बंधुओं के सीने पर वार कर रही थी। ऐसी सोच से क्या निकल सकता है, यही न कि कोई हिंदू लड़का किसी मुस्लिम लड़की से कैसे प्यार कर सकता है और अगर ऐसा करता है तो जान हथेली पर रखकर ही कर सकता है।’
हमने कहा, ‘मोहब्बत मजहब से बड़ी होती है, परे होती है, इसे मजहब वाले नहीं जानते। मोहब्बत से बड़ा कोई मजहब नहीं होता इसे ये जाहिल नहीं मानते।’ झल्लन बोला, ‘लेकिन ददाजू, अगर कोई मुस्लिम लड़का किसी हिंदू लड़की से निकाह रचा लेता है, उसका धर्म बदलवा कर उसे मुसलमान बना लेता है तब इनके मजहब पर खरोंच नहीं आती। तब तो इन्हें लगता है कि इन्होंने कोई बड़ा बहादुराना कारनामा कर लिया है और एक गैर-मुस्लिम लड़की को मुस्लिम बनाकर हजार हज का सबाब पा लिया है।’ हमने कहा, ‘झल्लन, यह मानसिकता किसी भी मजहब में हो, यह बीमार मानसिकता है। और इसका जवाब आधुनिक जीवन मूल्य और मजहब विरोधी आधुनिकता है।’ झल्लन बोला, ‘लेकिन ददाजू, हमें तो लगता है कि मजहबी उन्माद के आगे आधुनिकता अर्थहीन हो रही है और जैसे-जैसे 21वीं सदी आगे बढ़ रही है, उदार आधुनिकता बर्बर मजहब पर कुर्बान हो रही है।’
हमने कहा, ‘यही तो विडंबना है झल्लन, हम सोचते थे कि जैसे-जैसे लोकतंत्रवादी विचारों का वैज्ञानिक चेतना के साथ विस्तार होगा तो इंसान बेहतर इंसान बनेगा और मध्ययुगीन मजहबी क्रूरता और कट्टरता का निस्तार होगा। सोचते थे कि जाति-मजहब के मसले सब ठंडे पड़ जाएंगे, पर क्या पता था कि ये इंसानी दिमाग पर इतने ज्यादा चढ़ जाएंगे कि 21वीं सदी को वापस 12वीं सदी में ले जाएंगे।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हम उस लड़की के बारे में सोच रहे हैं जो अपने प्रेमी के साथ खड़ी रही और अपने भाइयों के विरुद्ध प्रेमी को बचाने पर अड़ी रही।’ हमने कहा, ‘हमें भी यही चिंता है झल्लन, इस लड़की का परिवार उसका सबसे बड़ा दुश्मन हो जाएगा, फिर पता नहीं उसका भविष्य क्या होगा, उसे कौन बचाएगा?’

विभांशु दिव्याल


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