सरोकार : मीडिया में पचास पार महिलाओं की स्थिति

Last Updated 18 Oct 2020 12:37:53 AM IST

टीवी और ब्रॉडकास्टिंग की दुनिया में महिला चेहरे कितने दिखाई देते हैं। भारत ही नहीं, दूसरे देशों में भी।


टीवी और ब्रॉडकास्टिंग की दुनिया में महिला (symbolic picture)

ब्रिटेन में  लंबे समय तक सांसद रहने वाली हैरियट हरमैन ने महिला मीडियाकर्मिंयों की सुध ली है। कम्यूनिकेशन कंपनी ऑफकॉम से कहा है कि बुजुर्ग बॉडकास्टर्स के जेंडर पर आंकड़े प्रकाशित करे ताकि पता चले कि टीवी और रेडियो की दुनिया में सीनियर महिला प्रेजेंटर्स को किस तरह दोहरे भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। रेडियो टाइम्स के एक ओपिनियन पीस में हैरियट ने कहा है कि ब्रॉडकास्टिंग की दुनिया में 50 पार की महिलाओं को देखना ऐसा ही है, जैसे मुर्गी के दांतों को गिनना। न मुर्गी के दांत होते हैं और न ही ब्रॉडकास्टिंग में इस उम्र की महिलाएं मौजूद हैं।  
हैरियट ब्रिटेन की संसद में लेबर पार्टी की उपनेता रह चुकी हैं। फिलहाल उन्हें मदर ऑफ हाउस ऑफ कॉमन्स की उपाधि दी गई है। उन्होंने इस लेख में एक बात और कही है। कहा है कि महिला प्रेजेंटर्स और उनके वेतन और आयु के बारे में विस्तृत आंकड़े होंगे तो मीडिया कंपनियां भी सचेत रहेंगी। चूंकि उन्हें 2010 के इक्वालिटी एक्ट के अंतर्गत सजा मिलने का डर होगा। इसके अलावा हैरियट ने यह भी साफ किया कि ऑफकॉम बहुत सारे आंकड़े प्रकाशित जरूर करता है लेकिन यह नहीं बताता कि बुजुर्ग पुरुषों के मुकाबले बुजुर्ग महिलाओं को काम करने का कितना मौका मिलता है। उन्हें ये आंकड़े भी देने चाहिए कि कैसे 50 पार होते ही महिलाओं को मीडिया हाउस से बाहर फेंक दिया जाता है। यूं हैरियट ने सौ फीसदी सही बात कही है। ब्रॉडकास्टिंग की दुनिया में बुजुर्ग पुरुषों को परिपक्व और समझदार माना जाता है, लेकिन बुजुर्ग महिलाएं अनग्लैमरस और अनाकषर्क हो जाती हैं। ब्रिटेन में हाल ही में हाई प्रोफाइल सीनियर महिला ब्रॉडकास्टर्स ने बीबीसी प्रोग्राम्स को छोड़ा है। इनमें अ क्वेश्चन ऑफ स्पोर्ट की स्यू बार्कर और रेडियो 4 के विमिन आवर की जेनी मुरे और जेन गार्वे शामिल हैं। पिछले महीने लिबी पूरवेस ने बीबीसी पर ‘लुकिज्म’ का आरोप लगाया है और कहा कि वहां कैसे बुजुर्ग होतीं प्रेजेंटर्स के साथ भेदभाव किया जाता है। हैरियट तो मुरे के विमिन आवर की अंतिम कड़ी में मेहमान भी थीं। वह साफ कहती हैं कि मुरे महिलाओं की उस पीढ़ी की आवाज हैं, जिन्होंने मातृत्व और कॅरियर के बीच गजब का संतुलन बनाया है। अपने बच्चों के लालन-पालन के दौरान वे अधिकतर पेशेवर हुई हैं  पर इस बात के लिए उनकी कभी तारीफ नहीं की गई।

यही स्थिति भारत की भी है। पिछले साल यूएन विमिनकी एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि महिला पत्रकारों को भारत में प्रमुख संगठनों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। भारतीय मीडिया में लैंगिक  असमानता नाम की रिपोर्ट में कहा गया था कि महिलाओं को मुख्य अखबारों और टीवी चैनल्स के मुकाबले ऑनलाइन मीडिया में ज्यादा जगह मिलती है। ऑनलाइन पोर्टल्स में 26.3 फीसद शीर्ष नौकरियों में महिलाएं हैं, जबकि टीवी चैनलों में 20.9 फीसद और पत्रिकाओं में 13.6 फीसद प्रधान संपादक, प्रबंध संपादक, कार्यकारी संपादक, ब्यूरो प्रमुख या इनपुट/आउटपुट संपादक पदों पर हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत और दुनियाभर में आज मीडिया में बड़े पैमाने पर पुरुषों का वर्चस्व है। महिलाओं को अक्सर जीवनशैली और फैशन जैसी आसान बीट्स दी जाती हैं जबकि पुरुषों को राजनीति, अर्थव्यवस्था, खेल जैसी कठिन बीट्स दी जाती हैं। पर इस रिपोर्ट में भी आयु आधारित आंकड़े नहीं थे जो बताते कि महिला पत्रकारों में भी 50 पार की महिलाएं कितनी हैं।

माशा


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