बतंगड़ बेतुक : जय श्रीराम, जय जय सियाराम

Last Updated 09 Aug 2020 12:08:48 AM IST

झल्लन के चेहरे पर चमक थी, नेत्रों में गर्व की दमक थी और जुबान पर रामभक्ति की गमक थी-श्री रामचंद्र कृपालु भज मन हरण भव भय दारूणम..उसने हमें देखते ही पुकारा और अपना अभिवादन मारा, ‘जय श्रीराम, जय सियाराम, ददाजू।’


बतंगड़ बेतुक : जय श्रीराम, जय जय सियाराम

हमने उसे हैरत से निहारा और अपना सवाल उचारा, ‘आज तुझे क्या हुआ झल्लन, काहे इतनी रामभक्ति उमड़ रही है, काहे ओठों पर राम वंदना घुमड़ रही है?’ वह बोला, ‘कैसी बात करे हो ददाजू, अवधपुरी में भगवान राम की प्रतिष्ठा हो रही है, पूरे विश्व में राम नाम की जय हो रही है, भक्तों के मन में दीपावली मन रही है, हर भारतीय की छाती गर्व से तन रही है। समूचा भारत राम में रम गया है, मीडिया-सोशल मीडिया राममय हो गया है। भारत में नवजागरण हो रहा है, नयी चेतना का स्फुरण हो रहा है। हमारे प्रधान राम के गुणगान में जो बताए हैं वो हम अच्छी तरह जान लिये हैं, अब हम भी राम रंग में रंगे रहेंगे ये मन में ठान लिये हैं।’ हमने कहा, ‘प्रधान ने ऐसा क्या बता दिया जो अब तक नहीं बताया गया था, उन्होंने अपने प्रवचन में कथा का कौन-सा अंश बांच दिया जो अब तक नहीं सुनाया गया था?’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, जब भी इतिहास अंगड़ाई लेता है तब आप न जाने कहां खो जाते हो, इतिहास के साक्षी बनने के बजाय चद्दर तानकर सो जाते हो। हमारे प्रधान ने बता दिया है कि भव्य राम मंदिर के शिलान्यास के साथ नये समृद्ध और शक्तिशाली भारत का भी शिलान्यास हो गया है, हमारे सुनहरे भविष्य का भी विन्यास हो गया है। अब देखिए, हम कहां से कहां पहुंच जाएंगे और दुनिया वाले हमें टकटकी लगाकर देखते रह जाएंगे और जो आज हमारी ओर टेढ़ी नजरों से देखते हैं वे हमारे चरणों में गिर जाएंगे। अब जमकर परिश्रम होगा, विराट संकल्प शक्ति का उदय होगा और एक आत्मविासी और आत्मनिर्भर भारत का अभ्युदय होगा।’ हमने कहा, ‘सुन झल्लन, अगर ऐसा होगा तो बहुत ही अच्छा होगा, इससे जनता का भला होगा तो साथ में हमारा भी भला होगा और यह देखकर हमारा मन भी बहुत प्रसन्न होगा। पर ये बता, तेरे नये भारत के अभ्युदय से राम मंदिर का क्या नाता है, परिश्रम और संकल्प तो कभी भी हो सकते हैं, इनके बीच राम मंदिर कहां आता है?’

झल्लन बोला, ‘यहीं तो आप मात खा जाते हो ददाजू, बिना मंदिर के कुछ होना होता तो अब तक कुछ-न-कुछ हो गया होता। अब जब रामलला अपने ठिये पर आ गये हैं तो जो अच्छा होना होगा वो अब होगा। भक्तों के राममय होते ही समूचा भारत परिश्रममय भी हो जाएगा, संकल्प शक्ति भी ले आएगा और जिस दिन राम मंदिर का निर्माण पूरा हो जाएगा उसी दिन भारत खूंखार आत्मविासी हो जाएगा और खूंखारता के साथ आत्मनिर्भर भी हो जाएगा। और हमारे प्रधान ने कहा है न कि ‘भय बिन होय न प्रीति’, तो उसी दिन भारत इतना शक्तिशाली हो जाएगा कि आसपास के सारे धुरंधरों का सर भय के मारे प्रीति में झुक जाएगा।’ हमने कहा, ‘हमें नहीं लगता कि कोई कुछ सार्थक कर पाएगा, तेरे रामलला का हल्ला सिर्फ हल्ला होकर रह जाएगा।’
झल्लन बोला, ‘क्या बात करते हो ददाजू, जरा अपनी आंखों का ढक्कन हटा लीजिए, आसपास थोड़ी नजर घुमा लीजिए। जो चमत्कार हो रहा है वह आपको साफ-साफ दिख जाएगा, आपके मन का हर संदेह मिट जाएगा। देखिए, हम आगे बढ़ना शुरू हो गये हैं, हमारा देश आगे बढ़ चला है और इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ हमारा प्यारा रामलला है।’
हमने कहा, ‘देख झल्लन, देश तब आगे बढ़ता है, तब शक्तिशाली होता है जब देश की सारी व्यवस्थाएं चुस्त-दुरुस्त हों, सब ईमानदारी और निष्ठा से अपना कार्य करते हों, नेतागण चोर-स्वार्थी-बिकाऊ और घरभरू  न होकर जनहित का ध्यान रखते हों, अधिकारी भ्रष्टाचार और नेताओं की चपरास छोड़कर अपने कर्तव्य पर टिकते हों, पुलिसवाले अपराधियों से गलबहियां न कर पीड़ित के साथ दोस्ती निभाते हों, व्यापारी कानूनी व्यवस्था को रखैल बनाकर काला धन न कमाते हों, पत्रकार सरकार और पूंजीपतियों की दलाली छोड़कर जनसरोकारी मुद्दे उठाते हों, आम लोग लंपटई में लिप्त न रहकर अनुशासनबद्ध नागरिक का व्यवहार निभाते हों और देश के योजनाकार अपने भविष्य के लिए नहीं, बल्कि देश के भविष्य के लिए दिमाग खपाते हों। अब तू बता, यह काम कैसे संभव बनाया जाएगा, तेरा प्यारा रामलला इसमें क्या कर पाएगा?’
झल्लन बमकते हुए बोला, ‘ददाजू, प्रधानजी की बात नहीं सुनते हो और उलजुलूल सवाल करते हो। अरे, कलयुग में काम की जिम्मेदारी हनुमानजी की है, रामलला के साथ परम भक्त हनुमान भी आएंगे और देख लेना पलक झपकते ही सब दुरुस्त कर जाएंगे।’ ‘पर झल्लन..मन में शंका है कि..हम बात पूरी भी न कर पाये कि झल्लन मियां हम पर झल्लाए, ‘आप जैसे अनास्थावान बुद्धिजीवियों का यही तो रोना है कि आप हर शुभ काम में विघ्न डालते हैं, फालतू के खोट निकालते हैं, खुद तो कुछ कर नहीं पाते और जो करते हैं उन पर कीचड़ उछालते हैं। हमारी बात मानिए, सारी अगर-मगर परे हटाइए, राम में लौ लगाइए, चैन से रहना हैं तो चुपचाप राममय हो जाइए।’

विभांशु दिव्याल


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