वैश्विकी : अस्थिरता के अगले दौर में

Last Updated 18 Oct 2020 12:44:55 AM IST

पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता की ओर बढ़ रहा है तथा प्रधानमंत्री इमरान खान की गद्दी डांवाडोल है।


अस्थिरता के अगले दौर में

यह घटनाक्रम आश्चर्यजनक है क्योंकि इमरान खान एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनके पीछे देश की सेना  और खुफिया एजेंसी आईएसआई खड़ी है। स्वयं इमरान भी यह दावा करते हैं कि निर्वाचित सरकार सहित पूरा सत्ता प्रतिष्ठान एक साथ है। वास्तव में उनका यह दावा और जमीनी हकीकत उनकी मुसीबत का कारण बन गई है।
एक ऐसे समय जब इमरान खान के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को बहुत कमजोर माना जा रहा था, देश में इमरान के विरुद्ध एक जनआंदोलन की शुरुआत हो गई है। पाकिस्तान के लगभग सभी विपक्षी दल ‘पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट’ (पीडीएम) के परचम के नीचे एकत्र हो गए हैं। इस विरोध आंदोलन का पहला बड़ा आयोजन बीते शुक्रवार को गुजरांवाला में हुआ। मध्य रात्रि के बाद तक चला यह जलसा सत्ता प्रतिष्ठान के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है। लंदन में निर्वासित मुस्लिम लीग के शीर्ष नेता और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने जलसे को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये संबोधित किया। मंच पर सभी बड़े विपक्षी दलों के नेता मौजूद थे। शरीफ ने जलसे में जो भाषण दिया वह असाधारण और अभूतपूर्व था। उन्होंने इमरान खान की बजाय सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा और आईएसआई के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज को निशाना बनाया। किसी मौजूदा सेनाध्यक्ष या आईएसआई प्रमुख पर किसी बड़े राजनीतिक नेता द्वारा सीधे प्रहार करने का यह पहला मौका था। उन्होंने सेना को निर्वाचित सरकारों को अपदस्थ करने का ही नहीं बल्कि देश में महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी और अभाव का दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि जनरल बाजवा को पाकिस्तान की आवाम की दुर्दशा और उनकी आंसूओं का जवाब देना होगा।

पूर्व प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान की नये सत्ता समीकरण के बारे में कहा कि आज सेना और आईएसआई लोकतांत्रिक सत्ता प्रतिष्ठान से ऊपर हो गई है तथा देश का हर क्रियाकलाप उसके कहने और उसकी मर्जी से होते हैं। इमरान खान तो बस सेना केंद्रित इस सत्ता प्रतिष्ठान की कठपुतली मात्र हैं। आमतौर पर पाकिस्तान में विपक्षी दलों की रणनीति यह रहती है कि वे सेना से कहें कि राजनीतिक रस्साकशी और विरोध आंदोलन के समय वह तटस्थ रहे। देश के सभी राजनीतिक दल पाकिस्तान की रक्षा नीति और विदेश नीति में सेना की निर्णायक भूमिका को स्वीकार करते हैं। उन्हें इस बात का भी अहसास है कि विभिन्न जातीय समूहों वाले प्रांतों के बीच एकता कायम करने का बड़ा आधार सेना है।
हाल के वर्षो में सेना का महत्त्व इसलिए भी बढ़ गया है कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार है तथा परमाणु कमान सेना के हाथ में है। नवाज शरीफ ने यह भी कहा कि जो राजनीतिक नेता सेना की दखलंदाजी का विरोध करता है, उसे गद्दार करार दिया जाता है। वास्तव में गद्दारी का अपराध तो 1971 में सेना ने किया था, जिसके कारण बांग्लादेश की स्थापना के रूप में पाकिस्तान का विभाजन हुआ। पीडीएम के अन्य नेताओं ने भी इमरान के इन आरोपों को खारिज किया कि उनका आंदोलन भारत को मजबूती देगा। इस परिप्रेक्ष्य में शरीफ का संबोधन एक बड़ा जोखिम माना जा सकता है। दुनिया के लिए पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता से बड़ा सवाल यह होगा कि परमाणु हथियारों का जखीरा किसी अविसनीय प्रतिष्ठान के हवाले होने से रोका जाए।
गुजरांवाला जलसे की सफलता के बाद पीडीएम के अगले जलसे कराची, क्वेटा, पेशावर, मुल्तान और लाहौर में आयोजित होने हैं। देश में इमरान विरोधी हवा कितना दम पकड़ती है, यह इन जलसों से साबित होगा।
फिलहाल इमरान ही नहीं बल्कि जनरल बाजवा के सामने जन आक्रोश को समझने और उसे शांत करने की चुनौती होगी। सेना के सामने भी यह दुविधा होगी कि वह शरीफ सहित विपक्षी नेताओं को अपना रुख नरम करने के लिए जनरल बाजवा और आईएसआई प्रमुख की कुर्बानी देने के लिए तैयार है या नहीं। पीडीएम के सामने झुकने से सेना की विसनीयता और छवि पर असर पड़ेगा, लेकिन यह भी साफ है कि किसी भी देश की सेना अपने आवाम से नहीं लड़ सकती।

डॉ. दिलीप चौबे


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment